हम ’’सनातनधर्म जिला केन्द्रीय पुस्तकालय’’जा रहे थे। रास्ते में लाख की चूड़ियाँ बनते देखा। जिसमें थोड़ी सी जगह में पूरा परिवार इस लघु उद्योग में लगा दिखा। इतनी मेहनत और लगन से काम करने केे बाद उनको देख कर ऐसा नहीं लगता था कि इस काम से उनकी जीविका ठीक से चलती है। भीड़ भाड़ वाले बाजारों में भी लहठी की दुकानों में सेल बहुत कम थी। मेरी आँखों के आगे लहठी कारीगर आने लगे जो मेहनत से पारिवारिक उद्योग में लगे हैं।
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हैण्डक्राफ्ट डिजाइन में लाल, पीले, हरे रंग में सजी लहठी बहुत सुन्दर लग रहीं थीं। इसे सौभाग्यवती महिलाएँ पहनतीं हैं। ये देख मुझे याद आया।
कुछ साल पहले मैं अमृतसर शादी में गई। पंजाब में भात को ’नानका छक’ कहते हैं। इसमें मामा चूड़ा लाता है। पंडित जी मामा से सैंत कराते हैं। पूजा के बाद मोनिका को मामा ने एक लोहे का कड़ा पहनाया, इस कड़े के साथ कलीरा बांधा फिर सब रिश्तदारे ने कलीरे बांधे। लेकिन पंजाबी ब्राह्मण परिवार की मोनिका को हरे कांच की चूड़ियां में देखते ही मैं समझ गई कि जीजा जी के पूर्वज पंजाब से बाहर के तिवारी हैं पर अब तो पंजाबी ब्राहमण हैं अम्बरसरिये। सप्तपदी के बाद माेिनका की सास ने तुरंत उसे चूड़ा पहनाया ताकि वह पंजाबी दुल्हन लगे। चूड़े का लॉजिक ये है कि पहले छोटी उम्र में लड़कियों की शादी होती थी। नये घर के तौर तरीके समझने में समय लगता है इसलिये सवा महीना या सवा साल बाद बहू मीठा बना कर चूड़ा बढ़ाती(उतारती) थी। और सास गृहस्थी के काम, बहू को हस्तांतरित कर देती थी। जब तक चूड़ा बहू की बांह में है, उसे रसोई में नहीं लगाया जाता था। अगर चूड़े का रंग उतर गया तो उस परिवार की बातें बनाई जातीं थीं कि बहू को आते ही चूल्हे चौंके में लगा दिया। दूसरी भानजी डिम्पल की शादी पर उसकी सास ने कहा कि जयमाला ये चूड़ेवाली बाहों से डालेगी। उसकी दादी ने कहाकि कि हमारे यहाँ चूड़े का रिवाज़ नहीं है। समधन बोली कि हमारी होने वाली बहू तो चूड़ा पहनकर ही जयमाला पहनाती है। दादी तर्क दे रही कि कन्यादान यज्ञ होता है। पूर्वजों के नियम बदलने नहीं चाहिए। समझदार पंडित जी ने कहा कि शास्त्रों में विधान है कि कुटुम्ब के साथ करो तो शुभ होता है। तुरंत कई जोड़े चूड़े के मंगाये गये। पंडित जी के मंत्रों के साथ, बाल बच्चे वाली बहुओं ने भी चूड़े पहने। दादी बोलीं,’’ अब हमारे खानदान में बहू चूड़ा पहन कर आयेगी और बेटी चूड़ा पहन कर विदा होगी। वहाँ पता नहीं कोई वेदपाठी था या नहीं, पर पण्डित जी ने वेदों के नाम पर सब में समरसता पैदा कर दी थी। जब बॉलीवुड ने दुल्हन को चूड़े और कलीरे में दिखाया तो चूड़ा फैशन में आ गया है। बन्नी ब्यूटीपार्लर में ब्राइडल मेकअप के लिए जाती हैं। तो लिबास से मैचिंग कलर, लाल की कोई भी शेड का चूड़ा खरीद कर पहन लेतीं हैं। न्यूली मैरिड दिखना है तो पहन लिया, फिर बैंगल बॉक्स में रख लिया समय समय पर पहनने के लिए।
माँ जानकी की जन्मस्थली होने से सीतामढ़ी की लहठी को सौभाग्यवती महिलाएँ लेकर ही यहाँ से जातीं हैं। अयोध्या में श्रद्धालु एक थाली में लहठी, सिंदूर, साड़ी, चुड़वा, बताशा और मखाना सजा कर माँ सीता को अर्पित करने के लिए खड़े देखकर, पुजारी पूछ ही लेते हैं कि वे सीतामढ़ी धाम से या जनकपुर धाम से आयें हैं। देश में लगने वाले मेले प्रदशर्नियों में लहठी के लिए निशुल्क स्टॉल लगाने की जगह देने के साथ अपने खर्च पर ले जाना चाहिए ताकि ये उद्योग बढ़े।
हारे का सहारा, बॉलीवुड हमारा! मुझे बॉलीवुड से उम्मीद है। जब वहाँ इसे हिरोइन को पहनाया जायेगा तो लहठी भी चूड़े की तरह फैशन में आ जायेगी। क्रमशः