कटरा से लगभग तीन किमी़ की दूरी पर सड़क पर ही चामुण्डा देवी का मंदिर है। मंदिर में मूर्ति तक नहीं जाने दिया जाता है। फूलों से सजा मंदिर और माता रानी का श्रृंगार देखते ही बनता है। परिक्रमा करने पर आस पास का प्राकृतिक सौन्दर्य तो है ही बहुत मनमोहक!!
दक्षिणमुखी हनुमान जी हैं। जिनकी पूजा करने पर मृत्यु भय और चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
मंदिर के बाजू में अन्दर से थोड़ा सा चलने पर प्राचीन स्थान गोगा वीर जी का है।
अलग से भी प्रवेश द्वार है। जिनकी पूजा हर मजहब में होती है। हमारे यहां भी होती है और मैं पहली बार उनके स्थान पर हाथ जोड़े खड़ी थी। कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन हमारे परिवार में गोगा नवमीं पर पूजा की जाती है। जिसमें कोई चित्र नहीं होता है। जमीन में बहुत मामूली गड्डा करके उसमें कच्ची लस्सी(पानी में थोड़ा सा दूध) डाली जाती है और उसमें जरा सी सेवइंया या चूरमा जो भी बनाया हो उसे डालते हैं यानि धरती के देवता को भोग लगाया जाता है। पूजा के बाद अम्मा हमेशा कहती कि हमारे कपूरथला में तो गोगा वीर जी का मंदिर है। वहां पत्थर पर देवता(सांप) उकेरे हैं। गुग्गा नवमीं को उस पर पूजा करके आते थे। घर आकर जो बर्तन में थोड़ी कच्ची लस्सी लाते, उसे सारे घर में छिड़कते थे। ऐसा करने से घर में देवता(सांप) नहीं आते। फिर एक बालक को दूध में बनी सेवइयों या चूरमें से जिमाते हैं।
लोक देवता गोगा वीर जी, गुरु गोरखनाथ के परमशिष्य थे। इन्हें हिन्दु और मुसलमान मानते हैं। गुजरात में रेबारी जाति के लोग गोगाजी को गोगा महाराज के नाम से पुकारते हैं। गोरखनाथ जी से संबधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। गोगा जी का जन्मस्थान राजस्थान के ददरेवा(चुरु) चौहान वंश के शासक जैबर(जेवरसिंह)की पत्नी बाछल देवी के गर्भ से हुआ था। बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। एक बार गुरु गोरखनाथ ’गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण में गई। गुरु गोरखनाथ ने उन्हे अभिमंत्रित एक गुगल नामक फल प्रसाद में दिया और पुत्रवती होने का वरदान दिया। कुछ समय बाद बाछल देवी गर्भवती हो गई। समय पर उन्होंने पुत्र को जन्म दिया। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगा जी पड़ गया। उनके जन्मस्थान पर गुरु गोरखनाथ का आश्रम भी है। लोग उन्हें गोगा जी, गुग्गा वीर, राजा मण्डलिक व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। लोक कथाओं व लोकमान्यता के अनुसार गोगा जी को सापों के देवता के रुप में पूजा जाता है। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगा जी की पूजा की जाती है। हिन्दू इन्हें गोगा वीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं। विद्वानों और इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है।
मैंने अपनी 92 साल की अम्मा को गोगा वीर मंदिर की तस्वीर दिखाते हुए बताया कि ये उनका मंदिर है, जिनकी गुग्गा नवमीं पर हमारे यहां पूजा होती है। मैं यहां होकर आई हूं। अम्मा नेे बड़ी श्रद्धा से हाथ जोड़े। अब वे बताने लगीं,’’प्रयागराज में गुग्गु(मेरा छोटा भाई) के जन्म के लड्डू बांटे, बचे लड्डुओं का कनस्तर, उसी कमरे में रख दिया जहां यह मेरे साथ सो रहा था। कोई घर में बधाई देने आया। दादी कमरे में उनका मुंह मीठा करवाने के लिए लड्डू लेने गई तो वहां देवता(सांप)!! दादी हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने लगी। देवता चले गए। दादी इसे गुग्गु कह कर बुलाने लगी और इसका नाम गुग्गु हो गया।’’ शायद दादी को सांप का चले जाना, गुग्गा नवमीं की पूजा का प्रताप लगा हो। उन्होंने अम्मा को जगा कर यह बताया। अम्मा बड़े भाई को बड़े होने पर निक नेम की जगह यशपाल नाम से बुलाती हैं। गुग्गु को उन्होंने कभी अनिल नहीं कहा। अब तो मुझे इस यात्रा में आना अपना सौभाग्य लगा। क्रमशः
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