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Sunday, 19 March 2023

एक नई शुरुआत! किताबें और स्कूल यूनिफॉर्म का रियूज नीलम भागी Neelam Bhagi

 



      स्कूल यूनिफॉर्म  और पाठ्य पुस्तकें, बच्चों की हर साल बदलती हैं क्योंकि वह नई कक्षा में जाते हैं और उन्हें उसी कक्षा का पाठ्यक्रम पढ़ना होता है। इसी तरह स्कूल समय में बच्चों का कद बढ़ता है, ड्रेस  छोटी होती जाती है फिर स्कूल में सर्दी की, गर्मी के , स्पोर्ट्स, हाउस यूनिफॉर्म  आदि आवश्यक होती हैं, जो सभी को लेनी पड़ती है। जब खरीदते हैं तो फिटिंग की ली जाती है ताकि बच्चा अपनी कक्षा में स्मार्ट दिखें, इस तरह नई कक्षा में आते हैं तो घर में इन सब का ढेर लग जाता है। मैं अंकुर के घर गई वहां इन सबसे भरे हुए बैग देखें और सोचने लगी कि इन कपड़ों और पाठ्यक्रम पुस्तकों का,   सार्थक उपयोग क्या है? क्योंकि जहां बच्चे पढ़ रहे हैं, यह शहर का और देश का नामी स्कूल है. सभी पेरेंट्स अफोर्ड करते हैं।  जब मेरी बेटी उत्कर्षिनी स्कूल जाने लायक हुई तो मेरा सपना था कि मैं उसे इस स्कूल में पढ़ाऊं , जहां यह बच्चे पढ़ रहे हैं तो मुझे भी इतना खर्च करना पड़ता। उस समय मेरी ऐसी स्थिति नहीं थी कि मैं यहां उसे पढ़ा सकूं।  लिखित परीक्षा पास करने पर भी शायद मेरी आर्थिक स्थिति देखकर, उसे इस स्कूल ने एडमिशन नहीं दिया गया था। फिर दिमाग में प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि अभी कुछ लोग पर्यावरण से मेरी तरह लगाव रखते होंगे जो इन अच्छी कंडीशन  किताबों और स्कूल ड्रेस का रीयूज करेंगे। हमने व्हाट्सएप ग्रुप में अपने विचार डाल दिए और यूनिफॉर्म का साइज़,  किताबों के लिस्ट के साथ तस्वीरें लगा दी।  मुझे यह जानकर बेहद खुशी हुई। शुरुआत अच्छी हुई। हमारी भावना का पहले जिसने सम्मान रखा,  उन्हें ओके कर दिया और तुरंत ही 4 लोगों  ने सामान लेने की इच्छा जताई। जब हमने कहा कि हमारा कमिटमेंट हो गया तो उनका दुखी इमोजी का मैसेज आया अब लगातार और लोगों के भी मैसेज तस्वीरें स्कूल की किताब, ड्रेस की ग्रुप में लगने लगी। सब अपनी सुविधा के अनुसार एक दूसरे को समय देते कि कब सामान उठाना है, उनके घर से ले आते हैं। कितनी अच्छी शुरुआत हुई है! एक संकोच ही तो था। पहले सोचते रह जाते थे कि एक दूसरे अगर कहे तो वह बुरा ना मान जाए कि हम अपने बच्चे को सब कुछ अफोर्ड करा सकते हैं, यह सोच कर नहीं कहा जाता था। हां स्कूलों का नुकसान हुआ है । क्योंकि उनको मिलने वाला, 50% प्रिंट रेट का कमीशन कम हो गया है। लेकिन पर्यावरण को कितना फायदा होगा! यह तो कोशिश ही है और साधुवाद उन लोगों को जो इस तरह का एक दूसरे को सहयोग करके पेड़ों को बचाने की अप्रत्यक्ष मुहिम में लग गए हैं।