गोगा वीर जी के प्राचीन स्थान के दर्शन करने के बाद जैसे ही मैं ऑटो में बैठी, अशोक बताने लगा कि अब मैं जहां लेकर जा रहा हूं, ये माई देवा का मंदिर है। इसकी ऊंचाई लगभग अर्द्ध कुंआरी के बराबर है। यह सुनते ही मेरी वैष्णों देवी न जा सकने की तकलीफ़ थोड़ी कम हुई। कटरा चौक से यह 10 किमी. डोमल कटरा रोड पर है। वैष्णों देवी के बाद ये दूसरा यहां का बड़ा मंदिर है। 25 मिनट में हरे भरे खूबसूरत रास्ते से हम यहां पहुंच गए। मंदिर जाने के दो रास्ते हैं। मंदिर तक सीढ़ियां जाती हैं। दूसरा सीढ़ियों के बराबर स्लोब वाला कच्चा उबड़ खाबड़ रास्ता है।
इस पर ऑटो जा सकता है। कोई कोई जाता भी है और सीधा मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचता है। लेकिन हमें सीढ़ियां ही उचित लगी। मंदिर प्रांगण बहुत बड़ा है। सफाई बहुत उत्तम थी। अभी थोड़ा निर्माण कार्य चल रहा था।
मंदिर से आसपास के नजारे बहुत खूबसूरत है।
500 साल पुराना मंदिर है। दूर दूर से भक्त यहां आते हैं। यहां का इतिहास इस प्रकार प्रचलित है। जो यहां के पुजारी हैं उनके पूर्वज श्रीधर यहां के जंगलों पहाड़ों में तपस्या करते थे। फिर उन्होंने कुटिया बना ली थी। उनकी तपस्या पूरी हुई तो माता रानी कन्या रुप में आकर कहने लगी कि तूं मेरा स्थान देखना और आगे आगे पहाड़ी चढ़ती हुई गुफा में पिंडी को अपना निवास बताया। वहीं श्रीधर वैष्णों देवी की सेवा करते रहे। बुजुर्ग होने पर उन्होंने समाधि ले ली। माता रानी ने उन्हें वरदान दिया कि मैं फिर तेरे खानदान वंश में आउंगी। श्रीधर की चौथी पीढ़ी में चार भाइयों में तीन के बच्चे थे। सबसे छोटे बाबा शामी दास के कोई बच्चा नहीं था। उनका मन बदल गया मोह माया सब त्याग कर वे जंगल में घूमते हुए इस स्थान पर पहुंच गए। यहां उन्होंने झोंपड़ी बना ली। वे 12 साल 9 महीने लगातार मां वैष्णों के दर्शन को जाते रहे थे। माता रानी यहां कन्या के रुप में प्रकट हो गई। और कहा कि मैं यहां आ गई हूं अब यहां ही दर्शन करना और यहां एक सौ दस साल रहीं। दूर दूर तक प्रचार हो गया और वे माई देवा कहलाई। उन्होंने कहाकि अब तुम मुझे नहीं देख सकोगे। मै तुम्हें देखूंगी। मेरी एक पिंडी होगी। जो वैष्णों देवी नहीं पहुंच सकेंगे, उन्हें यहां आकर दर्शन करने पर वहीं पुन्य मिलेगा। यहां मनोंकामना पूरी होगी। कहते हैं यहां जिसने जो मांगा, माई देवा ने उसे दिया। दूर दूर से भक्त आते हैं।
सीढ़ियों के पास मुझे चार बच्चे मिल गए जो छात्र थे। शीपिला, शकीला और रुक्साना जो आठवीं, पांचवी और आंगनवाड़ी में पढ़ती हैं। साहिल कुमार नवमीं में पढ़ते हैं। वे बताने लगे कि कोरोना महामारी के कारण भक्त कम हैं इसलिए आपको शांति लग रही है। मैंने बच्चों से पूछा कि पढ़ाई तो ऑनलाइन चल रही होगी! वे कोरस में बोले कि हमारे पास मोबाइल नहीं है। इसलिए ट्यूशन पढ़ने जाते हैं। ये सब माई देवा मंदिर के पास रहते हैं। एक महिला छोटे से खेत में काम करती हुई आ गई। मैंने उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम वैष्णों बताया। मुझे अपनी बेटी याद आ गई। उसका नाम मैंने उत्कर्षिनी रखा जो मां दुर्गा का एक नाम है। कोरोना महामारी न आती तो शायद ये मंदिर तक जाने वाला स्लोब भी पक्का बन गया होता जिस पर अब वाहन चलते। क्रमशः
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