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Thursday 13 February 2020

काली दुल्हन!!भारतीय दृष्टिकोण और ज्ञान परंपरा भाग 3 नीलम भागी Kali Dulhan Bhartiye Drishtikon Aur Gyan ke Parampera part 3 Neelam Bhagi


दादी ने लेजियम  चलाने वाली, सांवली बहु अपने गोरे चिट्टे बेटे, पंजाब में कहतें हैं मक्खन और सिंदूर मिली हुई रंगत के मेरे पिता जी के लिए पसंद की। अम्मा हिन्दी रत्न भूषण प्रभाकर करके, साहित्यरत्न की तैयारी कर रहीं थीं। जन्मपत्री और 36 गुण मिलने पर, मेरे नाना ने कहा कि शादी मैं दो साल बाद विमला की पढ़ाई पूरी होने पर ही करुंगा। सगाई कर दी गई। उन दिनों बटवारे की आशंका से अजीब सा माहौल था। बेटी पराया धन है इसलिये उसे हिफाजत से उसके अपने घर पहुंचाना जरुरी है। इसलिये उनकी   शादी जल्दी हो गई। अम्मा की सत्रवें साल में पढ़ाई छूट गई थी। लेकिन पढ़ना आज तक नहीं छूटा। उन दिनों पाकिस्तान बनने का शोर मचा हुआ था। पिताजी लाहोर में पोस्टिड थे। अम्मा होशियार पुर के श्यामचौरासी कस्बे में रहती थी। अम्मा को यहां के बारे में कुछ नहीं पता। कारण था पिता जी  की रंगत की तुलना में सांवली बहू दादी के लिए काली दुल्हन थी| काली होने के कारण अम्मा को दादी  जब तक जिंदा रहीं, घूंघट में ही घर से बाहर ले कर गईं। आगे पिताजी के साथ दादी चलतीं थीं, उनके पीछे घूंघट में अम्मा चलतीं थीं। साथ ही वह एक डॉयलॉग हमेशा बोलती थीं ’लोग कहेंगे इतना सुन्दर मेरा बेटा श्याम सुन्दर, बहु कल्लो। बेटी तेरे मुंह पर तो नहीं लिखा न कि तूं पढ़ी लिखी है।’अम्मा को यह सुनने की आदत हो गई थी। और जहां चार औरतें बैंठी, वहीं दादी अम्मा का गुणगान शुरु करतीं कि ऐसी पढ़़ी लिखी संस्कारी, लम्बे बालों वाली, बड़ी बड़ी आंखों वाली बहू तो किस्मत वालों को मिलती है। दादी कभी कभी महिलाओं में संस्कृत का श्लोक आंखें बंद करके सामवेद की ऋचा की तरह बोलती थीं। फिर उसका अर्थ समझाती थीं। जब मैं संस्कृत समझने लगी, तब मैंने एक दिन अम्मा से कहा कि दादी तो गलत अर्थ बताती है। अम्मा सुन कर मुस्कुराईं और बोलीं,’’मुझे पता है। और कुछ दिन बाद जब यही श्लोक फ़िर सुनायेंगी तो इसका अर्थ दूसरा होगा। तुम्हारी दादी के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है। ये जहां भी रहतीं हैं, महिलाओं को व्यस्त कर देतीं हैं। चरखा कातना, दरी, खेस और नाड़े बुनना सबको सिखा देती हैं। आजादी के बाद तुम्हारे पिताजी का इलाहाबाद तबादला हुआ। श्यामचौरासी के समान ही इनका वहां भी महिलाओं में आदर था। वहां से मेरठ आए, यहां भी ये आदरणीया हैं। माता जी पढ़ना जानती हैं। सिर्फ धार्मिक किताबें ही पढ़ती हैं। तीन ही इनके शस्त्र हैं, संस्कृत, वेद और गीता। दादी की गीता में कर्म  के सिद्धांत का मतलब है। महिलाओें को खाली नहीं बैठना चाहिए और इनके पास  कथा कहानियों का भण्डार है। हर मौके पर इनके पास धार्मिक कहानी है। भारतीय साहित्य में हमेशा सामाजिक समरसता का भाव रहा है। समरसता की प्रतीक रामायण, दादी सुबह नहा कर चौकी पर बैठ कर पढ़ती हैं। आस पास की हम उम्र अनपढ़ महिलाएं सुबह से झांकना शुरु करती हैं कि कब माता जी आसन पर बैंठेंगी। पर वे सुबह मेरे साथ काम में मदद करतीं हैं। जब बच्चे स्कूल चले जाते हैं। तब वे चौंकी पर बैठ कर रामायण पाठ शुरु करतीं हैं। महिलाएं नीचे बैठ कर सुनतीं हैं। क्रमशः

2 comments:

गर्दूं-गाफिल said...

वाह शब्द सरिता बहाती हैं आप

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार आदरणीय