Search This Blog

Showing posts with label # Budhanilkantha Temple Nepal. Show all posts
Showing posts with label # Budhanilkantha Temple Nepal. Show all posts

Monday 16 May 2022

बुढ़ानीलकंठ काठमांडु नेपाल यात्रा भाग 31 नीलम भागी Nepal Yatra Part 31 Neelam Bhagi

 



हमारी गाड़ियां अब बहुत खुले रास्ते से जा रहीं हैं। चौड़ी सड़कें जिसके दोनो ओर हरे भरे पेड़ है। और सामने पहाड़ दिखते हैं।


काठमांडु से 10 किमी. दूर शिवपुरी की पहाड़ियों पर विष्णु जी का बहुत सुंदर और आर्कषक मंदिर है। जो अपनी नक्काशियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर का बुढ़ानीलकंठ नाम प्रसिद्ध है। गाड़ियां एक लाल रंग के मंदिर के आगे हमें उतारती हैं। सीढ़ियां चढ़ कर और सीढ़िया उतर कर, हम मंदिर प्रांगण में आते हैं। यहां बीच में ऊँची बाउण्ड्री से घिरा स्क्वायर हैं।




जिसके आमने सामने दो रास्ते हैं एक ओर से एक समय में आराम से एक व्यक्ति जा सकता है।

दूसरी ओर से बाहर निकलते हैं। जिससे लाइन अपने आप बन जाती है। वहां देखती हूं विष्णु जी की यहां शयन प्रतिमा(सोती हुई) विराजमान है। यह प्रतिमा अपने आप में अद्भुत है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु की यह विशाल मूर्ति एक ही पत्थर बेसाल्ट के काले पत्थर से तराशी गई है। जिसकी लम्बाई लगभग 5 मीटर है और तालाब की लंबाई करीब 13 मीटर है। यह ब्रह्मांडीय क्षीरसागर का प्रतीक है। विष्णुजी की मूर्ति शेषनाग की कुंडली पर विराजित है। मूर्ति में विष्णु जी के पैर पार हो गए हैं। भगवान विष्णु इसमें चर्तुभुज अवतार में हैं। उनकी इस प्रतिमा में विष्णु जी के चार हाथ उनके दिव्य गुणों को बता रहें हैं। पहले हाथ का चक्र मन का प्रतिनिधित्व करना, एक शंख चार तत्व, एक कमल का फूल चलती ब्रह्मांड और गदा प्रधान ज्ञान को दिखा रही है। शेषनाग के 11 कीर्तिमुख हैं जो भगवान विष्णु की ओर मुंह किए हुए हैं। इस मंदिर को नेपाल की स्थानीय भाषा में नारायन्थान मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि नेपाल का शाही परिवार यहां के दर्शन नहीं कर सकता।



    लोगों का मानना है कि भगवान शिव मंदिर में अप्रत्यक्ष रुप से विद्यमान हैं जबकि भगवान विष्णु प्रत्यक्ष मूर्ति के रूप में विराजमान हैं। बुढ़ानीलकंठ के पानी को गोसाईकंुड से उत्पन्न माना जाता है। अगस्त में होने वाले वार्षिक शिव उत्सव के दौरान झील के पानी के नीचे शिव की एक छवि देखी जा सकती है।

 मंदिर के बारे में पौराणिक कथा है कि जब समुद्र मंथन के समय समुद्र से हलाहल यानि विष निकला तो सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए इस विष को शिवजी ने अपने कंठ में ले लिया और तभी से भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ा। जब जहर के कारण उनका गला जलने लगा तो वे काठमांडू के उत्तर की सीमा की ओर गए और एक झील बनाने के लिए अपने त्रिशूल के साथ पहाड़ पर वार किया और इस झील को गोसाईंकुंड के नाम से जाना जाता है।

   बुढ़ानीलकंठ मंदिर का इतिहास- सातवीं शताब्दी में यहां समुद्रगुप्त का आधिपत्य था। वे वैष्णव संप्रदाय के थे। उन्होंने भगवान विष्णु की क्षीरसागर पर शयन करते हुए मूर्ति का निर्माण करवाया और उसे जल में रखवाया। नेपाल के स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार समय के साथ कोई कारण रहा होगा कि यह मूर्ति विलुप्त हो गई। कई सदियों के बाद मल्ला राजवंश के समयकाल में एक किसान को यह मूर्ति  फिर मिली। हुआ यूं कि किसान अपनी पत्नी के साथ खेत जोत रहा था। उसका हल एक भारी चीज से टकराया। जब वहां खोदा गया तो उसमें से यही मूर्ति निकली। इसके बाद वहां राजाओं द्वारा बुढ़ानीलकंठ मंदिर का निर्माण करवाया गया। 

  यहां हर वर्ष कार्तिक मास की एकादशी को विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें श्रद्धालु लाखों की संख्या में उपस्थित होकर भगवान विष्णु की इस अद्भुत प्रतिमा के दर्शन करते हैं। दर्शन करने के बाद मैं सबके आने का इंतजार कर रही हूं और मैं आस पास देख भी रही हूं। जहां पहाड़ों की गोद में विकास हो रहा है। सबके आते ही अब गाड़ियां चल पड़ीं हैं। क्रमशः