अखिल भारतीय साहित्य परिषद कार्यकर्त्ता प्रबोधन कार्यशाला में पूरे देश से चयनित कार्यकर्ताओं का सहभाग रहा । इस आयोजन का केन्द्रीय विषय था, भाषा की एकात्मता और इसके अतिरिक्त कई उप विषयों पर गहन चिंतन हुआ । सार्थक आयोजन रहा।
जहां देश की सभी भाषाओं के साहित्यकारों ने भाग लिया। हमें वरिष्ठ साहित्यकारों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। समापन के साथ ही घूमने जाने वालों ने अपनी लौटने की टिकट पुरी से करवाई थी, वे ग्रुप में गाड़ियां बुक कर रहे थे जो उन्हें भुवनेश्वर ,कोणार्क दर्शन कराते हुए पुरी छोड़ेंगे। वे जगन्नाथ जी के दर्शन करके वहां से अपने शहर लौटेंगे। ग्रुप में कैब करने पर भी शेयर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बराबर ही पड़ रहा था। मैं तो आयोजन से पहले ही सब दर्शन कर आई थी। मुझे अगले दिन सुबह 9:00 की राजधानी में रिजर्वेशन मिला था। यहां शेयरिंग ऑटो बहुत सस्ता है ₹10 में दूर-दूर तक ले जाते हैं। मुझे कोई काम तो था नहीं। भुवनेश्वर घूम चुकी थी अब शहर से परिचय करने के लिए घूमती रही। साइकिल ट्रैक, दीवारों पर चित्रकारी, साफ सुथरी सड़कें , व्यवस्थित ट्रैफिक। सबसे ज्यादा मुझे प्रभावित किया कुछ जगहों पर सेंट्रल वर्जेज जिसमें लोहे की जगह बांस से पौधों की सुरक्षा की गई है। कल स्टेशन जाने की भी चिंता नहीं थी, क्योंकि होटल स्टेशन के पास था। अब रात्रि भोज के लिए बहुत जल्दी, आयोजन स्थल पर गई। वहां चाय कॉफी स्नैक्स लगे हुए थे और साथ ही डिनर भी। जिसको भी गाड़ी पकड़नी है, वह कुछ भी खा कर जा सकता है यानि उत्तम व्यवस्था। मैं भी खाना खाकर होटल आ गई और पैकिंग करके जल्दी सोने लगी लेकिन सुमधुर गाने की आवाज़ से नींद खुल गई लिंक लगा रही हूं।
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रात 12:00 बजे आकर सोई। सुबह 8:15 बजे मैं स्टेशन पर पहुंच गई थी।
क्रमशः
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