Search This Blog

Showing posts with label #Amritsar. Show all posts
Showing posts with label #Amritsar. Show all posts

Thursday, 18 June 2020

अमृतसर यात्रा भाग 1 Amritsar Yatra Part 1 Neelam Bhagiनीलम भागी



हमारे घर में बचपन से अमृतसर का जाप चलता था। गर्मियों की छुट्टियों में ननिहाल कपूरथला में और मासी जी अमृतसर रहती थीं, वहां भी जाना होता था। मुझे छोड़ कर ,सबका जाना हुआ। मेरा वास्ता यहां के पापड, बड़ियों से ही पड़ता था जो हमारे घर में कभी खत्म नहीं हुए। यहां तक की गर्म शॉलें वहां से खरीदी जातीं, उन पर फूल पत्तियां और बेल बूटे भी वहीं से छप कर आते थे। जिस पर हमारी दादी छुट्यिों में हम से कढ़ाई करवाती थी क्योंकि उनका ये मानना था कि लड़की की जात को कभी खाली नहीं बैठना चाहिए। शादी ब्याह में लेडीज़ संगीत का सुपरहिट गाना भी ’’अम्बरसर दियां वड़ियां मैं खांदी न, तूं करेंदा अड़ियां मैं संहदी न।’’होता था पर मेरा अमृतसर जाना न हो सका। उत्त्कर्षिनी के जन्म के समय मैं कपूरथला अपने स्वर्गीय मामाजी निरंजन दास जोशी के परिवार में रही। वहां मैं अपनी बड़ी मामी(सबकी ताई जी) के साथ मौहल्लेदारी करने जाती थी। जहां ये वाक्य प्रचलित था ’ए अम्बरसर दा रिवाज़ है या फैशन है’। वहां सोलह महीने रही, पास में अमृतसर था। पर नहीं जाना हुआ। इसमें दोष पंडित का था, बेड़ा र्गक हो उस ज्योतिषी का जिसने मेरे मामा श्री निरंजन दास जोशी को मेरी कुंडली देखकर कहा था कि इसके ग्रह खराब चल रहें हैं। मामा मुझे गाड़ी, बस और रसोई में कहीं नहीं जाने देते थे। बस खाओ पियो और खुश रहो। अमृतसर से मासी की चार बेटियां बेहद खूबसूरत मुझे मिलने आतीं, मैं उनका चेहरा देखती रह जाती। पांचवीं बेटी सरोज दीदी यहीं रहतीं थीं। मैं उनसे कहती कि इनका रंग कितना साफ हैं। वे जवाब देतीं अम्बरसर का पानी ही ऐसा है। सरोज दीदी को मैंने कभी एक मिनट भी खाली बैठे नहीं देखा था। मेरे दिमाग में बैठ गया कि ये भी अम्बरसर की आदत है। मेरे दूसरे मामा की लड़की गुड्डी की शादी अमृतसर हुईं। ये सुन्दरी जब मायेके आती तो भाभियां कहतीं कि ये तो अम्बरसरनी हो गई है। खै़र मैं नौएडा आ गई। कुछ साल बाद गुड्डी की बेटी मोना की शादी थी। स्कूल की छुट्यिां थी। मैं और उत्त्कर्षिनी अमृतसर चल पड़े। अम्मा ने समझा कर भेजा कि मासी जी बड़ीं हैं, पहले उनके घर जाना फिर गुड्डी के। हम मां बेटी पहली बार यात्रा पर निकलीं थीं। शाने पंजाब ने हमें 2 बजे स्टेशन पर उतारा। गुड़्डी नौएडा आतीं तो मुझे अमृतसर के लिए बुलातीं और समझातीं कि उनका घर रामबाग में है। पास में ही गोल्डन टैंपल है, जलियांवाला बाग है। पर अपना काम होने की वजह से मैं निकल ही नहीं पाई थी और मेरे कारण उत्कर्षिनी भी कहीं नहीं जा पाई थी। अमृतसर स्टेशन से बाहर मुझे मासी जी का पता चौक पासियां ,गली निजड़ा, कुछ अजीब लगा, हमें सेक्टर ब्लॉक नम्बर की आदत है। गुड़डी के पते में गोल्डन टैंपल पास है। उत्त्कर्षिनी बोली,’’मां टांगे में बैठना है।’’टांगेवाला गोल्डन टैंपल सवारी, आओ कर रहा था। मैंने उससे पूछा कि रामबाग चलोगे वो बोला कि घर तक नहीं लेकर जाउंगा, गली में उतार दूंगा। हम बैठ गईं। उत्कर्षिनी पहली बार टांगे में बैठी थी और मां के साथ यात्रा पर निकली थी, इसलिए बहुत खुश थी। गुड्डी ने कहा था कि वहां किसी से भी पूछ लेना, पोस्ट आफिस वाले तिवारी जी का घर, सब जानते हैं। उस वक्त मुझे शहर का जुगराफिया बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था क्योंकि मेरा सारा ध्यान गुड्डी के घर पहुंचने में था। अब अनगिनत बार जा चुकी हूं इसलिये अब ध्यान से देखती हूं कि पिछली बार से शहर कितना बदल गया!! टांगे ने उतारा, पैसे लिए और गया। सामने एक दुकानदार से मैंने वेद प्रकाश तिवारी जी पोस्ट ऑफिस वालों का घर पूछा। जवाब में वह दुकान से उतरा और एक लड़के से बोला,’’ओए छटंकी, दुकान दा ध्यान रखीं, मैं इना नू, तिवारी जी दे घर छड आंवां।’’(दुकान का ध्यान रखना, मैं इनको छोड़ आउं) छटंकी ने जवाब दिया,’’मेरियां लत्तां टुटियां होइयां ने!! बै दुकान ते, मैं आपे छड आवांगा।(मेरी क्या टांगे टूटी हुई हैं!! आप दुकान पर बैठो। मैं छोड़ आउंगा) उसने हमारा लगेज़ उठाया और चल पड़ा। हम उसके पीछे, उसके प्रश्नों का जवाब देते चल रहे थे। क्रमशः