अदम्य रीडिंग करना सीख गया है। उसके लिए तस्वीरों वाली बड़े बड़े शब्दों में लिखी किताबें आतीं हैं। कोरोना के कारण ज्यादातर खरीदारी ऑनलाइन होती है। जिसके कारण गत्ते के डिब्बे बहुत हो जाते हैं। श्वेता की छुट्टी थी और बच्चों का नो स्क्रीन डे था यानि टी.वी. मोबाइल सब बंद रखना था। सिर्फ कॉल सुन या कर सकते थे। इसलिये दिन बहुत बड़ा हो गया था। बच्चों को व्यस्त भी रखना था। इसलिए श्वेता ने अदम्य की स्टोरी बुक्स रखने के लिए बुक शेल्फ बनाने की योजना बनाई। इसमें शाश्वत और अदम्य दोनों को शामिल किया। उनकी भी सलाह ली गई। दोनों ने अपना आइडिया दिया। गत्ते का एक बड़ा बॉक्स लिया और एक छोटा।
श्वेता ने अपना एक पुराना टॉप लिया।
शाश्वत ने बॉक्स की लम्बाई चौड़ाई नाप कर टॉप के टुकड़े काटे। अदम्य ने साइडों पर ग्लू लगाया। श्वेता ने उसपर कपड़ा चिपकाया। तीनों ने बहुत लगन से काम किया। मुझे देखने में ऐसा लग रहा था जैसे किसी बहुत बड़े प्रोजैक्ट पर काम किया जा रहा हो। बच्चों के लिए तो खै़र बहुत बड़ा काम था। श्वेता को देख कर मुझे हंसी आ रही थी जो बिल्कुल बच्चों की तरह गंभीरता से लगी हुई थी। हे गुगल करके बच्चे साथ में गाने भी अपनी पसंद के सुन रहे थे और हाथ भी चला रहे थे।
जैसे ही बुक शेल्फ तैयार हुई दोनों ने डांस किया। अदम्य ने अपनी सभी स्टोरी बुक उसमें ला कर लगाईं। ऊपर की सेल्फ का वजन नीचे की सेल्फ पर ना पड़े, इसके लिए श्वेता ने दो गत्तों के बीच में गुलू लगाकर उसको सेंटर में फिट कर दिया। अब बच्चों ने शैतानी बंद करके अपनी बनाई, नई बुक शेल्फ में रखी पढ़ी हुई किताबों को फिर से पढ़ना शुरु कर दिया।
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