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Monday 27 April 2020

म्ंजिल से ख़ूबसूरत रास्ता!! मथुरा जी की ओर Manjil Se Khubsurat Rasta Mathura ji ki ore Part 1 नीलम भागी



कई बार मथुरा वृंदावन की यात्रा के बारे में लिखने लगती, तभी नई यात्रा का कार्यक्रम बन जाता। यहां के बारे में अपने पर यकीन है कि कुछ भी नहीं भूलूंगी इसलिए इसे तो कभी भी लिख सकती हूं। बाकि जगह तो पहली बार गई हूं फिर जाने का मौका नहीं मिलेगा। इसलिए लौटते ही लिखने बैठ जाती हूं। अनिता सिंह का फोन आया कि मथुरा में सेवा भारती का प्रोग्राम है। 300 रु में 25 नवम्बर को सुबह जाना है, रात को वापिस आना है। स्कूल मेरे घर के पास है इसलिए स्कूल बस मेरेे घर के पास से ही जा रही थी और रात को वहीं उतारेगी। ये सोच कर मैंने तुरंत हां कर दी कि ब्रज भूमि की मेरी यादों का रिविजन भी हो जायेगा और इस बार मैं इस यात्रा को जरुर लिखूंगी। हम सुबह पांच बजे बस में बैठ गईं। नौएडा के कुछ प्वाइंटस पर और साथियों को लेना था। उन्हें लेने में  हर जगह खूब देर लगी। 9.30 बजे हम नौएडा से निकले। मुझे ग्रुप मे जाना बहुत पसंद है। इसलिए मैं देरी को भी एंजॉय कर रही थी। जो भी आता वो बिना पूछे देरी का कारण बताता। उसे सुनती। हां अगर मथुरा जी पहली बार जाती तो शायद देरी के कारण गुस्सा आता। अनिता सिंह गर्मागर्म चाय और खाने का न जाने क्या क्या सामान लाईं थी। चाय ज्यादा पीती हूं इसलिये अपने घर में फीकी पीती हूं। बाहर जैसी मिल जाये वैसी ही पी लेती हूं,। सुबह समय से पहुचने के कारण चाय भी ढंग से नहीं पी थी। परांठे तो खा लिए थे। अनिता जी ने चाय दी मजा़ आ गया। रमेश ड्राइविंग कर रहे थे। आगे की सिंगल सीट जो छोटे लाल की थी, उस पर मैं बैठ गई। जल्दी में डायरी लाना भूल गई थी। रमेश ने कहीं से फाड़ कर दो पेज भी दे दिए। कई बार मथुरा वृंदावन गई हूं पर फिर भी शहर से परिचय करने से मन नहीं भरता। हर बार कुछ नया सा ही लगता है। बस तेजी से आगे बढ़ रही थी लेकिन मेरी याद पीछे चल रही थी। कुछ साल पहले हम लोग गाड़ियों से गये थे। तब के रास्ते और आज के रास्ते में बहुत र्फक आ गया है। तब एक गाड़ी रुकती तो सभी गाड़ियां रुक जातीं। रास्तें में पड़ने वाले ढाबे न जाने कंहा लुप्त हो गये हैं। जहां चाय में धुएं की महक वाले दूध का स्वाद आता था। कहीं ताजे़ अमरुदों से लदा ठेला देखकर, गाड़ी रोक कर अमरुद खरीदते, जिसमें अमरुद वाला चार चीरे लगाकर, उसमें मसाला लगा कर देता। फिर बुर्जुगों का अमरुद के फायदों पर व्याख्यान शुरु हो जाता। व्याख्यान का निष्कर्ष ये निकलता की अमरुद खाने से कब्ज नहीं होती है। और कब्ज सब बिमारियों की जड़ है। इस रफ्तार से हमें पूरा यकीन था कि हमें पहुंचने में शाम होे जायेगी क्योंकि उस ग्रुप में ज्यादातर सीनीयर सीटीजन थे। कहीं भी गाड़ियां रुकवा कर लघुशंका (सू सु )  के लिए चले जाते। थोड़ी चहलकदमी करते। हम बुलाते तब गाड़ी में बैठते थे। और उनकी हरकतों से आनन फानन में भजन मैं भजन बनाने लगती मसलन,’’कैसे आऊं मैं कन्हैया तेरी ब्रज नगरी....। लेकिन आज बस यमुना एक्सप्रेस वे पर दौड़ रही थी। खूबसूरत रास्ता बढ़िया सड़कें। क्रमशः   

9 comments:

maheshshrivastava said...

eagarly waiting

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

Unknown said...

उत्तम लेखन

Unknown said...

उत्तम लेखन

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

ब्रह्मानंद गर्ग सुजल said...

सुंदर

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

Surjeet said...

आपकी बातें मेरे मन को शांत और सुकून देती हैं। मैं इसे प्रतिदिन पढ़ने का प्रयास करूंगा। मेरा यह लेख भी पढ़ें मथुरा में घूमने की जगह