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Monday 22 July 2024

हमारा बच्चा खाता नहीं है अरे! उसे ..... नीलम भागी

 

    उत्कर्षनी अमेरिका से आई। समय कम होने के कारण, मुझे अपने साथ ही मुंबई ले गई क्योंकि उसकी मीटिंग रहतीं हैं।  और मैं बच्चियों के साथ समय बिता लूं ,इस भावना के साथ क्योंकि बहुत कम  समय के लिए आती है। गीता तो मेरे साथ ही रहती थी, लेकिन दिव्या वहां पैदा हुई है। वह मुझसे बहुत देर में मिक्स हुई। शाम को मैं दोनों को पार्क ले जाती थी। वहां सब बच्चे बबुआ बने हुए, इंग्लिश बोलते हुए, अजीब अजीब नाम के मसलन तिया, दिया, लिया आदि। सब बच्चों के साथ मेड और हर एक मेड के हाथ में एक खाने का बॉक्स जो खुला ही रहता था और  मेड के हाथ में पकड़ा चम्मच भरा ही रहता था। मेड जैसे ही बच्चे का मुंह खुला देखती, उसके मुंह में चम्मच ठूस देती। इसलिए बच्चे अपनी मेड के पास आना पसंद नहीं करते थे लेकिन मेड झूलों के पास जमघट लगाए रहतीं। यानि वे अपनी  ड्यूटी बहुत ईमानदारी से करतीं ।


वहां अमेरिका में उत्कर्षनी लेखन, घर संभालना, बच्चे संभालना सब खुद से करती है। जब मुंबई में थी तो गीता के लिए अलग मेड रखी हुई थी। गीता खुद से खाना ही नहीं जानती थी। छोटी दित्या पर मैं हैरान!  खुद से खाना खाती थी। मैंने उत्कर्षनी से पूछा," बेटी यह तो बड़ी समझदार है! खुद खाती है।" उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया," मां, वहां सब बच्चे खुद खाते हैं। जब गीता को वहां मैं अपने  हाथ से खिलाती तो सब हैरान होकर मुझे देखते थे। दित्या जब बैठने  लगी तो इन्फेंट चेयर पर उसका टॉप बर्तनों की तरह, अच्छी तरह साफ किया जाता। उसकी प्लेट उस पर रखी  जाती। वह हमें गुस्से से देखी। फिर देखते ही सारा खाना पलट देती।




हम परवाह नहीं करते हालांकि खिलाने से ज्यादा समय, सफाई करने में हमारा लगता। अब खाना तो समय से मिलने पर भूख लगी होती। तो ट्रे पर बिखरा हुआ, चुन चुन के खाने लगती। ऐसे में ही थोड़ी हम मदद भी कर देते हैं। जब लिक्विड खाना होता तो उसमें शुरुआत में मदद की।  इसी तरह से धीरे-धीरे वह खाना सीख गई। मैं पार्क में सिर्फ पानी की बोतल लेकर जाती।


बच्चियां खेल कर आते ही अपने शूज रैक में रखती, अपने हाथ  धोती। उनके आगे प्लेट में खाना लगा दिया जाता। आराम से खा लेतीं। और चाहिए होता तो "मोर प्लीज" कहती, मैं और दे देती। और मुझे वह बच्चों की मेड याद आतीं, जो घर जाने से पहले कीमती खाना, वहां डस्टबिन में चुपचाप डाल देती। नहीं तो मैडम पूछती खाना  क्यों नहीं खिलाया? क्योंकि बच्चों को पता ही नहीं की भूख क्या होती है? जब भूख ही नहीं पता तो स्वाद का भी क्या पता होगा? पर कभी-कभी दित्या को भी मैं, गीता की तरह अपने हाथ से खिलाने लगती। तो  उसी समय गीता भी आकर, अपना मुंह खोल देती। यह देखकर उत्कर्षिनी हंसने लगती। बहुत जल्दी उनके लौटने का समय हो जाता।



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