एक प्रचलित दंतकथा है कि लगभग 700 साल पहले मां वैष्णव ने कन्या रुप में पंडित श्रीधर को दर्शन दिए थे।
जो उनके अनन्य भक्त थे। वे अपनी पत्नी के साथ रहते थे और मां वैष्णव की भक्ति करते थे। एक बार भैरव नाथ ने उन्हें चैलेंज किया कि जिसकी तूं इतनी श्रद्धा भक्ति करता आ रहा है वो सिर्फ एक कल्पना है। अगर तेरी भक्ति सच्ची है और जिसके प्रति तेरी इतनी श्रद्धा है तो तूं हमें और पूरे गांव के लिए भंडारे का आयोजन कर। सबको न्योता दो। साथ ही अपनी मां वैष्णों को भी भंडारे में आने का निमंत्रण दो। भैरव नाथ की इस बात से श्रीधर बहुत असमंजस में पड़ गए। अब वे मां से प्रार्थना करने लगे कि न तो उनके पास पैसा है न अन्न फिर वे कैसे इतना बड़ा आयोजन करें? श्रीधर की पत्नी ने उन्हें समझाया कि माता रानी जरुर उनकी विनती सुनेगी और भंडारा वितरण होगा। और इसी विश्वास के सहारे उन्होंने भैरवनाथ सहित पूरे गांव को भंडारे के लिए आमंत्रित कर लिया।
नियत समय पर भैरोनाथ और सभी गांववासी वहां पहुंच गए। पर वहां तो न खाने को अन्न न बैठने को स्थान था। पंडित श्रीधर और उनकी पत्नी अपनी मजबूरी मां को बताते हुए प्रार्थना करते हुए रो पड़े। अब माता रानी अपने सच्चे भक्त को कैसे कष्ट में देख सकती है? माता वैष्णों ने अपना चमत्कारी खेल शुरु किया। उनकी दिव्य और अद्भुत शक्तियों ने पंडित श्रीधर के घर को बड़ा किया। ताकि भंडारा ग्रहण करने आए सभी भक्त अच्छी तरह बैठें। ग्रामवासी अभी तो ये देखकर ही हैरान थे। इसी बीच मां वैष्णों ने 56 पकवान भी परोस दिए यह देख भैरोंनाथ गुस्से में आ गए। मां ने अपने भक्त की लाज रखी और त्रिकुट पर्वत की ओर प्रस्थान करने लगी। भैरवनाथ ने मां वैष्णों का पीछा किया।
इस मंदिर का नाम भूमि मंदिर भी है। जैसे एक कहानी की पुस्तक में भूमिका होती हैं। ऐसे ही ये पवित्र स्थान मां वैष्णव की महान कथा की शुरुआत का प्रतीक है।
भूमिका मंदिर में दर्शन ,माता वैष्णों की मूर्ति के साथ साथ देवी की एक और मूर्ति के रुप में हैं। शिव जी का भी मंदिर है। यहां बहने वाले झरने से गिरते हुए जल की आवाज बहुत अच्छी लगती है। बिल्कुल स्वच्छ पानी है। इस बहते पानी में स्नान भी कर रहे थे। और पानी भी ले जा रहे थे। इस पर पुल भी था। जिससे दूसरी ओर ऊंचाई पर बने मंदिर पर जाया जाता है। मंदिर में पुराने पेड़ों ने भी कई आकृतियां बना रखी हैं। प्राकृतिक गुफा हैं। दर्शन के बाद अब मुझे सी.आर.पी.एफ कैंप के पास जाना था। जलवाले गुरुजी ने 2 बजे से वहां भंडारे का आयोजन किया था। हम वहां चल पड़े। वहां हमें कोई नहीं दिखा। अब अशोक जहां जहां भंडारे होते हैं, मुझे लेकर गया। पर कहीं भी अपने लोग नहीं दिखे। अब मेरा कटड़ा भ्रमण, और अच्छी तरह से हो गया। मैंने अशोक से कहा कि मुझे बस स्टैण्ड पर ले चलो। वहां दूर से हमारी बसे खड़ी दिखी। मैं बसे देख कर खुश हो गई और मेरी टैंशन दूर हो गई। ऑटो से उतर कर उसे भाड़ा चुकाया और इनाम दिया। किराया मैं नहीं लिखूंगी। क्योंकि यहां ऑटो मीटर से नहीं चलते हैं। तय किया जाता है। अशोक बता रहा था कि नवरात्रों में यहां झाकियां निकलती हैं। एक जगह से दूसरी जगह जाने में खूब तेल फुकता है और समय लगता है। नवरात्रे आने वाले थे जोर शोर से होने वाली तैयारियां मै जगह जगह देख रही थी। अपनी बस में देखा कुछ लोग प्रशाद के लिए जा रहे थे। मैं भी उनके साथ चल दी। व्यवस्था कैंप के पास ही एक बड़े गेट वाले प्लॉट में थी। अजीत जी के पास एक कुर्सी खाली थी मैं वहां बैठ गई। फूली फूली पूरियां, सब्जी और हलवा परोसा गया। पहला कौर मुंह में रखते ही मैं अजीत जी से बोली,’’यात्रा के हलवाई खाना बहुत स्वाद बनाते हैं।’’वे हंसते हुए बोले,’’यहां कोई हलवाई नहीं है। सब सेवादार हैं। प्रसाद स्वाद ही होता है।’’फिर उन्होंने जिस विभाग में काम करते हैं उसका नाम बताया जो मुझे याद नहीं आ रहा है। कुछ महिलाएं जो मेरे जाने पर प्रशाद खा चुकीं थीं, वे मेरे खाने तक रुकीं और मुझे साथ लेकर बस पर आईं। क्रमशः
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