जय प्रकाश गुप्ता ने धर्म यात्रा के बैनर तले 20 मार्च से 31 मार्च तक नेपाल
टूर के लिए ग्रुप बनाया तो देश भर से यात्री उसमें जुड़ गए। सायं 4.30 पर आनन्द विहार रेलवे स्टेशन पर सब मिले और
यात्रा शुरु हुई।
गाड़ी चलते ही बहुत मधुर स्वर में भजन गाने की
आवाज़ आई, जिसका कोरस बहुत बढ़िया था
मैं आवाज की दिशा में चल दी। देखा हमारे ग्रुप के सहयात्री गा रहे हैं। जय प्रकाश
गुप्ता जी यात्रा संयोजक ताली बजा कर नाच रहें हैं। 21 को शाम 6 बजे रक्सौल से
सब वीरगंज होटल की ओर चल दिए। यहां खाना खाकर रात 11 बजे पोखरा के लिए निकले।
गुप्ता जी(68 वर्षीय) पहली बार मुक्तिनाथ और नेपाल( पहले कई बार टूर
करवाया है) का दस दिवसीय 60 लोगों का टूर
लेकर जा रहें हैं। अकेले मैनेज़ कर लेंगे!
यहां कुछ सहयात्रियों को देख कर अंदाज हो गया
कि ये टूर बहुत मजेदार रहेगा। पहले
मोटी सवारियों ने गुप्ता जी को घेरा कि सीटें छोटी हैं। दो सीटों पर एक सवारी
बैठेगी! दूसरा ग्रुप बोला,’’ए.सी. वाली बस
मंगाओ। हमने तो ए.सी. के बिना कभी सफ़र ही नहीं किया।’’कुछ सवारियों ने ही समझाया कि पहाड़ों पर इसी साइज़ की बसें
चढ़ती हैं। आप पोखरा तक जाओ। जरा भी ए.सी. की जरुरत होगी तो बसें बदल देंगे। गुप्ता
जी ने सब सिचुएशन हैंडिल कर ली। मौसम तो बस चलते ही बदल गया, हवा बहुत प्यारी थी। रास्ते में ज्यादा उद्योग
और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के नाम पवित्र नदी गंडकी और मुक्तिनाथ पर थे मसलन
मुक्तिनाथ विकास बैंक आदि शहर सीमा समाप्त अब अंधेरा। उजाला होते ही यहां की
खूबसूरती!! जिस प्राकृतिक सौन्दर्य को मैंने देखा और महसूस किया उसका वर्णन करने
की तो मेरी औकात ही नहीं है। विस्मय विमुग्ध सी मैं बाहर देखती जा रही हूं।
11ः45 पर हम होटल पहुंचे। मैं इस हिसाब से चलती थी
कि ये लाए हैं स्टे भी देगें और खाना, पानी, टिकट, ट्रॉली भी, इसलिए आराम से इंतजार करती हूं। खाना भी सबसे बाद में खाने
जाती, मेरे खाने के बाद भी बचा
होता।
22 मार्च को लंच के
बाद पोखरा भ्रमण को निकले। आठ झीलों वाला गेटवे ऑफ अन्नपूर्णा सर्कट पोखरा का तो
कोना कोना दर्शनीय है। यह बड़ा शांत, सादगी भरा, प्राकृतिक
खूबसूरती से भरा और हिमालयी पहाड़ों से घिरा शहर है। गुप्तेश्वर महादेव गुफावाला मंदिर भगवान शिव
को समर्पित है। मंदिर तक जाने के लिए घुमावदार सीढ़ियां हैं। गुफा के अन्दर टपकते
हुए पानी में जाने से कुछ अलग सी अनुभूति होती है। इस गुफा के अंदर जाने के बाद एक
बड़ी जगह है जहाँ शिवलिंग स्थापित हैं।
महेन्द्र गुफा
में भगवान शिव की एक प्रतिमा के साथ कई स्टैलेक्टाइट्स और स्टैलेग्माइट्स हैं।
इससे दस मिनट की दूरी पर चमगादड़ गुफा है।
शांंित
स्तूप(वर्ड पीस पगोड़ा) के हर तरफ पहाड़ ही पहाड़ हैं। यह अनाडू पर्वत पर स्थित उनमें
बसा यह स्तूप दर्शनीय बौद्ध स्मारक है जो विश्व शांति को समर्पित है। यहां से फेवा
मीठे पानी की नेपाल की दूसरी सबसे बड़ी झील दिखती है। पुराना बाजार में स्थानीय
हस्तशिल्प, सांस्कृतिक पोशाक और धातु
की वस्तुएं आप ले सकते हैं। ट्रैकिंग करने के लिए बहुत बढ़िया जगह है। इंटरनेशनल
माउंटेन म्यूजियम, सारंगकोट पोखरा
नेपाल, गोरखा मेमोरियल संग्राहलय
है। डेविस फाल पोखरा नेपाल, घोरपानी हिल्स
पोखरा नेपाल, ताल बाराही मंदिर,
विंध्यवासिनी मंदिर, सेटी गंडकी नदी, डेविस फॉल, अन्नपूर्णा तितली
संग्राहलय, झंडों से सजा तिब्बती
शरणार्थी शिविर आदि जा सकते हैं। होटल पहुंचते ही डिनर किया सो गए।
24 मार्च को सुबह पांच बजे मुक्तिनाथ धाम के लिए निकले।
अन्नपूर्णा रेंज से आंखें नहीं हट रहीं थी।
कुछ ही समय बाद हम गलेश्वर महादेव पहुंच गए। 9 रोपनी(4578.48 मीटर वर्ग)के क्षेत्र को कवर करते हुए बड़े चक्र-शिला पर गलेश्वर मंदिर
श्रद्धालुओं की आस्था के कारण, मुख्यमंदिर को
दूसरे पशुपति के नाम से भी जाना जाता है। पास में ही काली गंडकी और राहु नदी का
पवित्र संगम है। धार्मिक, ऐतिहासिक और
पौराणिक दृष्टि से स्थान बहुत पवित्र है। गलेश्वर मंदिर प्रत्येक दिशा में
आश्चर्यों से घिरा है। पश्चिम में पुलस्त्य पुल्हाश्रम तीन महान शिव को समर्पित,
प्रसिद्ध ऋषि पुल्हा, पुलत्स्य और विश्ररवा जो यहां ध्यान, साधना करते थे। पुलस्त्य और पुल्ह भगवान ब्रह्मा के पुत्र
थे और विश्रवा पुलस्त्य ऋषि के पुत्र महान विद्वान थे। जनश्रुति है कि विश्रवा ऋषि
के पुत्र लंकेश्वर रावण का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। पुल्हाश्रम के पास रावण की
नाभि दफन स्थान है। इसी के आधार पर पुलस्त्य आश्रम को रावण का जन्मस्थान भी कहा
जाता है। उनका विवाह मुक्ति क्षेत्र में ठक-खोला के स्थानीय ठकाली की बेटी मंदोदरी
से हो गया था।
पूर्व में
गायत्री माता मंदिर और कृष्ण गंडकी, सप्तऋषियों का प्रायश्चित स्थान, 108 शिवलिंगम और ऋषभदेव के पुत्र की तपस्या गुफा भी है।
शिव सति के शरीर को लेकर कृष्ण गंडकी के
किनारे हिमालय पर्वत की ओर जा रहे थे तो यहां सती का गला गिरा और यह गलेश्वर
कहलाया। बाद में ज्योतिर्लिंगेश्वर की व्युत्पत्ति होती है। मर्हिर्षयों और संतों
ने यहां ध्यान किया तभी तो गलेश्वरधाम को ध्यान भूमि भी कहते हैं। जलबरहा कुंड
शुष्कमौसम में भी नहीं सूखता।
प्राकृतिक सौन्दर्य जितना मनोहारी है रास्ता
उतना ही खतरनाक। क्योंकि 75ः ऑफ रोड है। इस
यात्रा के दौरान हिमालय के एक बड़े हिस्से को लांघना होता है। बायीं ओर चट्टानी
पर्वत तो दायीं ओर काली गण्डकी नदी की जलधारा अठखेलियां करती है। अनगिनत छोटे बड़े
झरने रास्ते की खूबसूरती को और बढ़ा रहें हैं।
अब बहुत खूबसूरत
रास्ता और जोमसोम जो नेपाल के गंडकी प्रदेश में 2700 मीटर(8,900 फीट) की ऊँचाई
पर है। धौलागिरी और नीलगिरि की ऊँची चोटिया ंतो हैं। काली गंडकी पवित्र नदी इसके
बीच से होकर बहती है। जिसके किनारों पर
शालिग्राम पाए जाते हैं जो हमारी संस्कृति में भगवान विष्णु के प्रतीक हैं। यहां
से मुक्तिनाथ की दूरी 23.9 किमी. है। 11 बजे से यहाँ तेज हवाएं चलने लगती हैं।
अब बिल्कुल सूखे
पहाड़ हैं। एक ही रास्ते में हमने प्रकृति के कई रुप देखे। 5 बजे होटल में आते ही खाना खाकर सो गई। सुबह गर्म कपड़ों से
लैस होकर मुक्तिबाबा के द्वार पर पहुंच गई। मैं सीढ़ियां चढ़ने लगी। थोड़ा बैठती,
चीनी खाती, पानी पीती और गहरे सांस लेती फिर चढ़ने लगती। अंतिम सीढ़ी पार
करते ही यहां तो चारों ओर इतना खुशनुमा माहौल है कि मैं लिखने में असमर्थ हूं। 3800 मी की ऊंचाई पर स्थित मंदिर जिसकेे दक्षिण में
बर्फ से ढकी अन्नपूर्णा पर्वत की सुंदरता मन मोहती है और उत्तर में तिब्बती पठार
का खूबसूरत दृश्य है। वहां हम बाबा मुक्तिनाथ के दर्शनों कर रहें हैैं। यहां की
सुन्दरता, श्रद्धालुओं के चेहरे से
टपकती श्रद्धा को आंखों के कैमरे से दिल में उतारती हूं। नहीं लिख पा रहीं हूं कि
कैसा माहौल है !! असीम मानसिक शांति मिल रही है। आवाज़ है तो केवल मुक्तिधारा के
पवित्र पानी की और भक्तों द्वारा बजाए जा रहे शंख घण्टों की। मंदिर में प्रवेश
करने से पहले सामने दो मुक्ति कुंड हैं देवी लक्ष्मी और सरस्वती कुंड। इसमें गंडकी
और दामोदर कुंड की जलधारा आती है। ऐसा विश्वास है कि जो इसमें डुबकी लगाता है। वह
नकारात्मक गतिविधियों से मुक्त होगा। ’’मुक्तिनाथ’’ नाम के महत्व का
एक धार्मिक अर्थ है। यह दो शब्दों का मेल है। ’’मुक्ति’’ मोक्ष या निर्वाण
का प्रतीक है और नाथ शब्द स्वामी या भगवान का प्रतीक है।
दो मुक्ति कुंड
के सामने मुक्तिनाथ मंदिर की शक्ति को गंडकी चंडी और भैरव को चक्रपाणी के रुप में
संबोधित किया जाता है। माना जाता है कि सति का सिर यहां गिरा था। यह शक्तिपीठ है।
अब मैं मुक्ति-नारायण क्षेत्रम में आ गई हूं। मेरे बाएं हाथ पर अग्निकुंड है और
सामने श्री मुक्तिनाथ का निवास स्थान है ’’मुक्ति’’लक्ष्मी और
सरस्वती और गरुण के साथ सामने हैं। मुक्तिनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की सोने की
मूर्ति है।
मैं हाथ जोड़े दर्शन करती हूं। मेरे तिलक लगता है
और बाहर आती हूं।
मंदिर के पीछे 108 मुक्ति धाराएं गौमुखों से लगातार बहतीं हैंं।
दामोदर कुंड से गंडकी उद्गम का जल गौमुख से लगातार बहता है। हिन्दू और बौद्ध दोनों
की आस्था है मुक्तिनाथ धाम में यह धाम यह दिखाने का एक आदर्श उदाहरण है कैसे दो
धर्म एक ही पवित्र स्थान को आपसी सम्मान और समझ के साथ साझा कर सकते हैं।
मुक्तिनाथ क्षेत्र(धरती
का स्वर्ग) धाम के दामोदर कुण्ड जलधारा और गण्डकी नदी के संगम को काकवेणी कहते
हैं। इस जगह तर्पण करने से 21 पीढ़ियों का
उद्धार होता है।
रामायण के रचियता महर्षि वाल्मिकी का आश्रम भी
गण्डकी नदी के किनारे स्थित था।
महादेव मंदिर और
चार धाम, यह प्रवेश द्वार के बाईं
ओर स्थित है। यह चार छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है।
विष्णु पादुक
मंदिर भगवान विष्णु के चरण कमल, मुख्य मुक्तिनाथ
मंदिर के दाईं ओर मंदिर है। इसमें भगवान विष्णु के पैरों की छाप के साथ नीलकंठ
वर्णी(शवमी नारायण) की छवि भी शामिल हैं। जो एक बाल योगी हैं। वे ध्यान में एक
पावं पर खड़ें हैं। 2003 में उनके
अनुयायियों ने मुक्तिक्षेत्र में उनके लिए स्मारक बनाया जिसे विष्णु पादुका
मंदिर(स्वामी नारायण स्मारका) यज्ञशाला साम्बा गोम्पा, ज्वालामाई मंदिर, पताल गंगा, नरसिंह गोंपा
आदि। यहां के मुख्य आर्कषण हैं।
लौटते में श्री गलेश्वर होटल मदरलैंड इन,
जिला मैग्दी पर इतने कम समय में छोटी सी जगह
में 70 लोगों के लिए डिनर तैयार
किया, खाते ही चल पड़े। रात दो
बजे होटल पहुंच कर सो गए।
सुबह नाश्ते के बाद अगली यात्रा और हम मनोकामना
मंदिर प्रवेश द्वार पर पहुंचे। जो पोखरी थोक बाज़ार से 12 किमी. दक्षिण, तनहू के आबूखैरेनी से 5 किमी. पूर्व और
चितवन के मुग्लिन से 26 किमी. उत्तर
में समुद्र सतह सें 1306 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। इस मंदिर के परिसर से
दक्षिण की ओर महाभारत झील और उत्तरी भाग में अन्नपूर्णा हिमालय और मनास्लु हिमालय
की चोटियां देखीं।
मन कामना केबल कार ने खूबसूरत रास्ते से
मनोकामना देवी मंदिर, 14 मिनट में
मंदिर प्रांगण में पहुंचाया। यहां से सूर्योदय
और सूर्यास्त का मनमोहक दृश्य देखा जा सकता है। श्रद्धालुओं की बहुत भीड़ है। मंदिर
में दांए बाएं दोनो ओर से लाइनें आ रहीं थीं। मंदिर के पीछे एक मंडप था उसमें बकरे,
कबूतरो और मुर्गों की बली दी जाती है। दर्शन के
बाद लंच करके चितवन की सुन्दरता निहारते
काठमांडु चल दिए।
रात 11 बजे काठमांडु पहुंचे।
सुबह पशुपति नाथ परिसर में मेरे दाएं हाथ पर
बागमति नदी के किनारे शमशान घाट है। 3 घण्टे लाइन में लगी। इस बीच अनोखी बातें, परंपराएं देखी, सुनी, सत्संग जिसमें भक्ति
नृत्य चल रहा है लाइन में लगे भी नाच रहें हैं का आनन्द उठाया, लक्षबत्ती देखी और द्वार पर पहुंच गए।
पशुपतिनाथ मंदिर का मुख्य परिसर नेपाली
शिवालय स्थापत्य शैली(पगौड़ा शैली) में निर्मित है। मंदिर की छतें तांबे की बनी हैं
और सोने से मढ़ी गईं हैं। मुख्य दरवाजे चांदी से मढ़े हैं। मंदिर का स्वर्ण शिखर
गजूर कहलाता है। आंतरिक गर्भगृह में भगवान शिव की मूर्ति है। बाहरी क्षेत्र एक
खुला स्थान है जो एक गलियारे जैसा दिखता है। मंदिर परिसर का मुख्य आर्कषण
पशुपतिनाथ का वाहन नंदी बैल की विशाल स्वर्ण प्रतिमा है।
पशुपतिनाथ के
मंदिर में लगभग 492 मंदिर,
15 शिववालय(भगवान शिव के मंदिर) और 12 ज्योर्तिलिंग(फालिग तीर्थ)हैं। परिसर के भीतर
दो गर्भ ग्रह हैं। एक भीतरी और दूसरा बाहरी। मंदिर एक मीटर ऊँचे चबूतरे पर स्थापित
है। मंदिर के चारों ओर पशुपतिनाथ जी के सामने चार दरवाजे हैं। दक्षिणी द्वार पर
तांबे पर सोने की परत चढ़ाई गई है। बाकि तीन पर चांदी की परत है। मंदिर की संरचना
चौकोर आकार की हैं। मंदिर की दोनो छतों के चार कोनों पर उत्कृष्ट कोटि की कारीगरी
से सिंह की आकृति उकेरी गई है। मुख्य मंदिर में महिष रुपधारी भगवान शिव का शिरोभाग
है। गर्भ ग्रह में पंचमुखी शिवलिंग का विग्रह है जो कहीं और नहीं है। मंदिर परिसर
में अनेक मंदिर हैं, जिनमें पूर्व की
ओर गणेश मंदिर है। मंदिर के प्रांगण की दक्षिणी दिशा में एक द्वार है, जिसके बाहर एक सौ चौरासी शिवलिंगों की कतारें
हैं।
पशुपतिनाथ मंदिर के दक्षिण में उन्मत्त के
दर्शन होते हैं। पशुपतिनाथ लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख हैं और ऊपरी
भाग में पांचवा मुख है। प्रत्येक मुखाकृति के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। प्रत्येक
मुख अलग अलग गुण प्रकट करता हैं। पहला मुख ’अघोर’ मुख है, जो दक्षिण की ओर है। पूर्व मुख को ’तत्पुरुष’ कहते हैं। उत्तर मुख ’अर्धनारीवर’ रुप है। पश्चिम
मुख को ’सद्योजात’ कहा जाता है। ऊपरी मुख ’ईशान’ मुख के नाम से
पुकारा जाता है। यह निराकार मुख है। यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है।
गुह्येश्वरी देवी शक्तिपीठ काठमांडु में बागमती नदी के किनारे है और पशुपतिनाथ से
एक किमी. पूर्व स्थित है। इस हिन्दुओं के पवित्र तीर्थ की गिनती 51 शक्तिपीठ में है। काठमाण्डु के पूर्वी भाग में स्थित बौद्धनाथ
स्तूप प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। बुद्ध नाथ पंथ के अनुयायी होने के कारण इस स्थल का
नाम बौद्धनाथ रखा गया। बुढ़ानीलकंठ काठमांडु से 10 किमी. दूर शिवपुरी की पहाड़ियों पर विष्णु जी का बहुत सुंदर
और आर्कषक मंदिर है। विष्णु जी की यहां शयन प्रतिमा(सोती हुई) विराजमान है। हरे
कृष्णा धाम बुढ़ानीलकंठ के पास है। इस्कॉन नेपाल में शिवपुरी पर्वतों की गोद में
है। जहाँ विष्णुमती नदी बहती है।
पशुपतिनाथ,
बागमति की संध्या आरती देखी। एक ओर बागमति के
किनारे आरती चल रही है। बागमती के दोनों किनारों पर अपार जन समूह, दूर श्मशान में चिताएं जलने से लपटों के प्रतिबिंब बागमती के बहते जल में पड़ रहें हैं।
ये सब देख कर मन में वाद विवाद चलने लगा इतनी शांति और अनुशासन! शायद श्मशान के
कारण मन में वैराग्य सा है।
लौटने पर डिनर किया और सो गई। सुबह नाश्ते
के बाद चंद्रगिरि हिल्स गए। यहां पहुंचने के लिए केबलकार से 2.50 किमी. का मनोरम रास्ता 9 से 15 मिनट में तय
करना हवा की गति पर निर्भर करता है।
यहां पृथ्वी नारायण शाह की मूर्ति लगी हुई
है।
पहाड़ी पर मंदिर के पास एक व्यू टावर, रेस्टोरेंट, फूड स्टॉल, गिफ्ट स्टोर्स,
बैंक्वेट, 3डी हॉल के साथ साथ बच्चों के लिए एक मनोरंजक पार्क भी है।
प्रकृति प्रेमियों के लिए तो यहां समय बिताना ही बेहद सुखद अनुभूति है। जिप लाइन
का भी अनुभव लेते हैं।
भालेश्वर महादेव
चंद्रगिरी हिल्स की जिस पहाड़ी पर स्थित है, उसकी ऊँचाई 2551 मीटर समुद्र तल से है। यह भगवान शिव को समर्पित है। यहां सती का माथा(भाला)
गिरा था। स्वयंभू स्तूप, बंदर मंदिर
काठमाण्डु 77 मीटर की ऊँचाई
पर स्वयंभू स्तूप के दर्शन हुए। ओल्ड पीस पॉण्ड है। यहाँ खूबसूरत, नक्काशीदार मंदिर हैं। दिनभर काठमांडु के
दर्शनीय स्थल घूमें। अगले दिन जनकपुरधाम की ओर चल दिए।
बेहद खूबसूरत
रास्ता!
जनकपुर पहुंचते
ही वहां के दर्शनीय स्थल देखने चल दिए।
अनेक कुंड और
आसपास 115 सरोवर हैं।
भूतनाथ मंदिर पशुपतिनाथ मंदिर की तरह बनाया है।
हनुमान मंदिर कदम चौक पर गए। जनकजी की कुलदेवी का मंदिर देखा। नौलखा मंदिर और उसकी
चित्रशाला देख कर, गंगा सागर गए।
वहां शाम को गंगा जी की आरती देखी। लौटने पर खाना खाया। खूब बतियाये सबने गुप्ता
जी से अगली यात्रा का कार्यक्रम बनाने को कहा। सुबह हम यहां से 18 किमी. धनुषाधाम जहां पिनाक धनुष का मध्य भाग
गिरा और 550 साल से अधिक पुराना पेड़
है, जिसकी जड़ में पताल गंगा
है वहां के दर्शन किए। सीतामढ़ी पहुंचे। होटल में सामान रख दर्शनीय स्थल देखने चल
दिए।
रेलवे स्टेशन से डेढ़ किमी. की दूरी पर जानकी
मंदिर देखा। उर्बीजा कुंड से हम पुनौरा धाम की ओर चल पड़े। पुनौरा जानकी मंदिर के
दर्शन किये। शहर के बीच में स्थित वैष्णों देवी मंदिर के दर्शन कर, हलेश्वर स्थान होते हुए, होटल पहुंच कर खाना खाया। महिलाओं ने कमरों में खूब नाचना
गाना किया। रात 1.30 बजे रेल में
बैठे। हमारी अविस्मरणीय यात्रा को आनन्द विहार रेलवे स्टेशन पर विराम मिला।
सहयात्रियों ने वन मैन आर्मी जयप्रकाश गुप्ता जी का धन्यवाद किया। अगली यात्रा के
इंतजार में
नीलम
भागी(जर्नलिस्ट, लेखिका, ट्रैवलर, ब्लॉगर)