वे हाथों से भी खाना ले रहे थे।
जिधर देखो मछली पकड़ने वाली नाव ही नाव थीं। इतने लोगों को यात्रा करते देख, मेरा डर पता नहीं कहां गया! धूप बहुत तेज थी लेकिन हवा बहुत प्यारी थी। पर मेरा ध्यान तो देश के कोने कोने से आये तीर्थयात्रियों, समुद्र और पक्षियों पर था। 30 मिनट में हम बेट द्वारका पहुंच गये। लौटने पर सूरज डूबने को था। मौसम बहुत प्यारा था। अब जेट्टी में पहली सवारी मैं थी। अपनी पसंद की सीट पर बैठी।
ये क्या! मेरी सामने की सीट पर पांच महिलायें घूघंट में, उनके साथ एक बुर्जुग महिला बिना सिर पर पल्लू के आकर बैठ गई।
सवारियां तेजी से भर रहीं थी। सब सागर की सुन्दरता निहारने, आस पास के नजारे देखने में मस्त थे। उस परिवार के मर्द कुछ देर में आकर, उनकी ओर पीठ करके बैठ गये, शायद ये सोच कर की ये भी कुछ देख लें। पर पूरी यात्रा में उनका घूंघट ऊपर नहीं हुआ। जेट्टी चल रही थी लोग समुद्री पक्षियों से खेल रहे थे। उनके साथ की बुर्जुग महिला आस पास से बेखबर नज़ारों का आनन्द उठा रही थी। उसने साथ की महिलाओं से एक बार भी नहीं कहा कि 30 मिनट के लिए वे भी घूंघट ऊपर करलें। बल्कि एक महिला तो उसके आगे ऐसे खड़ी होकर, एंजॉय कर रही थी कि जैसे वह घूघटवाली महिला, महिला न होकर दीवार हो।
जेट्टी के रुकते ही मेरे साथी बोले,’’अरे! पलक झपकते ही किनारा आ गया। धूप न होने से कितना अच्छा लग रहा था।’’ पर मेरा ध्यान तो उन महिलाओं पर ही था जो घूंघट में परिवार के पीछे पीछे जा रहीं थीं।
सवारियां तेजी से भर रहीं थी। सब सागर की सुन्दरता निहारने, आस पास के नजारे देखने में मस्त थे। उस परिवार के मर्द कुछ देर में आकर, उनकी ओर पीठ करके बैठ गये, शायद ये सोच कर की ये भी कुछ देख लें। पर पूरी यात्रा में उनका घूंघट ऊपर नहीं हुआ। जेट्टी चल रही थी लोग समुद्री पक्षियों से खेल रहे थे। उनके साथ की बुर्जुग महिला आस पास से बेखबर नज़ारों का आनन्द उठा रही थी। उसने साथ की महिलाओं से एक बार भी नहीं कहा कि 30 मिनट के लिए वे भी घूंघट ऊपर करलें। बल्कि एक महिला तो उसके आगे ऐसे खड़ी होकर, एंजॉय कर रही थी कि जैसे वह घूघटवाली महिला, महिला न होकर दीवार हो।
जेट्टी के रुकते ही मेरे साथी बोले,’’अरे! पलक झपकते ही किनारा आ गया। धूप न होने से कितना अच्छा लग रहा था।’’ पर मेरा ध्यान तो उन महिलाओं पर ही था जो घूंघट में परिवार के पीछे पीछे जा रहीं थीं।
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