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Sunday 5 April 2020

नवाबज़ादे, शहज़ादे, साहबजादे और .........ज़ादे लॉकडाउन नीलम भागी Nawabzade, Shehzade, Sahabzade aur...Zade Neelam Bhagi....



जिस दिन से लॉकडाउन हुआ है, मेरी सहेली रानो का कोई फोन नहीं आया। मैंने ये सोच कर नहीं किया कि पति और दोनो बेटे घर पर हैं इसलिये नहीं किया होगा। होम मेकर है पति के ऑफिस और बेटों के कॉलिज जाने पर अपने खाली समय में फोन कर लेती थी। आज मैंने फोन करके पूछा,’’आजकल तो जब जी चाहा सो कर उठती होगी। न समय पर ब्रेकफास्ट तैयार करने और लंच पैक करने, बेटों के कॉलिज से लौटने पर गर्म लंच बनाना, अब लॉकडाउन तक.... मैं आगे कुछ बोलती वो तो बीच में ही फट पड़ी बोली,’’ झाड़ू, पोचा, बर्तन खुद ही करना पड़ रहा है। बाप, बेटे जब घर आते इन्हें व्यवस्थित घर मिलता था। इन तीनों से मैंने कभी काम नहीं करवाया। कभी बिमार भी पड़ी तो बाई से खाना बनवा लिया या रैस्टोरैंट से मंगवा लिया। अब काम निपटा कर जैसे ही दो मिनट सांस लेने को बैठती हूं ,पति की चाय या कॉफी की फरमाइश, बना कर ले जाओ तो यार पकौड़े बना ला। जितनी देर में पकौड़े बन कर आये। तो कहेंगे,’’ इसके साथ एक कप चाय और हो जाये।’’बेटे मोबाइल पर रहते हैं, पकौंड़े देखते ही तोहमत लगानी शुरु,’’ हमारी तो तोंद निकल आयेगी, न कहीं आना न जाना। मॉम हमारे लिए तो पापड़ भून लाओ।’’ कोई नाश्ते, लंच, डिनर का समय नहीं। किसी भी वक्त कुछ भी मांग लेना। मैं एक मिनट भी फ्री नहीं हो पाती। बेटों को जब कहती हूं कि मोबाइल बंद करके, मेरी मदद करो। तो मेरे गले में बांह डाल कर जवाब,’’आप इतना काम मत किया करो। रहने दो ना, घर को ऐसे ही। लॉकआउट में कोई मेहमान तो घर आयेगा नहीं। हमारे बस का नहीं है, औरतों वाले काम करना।’’फिर दुखी शक्ल बना कर कहने लगे, ’’मम्मा हम घर में कितना बोर हो रहें हैं!! इंटरनैट के सहारे टाइम पास हो रहा है। अगर इंटरनैट न हो तो सोचो!!’’ मैं बोली,’’बेटा, तब तुम म्यूजिक लगा देना, तुम्हारी बोरियत दूर करने के लिए मैं नाच दिया करुंगी।’’दोनों एक दूसरे की शक्ल देख कर हंसते हुए बोले,’’मम्मा, आप भी बस।’’
   मैं अंकूर के घर गई। सुबह बर्तन, सफाई के लिए मेड आई। छोटे से अदम्य में ने उसके साथ एक झाड़ू लेकर लगाया। वो बर्तन करने लगी तो सुबह जल्दी में श्वेता बैंक, शाश्वत स्कूल और अंकूर ऑफिस जाते समय, जल्दी में कोई जूठा बर्तन इधर उधर छोड़ गया तो अदम्य लाकर किचन में रखता जा रहा था। दिन भर रहने वाली दीदी आई उसकी भी मदद करता। दीदी डस्टिंग करती, वह भी कपड़ा लेकर साथ में करता। घर में कैमरा लगा हुआ है। यह देख कर अंकूर श्वेता हंसते। मैं भी अचानक बच्चों से मिलने चली जाती हूं। शाम को दीदी घर जाती तो उसके जाने पर रोता है। एक दिन दीदी नहीं आई। मैं गई श्वेता मुझे लिफ्ट पर ही मिल गई। देखते ही जाते जाते बोली,’’शाश्वत को काम करने देना।’’जाते ही क्या देखती हूं!! दो कारीगरों से अंकूर ए.सी. फिट करवा रहा था। शाश्वत पॉपअप में टोस्ट बना रहा था। जैम लगाना है कि बटर पूछ कर लगाता। अदम्य सर्विस कर रहा था। ABP चैनल के एक टी.वी.  शो में रुबिका लियाकत ने मुझसे प्रश्न किया,’’आपके कितने बच्चे हैं?’’ मैंने कहा,’’दो, बेटा और बेटी।’’ रुबिका ने पूछा,’’बड़ा कौन है? उनमें कितना अंतर है?’’ मैं बोली,’’ सवा साल बड़ा बेटा है।’’उसने पूछा,’’काम आप किसको करने को बोलती हो?’’मैंने जवाब दिया,’’बेटा, बड़ा है उसे ही बोलती हूं। उसके घर जाती हूं तो जाते ही बेटे से कहती हूं,’’बल्लू बढ़िया सी चाय बना’’ और श्वेता से बतियाने लगती हूं। शुरु में वो बनाने दौड़ती थी। मैं उसका हाथ पकड़ कर बिठा लेती।’’सुनकर खूब तालियां बजीं। लॉकडाउन मेें दोनों मेड नहीं हैं। अंकूर घर से काम करता है। श्वेता को बैंक जाना होता है। शाश्वत ने काम का बटवारा कर दिया है। अदम्य झाड़ू लगायेगा। शाश्वत पोचा लगायेगा, कपड़े फैलायेगा, उतारेगा। सब अपने अपने कपड़े तह लगायेंगे। दोनो भाई डस्टिंग करेंगे। मम्मा खाना बनायेगी और पापा बर्तन मांजेंगे। श्वेता कहती है,’’मां, बहू के सामने, बेटे से दोनो के लिए चाय बनवाने से ही मैने सीखा की बेटों को भी बचपन से काम करने की आदत दो।’’  जो मैं कर रही हूं।





2 comments:

Unknown said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार