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Sunday 16 February 2020

बेटी के जन्म पर मेरा दिल क्यों बैठ गया था!!.भारतीय दृष्टिकोण और ज्ञान परंपरा भाग 6 नीलम भागी Bhartiye Drishtikon Aur Gyan ke Parampera part 6 Neelam Bhagi



 मैं बड़ी मामी के घर गई। मामी छत पर थीं। वहां मैं मामा के कमरे में गई। कमरा देख कर दंग रह गई। बहुत बड़ा कमरा, लाइब्रेरी की तरह उसमें करीने से किताबें लगी हुई। उसमें चौड़ा निवाड़ का पलंग, दो कुर्सियां और एक मेज रक्खा हुआ था। दादी की लाडली थी, वे मुझे हमेशा अपने साथ रखतीं थीं। ननिहाल में सातवीं कक्षा के बाद अब आई थीं। बड़े मामा को स्वर्ग गये एक साल हुआ था। अब मामी उस कमरे में रहतीं थीं। छोटी सी खिलौने जैसी अंगीठी और चाय बनाने का सामान भी रक्खा था। मुझे अर्जुन के चक्रव्यूह भेदने की कहानी याद आई जो उसने मां के गर्भ में सीखा था। मैं किताबें देखने लगी कि इन दिनों खूब पढ़ूंगी ताकि मेरा होने वाला बच्चा खूब पढ़े। थक गई थी, लेट कर एक किताब पढ़ने लगी। अचानक क्या देखती हूं! मामी ने अंगीठी पर चाय चढ़ा रक्खी है और किसी किताब का एक एक पेज उसमें डालती जा रही है। चाय अच्छे से पीतल की पतीली में खौल रही थी। उसे दो पीतल के गिलासों में छान कर, कांसे की थाली में अलसी की पिन्नी, भूने चने घर के घी में गर्म करके नमक लगा कर दिए। दोनो चाय पी रहे थे। और मैं मन में सोच रही थी कि मामी को किताब जलाने के लिए कैसे मना करुं? इतने में  नीचे से भाभी चाय नाश्ता ले आई। मामी ने उन्हें प्यार से कहा,’’बेटी तूं शाम की चाय मत लाया कर। मेरा जब मन करता है, मैं बना लेती हूं। छोटे बच्चों के साथ दिन भर काम में लगी रहती है। इतना तो मुझे करने दिया कर।’’भाभी के जाने के बाद मामी ने कहा,’’सुबह मैं दूध भी यहीं उबाल कर पी लेती हूं और जब दिल करता है शाम की चाय बना लेती हूं।’’इससे कुछ तो किताबें कम होंगी। मैंने कहा,’’मामी जी आप किताबें मत जलाया करो। किसी लाइब्रेरी को दे दो।’’मेरी बात बीच में काट कर वे बोलीं,’’क्यों दे दूं? पता है तुझे, तेरे मामा ने कितना पैसा इन किताबों पर खर्च किया है!! कोई उनसे बात करो तो हां हूं में जबाब, बस ये किताबें जैसे उनसे बातें करतीं हों। वो तो कबाड़ी से भी किताब खरीद लाते थे। लेई से जोड़ कर उसे पढ़ते।’’ अब समझ आ गया। नाना ने बेटियों को क्यों पढ़ाया! अम्मा का जन्म दोनो मामियों की शादी के बाद हुआ था। बी.एच.यू. में पढ़े मामा और पढ़ने के शौकीन मामा! ख़ैर मैं उस समय इस पोजीशन में नहीं थी कि उन्हें रोकूं। अब मेरी मनपसंद जगह मामा का कमरा थी। बड़े मामा न होते हुए भी उस घर में अपने होने का एहसास दिलाते। पहले आंगन में उनके लगाये दो बढ़िया अमरुद के पेड़। अंदर दूसरे आंगन में कोने में दो कच्चे स्क्वायर छोड़े हुए थे। उनमें  अंगूर की बेले थीं। सर्दियों में आंगन में खूब धूप आती। गर्मियों में अंगूर की बेल फैल कर आंगन में छत बना देती। हरी छत से लटके अंगूर के गुच्छे बहुत अच्छे लगते। जी जान से मुझे प्यार करने वाली दो मामियों और चार भाभियों के होते हुए भी बेटी के जन्म से पहले अम्मा आई। मेरी कोख से बाहर आते ही उसका रोना। और  दाई से ’कुड़ी जम्मी ए’(बेटी पैदा हुई है) सुन कर अपने न रुकने वाले आंसू!! आज जिस बेटी पर गर्व करती हूं, उसके  जन्म पर मेरा दिल क्यों बैठ गया था!!. अम्मा बेटी का नाम उत्कर्षिनी रख कर बोली,’’ अपर्णा, उर्त्किर्षनी मां दुर्गा के ही नाम हैं। क्रमशः

2 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

ऐसी बेटी भगवान सबको दें जिसके नाम से माँ और उसकी मासी जानी जायेगी गर्वित

Neelam Bhagi said...

Hardik dhanyvad