बिरला मंदिर पिहोवा रोड, कुरूक्षेत्र सरोवर के बिल्कुल नजदीक है। मंदिर में बहुत सुन्दर प्रतिमाएं हैं, सफेद संगमरमर का बना है। सफाई सराहनीय है। यह मंदिर जुगलकिशोर बिरला ने 1952 में बनवाया था और इसका नाम भगवद्गीता मंदिर रखा।
गौड़िया मठ चैतन्य महाप्रभु के समुदाय का है। राधा कृष्ण की प्रतिमाएं है। चैतन्य महाप्रभु फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सम्वत् 1542 को नवद्वीप बंगाल प्रांत में अवतीर्ण हुए और 1580 में ब्रह्मलीन हुए। उन्होंने संर्कीतन की गंगा बहाई। उनको लोग गोेराग महाप्रभु भी कहते हैं। इसलिए इस मठ का नाम गौड़िया मठ पड़ गया है ।
कुरूक्षेत्र में दो बाण गंगा नाम के स्थान हैं। एक दयालपुर गांव के पास व दूसरा नरकातारी गांव में है। कहते हैं कि नरकातारी में अर्जुन ने शरशैया पर पड़े हुए भीष्म की प्यास बुझाई थी और दयालपुर के पास बाण गंगा में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने घोड़ों को पानी पिलाया था। बैसाखी और गंगा दशहरे को यहां मेला लगता है।
ऑटोवाला जहां भी हमें ले जाता, उतारने से पहले बहुत ही संक्षिप्त में हमें उस जगह के बारे में बताता। जिससे उस जगह को देखना बहुत अच्छा लगता था। उसने यह भी बताया कि सिखों के दस गुरूओं में से नौ के चरण भी कुरूक्षेत्र में पड़े हैं। यहां उनके नाम सेे गुरूद्वारे हैं। जब मैं कुछ साल पहले यहां आई थी, तब मैंने श्रीकृष्ण संग्रहालय देखा था। यहां ऐसा लग रहा था जैसे हम महाभारत के युग में पहुंच गए हों। यहां श्रीकृष्ण को कलाकृतियों में महानायक, महान दार्शनिक, कुशल एवं कूट राजनीतिज्ञ एवं प्रेमी के रूप में चित्रित किया गया है। बाईं ओर स्थित साइंस पैनोरमा में महाभारत से संबंधित जानकारी तथा उस युद्ध का चित्रण सजीव लगता है। साथ ही यद्ध में जो आवाजें होती होंगी वेैसी ही आती हैं। मैं तो विस्मय विमुग्ध हो गई थी। क्रमशः
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