95 वर्षीय अम्मा 31 जनवरी को मेरे बाजू में लेटी भजन गाती हुई, एकदम बोली," मेरे पास 5 मिनट हैं। जल्दी से सबको बुलाओ और मुझे दूसरे कमरे में ले जा।" घर में आवाज लगाते हुए, मैं ले गई। मैं सोफे पर बिठाने लगी तो बोली,"यहां नहीं दरवाजे के सामने दरी बिछा, उस पर लेट्यूंगी।"मैंने उनकी बात नहीं सुनी, फटाफट कुर्सी रखकर उस पर बिठाकर, उनके पीछे हीटर लगा दिया ताकि ठंड न लग जाए। उनके बताएं निर्देश के अनुसार दरवाजे के सामने गद्दा बिछाया। उन्होंने कहा,"इस दरवाजे की सब कुंडिया खोल दो, आगे से पर्दा हटा दो पर मैंने दरवाजा नहीं खोला ठंडी हवा के कारण, साथ ही सबको खबर कर दी। आधा घंटा पहले ही उनके पास 2 घंटे बैठकर अनिल दुकान पर गया था। अब सब आने लगे और अम्मा अपने अंतिम समय में करने वाले दिया बत्ती का मुझे निर्देश देती रही, गंगाजल का घूंट भरकर, मुंह में तुलसी दल रखा और प्रभु से विनती करती रही, हे प्रभु मुझे अपने चरणों में शरण दो। ऐसा सीन बन गया था कि लग रहा था हम अम्मा को जाते हुए देखेंगे और अम्मा हाथ जोड़े प्रार्थना कर रही थी। फिर धीरे-धीरे सब अम्मा से बतियाने लगे और उनका ध्यान बट गया। 11:15 बजे मैंने सबसे कहा कि आप लोग भी जाओ, आराम करो। अम्मा को लेकर उनके कमरे में आ गई। मनु और शोभा काफी देर तक बैठे रहे। शोभा ने कहा कोई डर की बात नहीं है फिर वे चले गए। और रात भर अम्मा सोई नहीं, थोड़ी-थोड़ी देर बाद सामने घड़ी लगी होने पर भी समय पूछती रही और ना लाइट बंद करने दी। मैं बीच-बीच में सोती रही और उनको समय बताती रही। सुबह 5:45 पर मैंने कहा, "अम्मा सूरज निकल आया है इसलिए भैंसे वाला चला गया है।" अम्मा चुपचाप फिर अपने रोज के रूटीन में आ गई लेकिन हमेशा की तरह 2 घंटे पूजा पाठ नहीं किया। शायद रात भर जागने से दिन में हिम्मत ही नहीं बची थी। पर उस दिन से अम्मा जरा भी अकेले नहीं बैठती।
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