कई सालों से हमारे यहां एक फल वाला भइया फल बेचने आता है। ठीक रेट पर अच्छे फल देता है इसलिए हम भी कभी किसी और से ट्राइ ही नहीं करते। रेगुलर है इसलिए दो चार दिन के लिए फ्रिज में भी भर कर नहीं रखते। जिस दिन उसने नहीं आना होता, वह एक दिन पहले हमें बता देता है। लेकिन गांव जाने से पहले वह कभी नहीं बता कर जाता। उसके जाते ही एक दो दिन बाद घर के आगे से गुजरने वाले फल के ठेलों में से ही, कोई भला सा फल वाला गेट के आगे खड़ा होकर ’फल लेलो’ की आवाज लगाता ही रहेगा। जब मैं चेहरे के आगे से अखबार हटा कर देखती हूं तो दूसरा फल वाला बोलता है कि आप जिससे फल लेती हो वो गांव गया है। यह सुनते ही मैं उससे फल ले लेती हूं। वो वाजिब दामों पर बहुत अच्छे फल देता है। अब मैं दूसरे से फल लेने लगती हूं। महीने बाद जब पहले वाला आता है तो जैसे ही गेट पर रुकता है, मैं कहती हूं,’’भइया फल ले लिए हैं।’’ वो पूछता है,’’किससे लिए?’’मैं जवाब देती हूं कि इतने सालों से तुम्हारा नाम नहीं पूछा, उसका पूछ के क्या करुंगी? दो चार दिन में शायद वह खुद ही पता लगा लेता है। फिर दूसरा वाला गेट पर नहीं रुकता और पहले वाला फल देने लगता है। मैं देर से सोती हूं और सुबह देर से जगती हूं। शुरु शुरु में वह कभी जल्दी आया तो मैंने उससे फल ही नहीं लिए। वो समझ गया इसलिए हमारे गेट पर लेट ही आता है। आज बरसात के कारण मैं ज्यादा देर तक सोती रही। मेड आई वोे हंसते हुए बोली,’’दीदी आपके करोंदे के पेड़ पर आम लगे हुए हैं।’’ मैंने उसे रूपए देकर कहा,’’जल्दी जाकर उसे बुला ला, अभी ज्यादा दूर नहीं गया होगा, ज्यादा दूर होगा तो फल खरीद लेना और इन करोंदे के पेड़ पर टंगे आमों के भी पैसे दे देना। ठेला लेकर उसका आना जाना बच जायेगा।’’ करोंदे के पेड़ पर आम लटका कर, वह मुझे बता गया है कि वह कितना रेगुलर है!! बरसात में भी अपने ग्राहकों को फल बेचने आया है। मैंने भी उसकी भावना का सम्मान करते हुए मेड को भेजा है, उससे फल खरीदने के लिए। अगर मेड को वो फल वाला नहीं मिला तो आज करोंदे के पेड़ के आमों से काम चला लेंगे। क्योंकि हमारे यहां दस बजे के बाद वेंडर का आना मना है और अब नौ बज चुके हैं। शायद ही कोई दूसरा आए।
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