हुआ यूं कि आज मेरी तीन बजे किताब खत्म हो गई। मैं साहित्य अकादमी लाइब्रेरी के लिए मण्डी हाउस चल दी। बस का इंतजार नहीं करती, बदल बदल के चली जाती हूं। दिल्ली सचिवालय से जैसे ही दूसरी बस में बैठी, ड्राइवर बस से गायब! थोड़ी देर में आकर बोला,’’सब सवारियां दूसरी बस में बिठा रहा हूं।’’इतने में झमाझम बारिश शुरु हो गई। ख़ैर उसने हमें आई.टी.ओ. तक पहुंचा दिया। वहां दूसरा ड्राइवर आ गया। यहां से बारिश और जाम के कारण दूसरा स्टॉप मंडी हाउस तक पहुंचने में चालीस मिनट लगे। स्टॉप पर खड़ी सोचने लगी की घर वापिस जाने के लिए सड़क पार कर, सामने स्टॉप पर जाने में ठंड में भीग जाउंगी और लाइब्रेरी जाने में भी भीग जाती। मेरे सामने दो नीली फूल मालाओं से सजी हुई 378 नम्बर की जे.बी.एम. बस निकली। वर्षा रुकने के कोई आसार न देख कर, ये सोच कर तीसरी 378 में मैं चढ़ गई कि इसी में बैठी रहूंगी। ये वापिस सेक्ट्रियेट से मयूर विहार 3 लौटेगी। उसके बराबर में नौएडा है। बहुत ही खूबसूरत बस, अंदर भी मालाओं से सजी, मैं आगे की सिंगल सीट पर बैठ गई। ड्राइवर कण्डक्टर दोनों ही इस बस के उद्घाटन के बाद पहली बार ही इस रुट पर आये थे। बरसात और जाम के कारण रुट बदल दिया। पर लिस्ट से स्टॉप मिला मिला कर वे सेक्ट्रियेट पहुंच गये। वहां से डेली जाने वाली सवारियां बड़ी खुशी से बस में बैंठी। कुछ लड़कियां चढ़ीं ,शायद लंबी चौड़ी बस देख कर चहकने लगी। चालक ने अपनी स्क्रीन पर देख कर घोषणा की’’महिलाएं देख कर पहले अपनी सीटें भरे, बाद में रार न मचे।’’लड़कियां खी खी खी खी हंसतीं हुई, गुलाबी सीटों पर बैठ गईं। लड़कियां बस में सेल्फी लेने लगीं। चालक ने शायद माइक था इसलिए उसमें बोला,’’ कोई इस बस में फोटोग्राफी नहीं करेगा क्योंकि आज इस बस का पहला दिन है।’’ वो माइक उपयोग करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहा था। हर स्टैण्ड पर बस रुकती। इतने में कण्डक्टर ने कहा कि इस बस में कोई भी पास नहीं चलेगा। एक लड़का बोला,’’महिलाओं की भी टिकट होगी।’’जबाब हंसी में एक महिला ने ही दिया,’’नहीं, ये महिलाओं को महिला दिवस का गिफ्ट है तभी तो पिंक सीटें, फूल मालाओं से सजा कर गाड़ी को भेजा है।’’फिर ट्रैफिक पुलिस ने जाम के कारण रुट डाइर्वट कर दिया। इधर भी जाम लग गया। इस रुट पर हमारी बस का कोई स्टॉप नहीं था। लेकिन मौसम खराब देख कर स्टाप पर चालक सवारियां चढ़ा लेता। जाम भूल कर सवारियां इस 36 सीटों वाली, कैमरों वाली, लो फ्लोर बस की मीमांसा करते रहे। इतने में किसी बस के टायर फटने की आवाज आई। चालक, कण्डक्टर कुछ सवारियां कूद कर नीचे उतरे और उन्होंने टायरों का मुआयना किया। अपनी गाड़ी के टायर ठीक देख कर बहुत खुश हुए और लो फ्लोर के कारण चिंतित हुए की सड़क के गढ्डे इन्हें खराब कर देंगे। इतने में बस के अंदर भारी भरकम घण्टे जैसी आवाज़ आई। सब चौंक गये। अब बार बार बस में घण्टे बजने लगे और मुझे मंदिर की फीलिंग होने लगी। चालक ने कहा,’’कौन बार बार दबा रहा है? मैं कैमरे से सब देख रहा हूं। बस साइड में लगा कर दबाने वाले को नीचे उतार दूंगा।’’ कुछ सवारियां बोलीं,’’हमें क्या पता! क्या दबाने से घण्टे बज रहें हैं। पर घंटे बजते ही रहे।’’एक स्टाप पर बस रुकी सवारियां आगे से उतरी, बस चल पड़़ी। एक महिला पीछे से बोली,’’पीछे का गेट खोलो, मुझे उतरना है।’’ चालक ने कहाकि आगे से उतरो। जब वो आगे पहुंची तो बोली,’’उतारो।’’चालक ने कहा कि स्टाप पर ही उतारुंगा, स्टाप पर ही चढ़ाउंगा। स्टॅाप पर उतरते हुए वह बोली,’नई बस चला रहे हो न, तुम्हें इसका घमण्ड है।’’नौ बजे मैं भी अपने स्टाप पर उतरी।
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Friday, 6 March 2020
ये तो महिला दिवस पर डी.टी.सी का हमारे लिए गिफ्ट है!! नीलम भागी Ye toh Mahila Divas Per DTC ka hamare liye Gift hai Neelam Bhagi
हुआ यूं कि आज मेरी तीन बजे किताब खत्म हो गई। मैं साहित्य अकादमी लाइब्रेरी के लिए मण्डी हाउस चल दी। बस का इंतजार नहीं करती, बदल बदल के चली जाती हूं। दिल्ली सचिवालय से जैसे ही दूसरी बस में बैठी, ड्राइवर बस से गायब! थोड़ी देर में आकर बोला,’’सब सवारियां दूसरी बस में बिठा रहा हूं।’’इतने में झमाझम बारिश शुरु हो गई। ख़ैर उसने हमें आई.टी.ओ. तक पहुंचा दिया। वहां दूसरा ड्राइवर आ गया। यहां से बारिश और जाम के कारण दूसरा स्टॉप मंडी हाउस तक पहुंचने में चालीस मिनट लगे। स्टॉप पर खड़ी सोचने लगी की घर वापिस जाने के लिए सड़क पार कर, सामने स्टॉप पर जाने में ठंड में भीग जाउंगी और लाइब्रेरी जाने में भी भीग जाती। मेरे सामने दो नीली फूल मालाओं से सजी हुई 378 नम्बर की जे.बी.एम. बस निकली। वर्षा रुकने के कोई आसार न देख कर, ये सोच कर तीसरी 378 में मैं चढ़ गई कि इसी में बैठी रहूंगी। ये वापिस सेक्ट्रियेट से मयूर विहार 3 लौटेगी। उसके बराबर में नौएडा है। बहुत ही खूबसूरत बस, अंदर भी मालाओं से सजी, मैं आगे की सिंगल सीट पर बैठ गई। ड्राइवर कण्डक्टर दोनों ही इस बस के उद्घाटन के बाद पहली बार ही इस रुट पर आये थे। बरसात और जाम के कारण रुट बदल दिया। पर लिस्ट से स्टॉप मिला मिला कर वे सेक्ट्रियेट पहुंच गये। वहां से डेली जाने वाली सवारियां बड़ी खुशी से बस में बैंठी। कुछ लड़कियां चढ़ीं ,शायद लंबी चौड़ी बस देख कर चहकने लगी। चालक ने अपनी स्क्रीन पर देख कर घोषणा की’’महिलाएं देख कर पहले अपनी सीटें भरे, बाद में रार न मचे।’’लड़कियां खी खी खी खी हंसतीं हुई, गुलाबी सीटों पर बैठ गईं। लड़कियां बस में सेल्फी लेने लगीं। चालक ने शायद माइक था इसलिए उसमें बोला,’’ कोई इस बस में फोटोग्राफी नहीं करेगा क्योंकि आज इस बस का पहला दिन है।’’ वो माइक उपयोग करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहा था। हर स्टैण्ड पर बस रुकती। इतने में कण्डक्टर ने कहा कि इस बस में कोई भी पास नहीं चलेगा। एक लड़का बोला,’’महिलाओं की भी टिकट होगी।’’जबाब हंसी में एक महिला ने ही दिया,’’नहीं, ये महिलाओं को महिला दिवस का गिफ्ट है तभी तो पिंक सीटें, फूल मालाओं से सजा कर गाड़ी को भेजा है।’’फिर ट्रैफिक पुलिस ने जाम के कारण रुट डाइर्वट कर दिया। इधर भी जाम लग गया। इस रुट पर हमारी बस का कोई स्टॉप नहीं था। लेकिन मौसम खराब देख कर स्टाप पर चालक सवारियां चढ़ा लेता। जाम भूल कर सवारियां इस 36 सीटों वाली, कैमरों वाली, लो फ्लोर बस की मीमांसा करते रहे। इतने में किसी बस के टायर फटने की आवाज आई। चालक, कण्डक्टर कुछ सवारियां कूद कर नीचे उतरे और उन्होंने टायरों का मुआयना किया। अपनी गाड़ी के टायर ठीक देख कर बहुत खुश हुए और लो फ्लोर के कारण चिंतित हुए की सड़क के गढ्डे इन्हें खराब कर देंगे। इतने में बस के अंदर भारी भरकम घण्टे जैसी आवाज़ आई। सब चौंक गये। अब बार बार बस में घण्टे बजने लगे और मुझे मंदिर की फीलिंग होने लगी। चालक ने कहा,’’कौन बार बार दबा रहा है? मैं कैमरे से सब देख रहा हूं। बस साइड में लगा कर दबाने वाले को नीचे उतार दूंगा।’’ कुछ सवारियां बोलीं,’’हमें क्या पता! क्या दबाने से घण्टे बज रहें हैं। पर घंटे बजते ही रहे।’’एक स्टाप पर बस रुकी सवारियां आगे से उतरी, बस चल पड़़ी। एक महिला पीछे से बोली,’’पीछे का गेट खोलो, मुझे उतरना है।’’ चालक ने कहाकि आगे से उतरो। जब वो आगे पहुंची तो बोली,’’उतारो।’’चालक ने कहा कि स्टाप पर ही उतारुंगा, स्टाप पर ही चढ़ाउंगा। स्टॅाप पर उतरते हुए वह बोली,’नई बस चला रहे हो न, तुम्हें इसका घमण्ड है।’’नौ बजे मैं भी अपने स्टाप पर उतरी।
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