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Wednesday 1 July 2020

भगवान बाल्मीकि आश्रम, श्री रामतीर्थ मंदिर,अमृतसर में तीर्थ की तरह है Bhagwan Vallmiki Thirth अमृतसर यात्रा Amritsar Yatra भाग 14 Neelam Bhagi नीलम भागी


 नीरज तिवारी(मनु) ने मेरी सीतामढ़ी (बिहार), जनकपुर नेपाल यात्रा पढ़ने के बाद कहा,’’आपने जानकी का जन्मस्थल और विवाह स्थल देख लिया, अब माता सीता का आश्रय स्थली यानि भगवान बाल्मीकि आश्रम भी देख लो। मैं चल दी। यह अमृतसर से ग्यारह किमी. दूर चौगावा रोड पर है। रास्ते भर मेरे कानो में नीरज के 'शब्द मां जानकी की आश्रय स्थली यानि लव कुश का जन्मस्थान' गूंजता रहा। जा तो मैं भगवान बाल्मीकि आश्रम रही हूं पर मेरी स्मृति में पिछली यात्रा भी हैं जनक की पुत्री, भगवान राम की पत्नी की पुनौरा जन्मस्थली है। जनश्रुति के अनुसार एक बार मिथिला में अकाल पड़ गया। पंडितों पुरोहितों के कहने पर राजा जनक ने इंद्र को प्रसन्न करने के लिये हल चलाया। पुनौरा के पास उन्हें भूमि में कन्या रत्न प्राप्त हुआ और साथ ही वर्षा होने लगी। अब भूमिसुता जानकी को वर्षा से बचाने के लिये तुरंत एक मढ़ी का निर्माण  कर, उसमें सयत्न जानकी को वर्षा पानी से बचाया गया। अब वही जगह सीतामढ़ी के नाम से मशहूर है। ये एक जनश्रुति है और सीतामढ़ी में जामाता राम के सम्मान में सोनपुर के बाद एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। यह दूर दूर तक ख्याति प्राप्त मेला चैत्र की राम नवमीं और जानकी राम की विवाह पंचमी को लगता है। सीतामढ़ी से जनकपुर नेपाल के रास्ते में मुझे सीता स्वयंबर के लोकगीत सुनने को मिले। जनकपुर नेपाल के नौलखा मंदिर में जानकी की जन्म से बिदाई तक को र्दशाने के लिये गीत और मूर्तियां थी। सोहर, विवाह और बिदाई के गीत नेपाली में थे। मैं वहाँ खड़ी महिलाओं से भावार्थ पूछती जा रही थी। एक महिला ने बताया कि यहाँ के रिवाज बिहार और मिथिलंचल से मिलते हैं। फिर दुखी मन और भरे हुए गले से बोली कि जानकी विवाह के बाद कभी मायके नहीं आईं। हमारी जानकी ने बड़ा कष्ट पाया इसलिये कुछ लोग आज भी बेटी की जन्मपत्री नहीं बनवाते हैं, न ही उस मर्हूत में बेटी की शादी करते हैं। मैं भगवान बाल्मीकि तीर्थस्थल पर पहुंच गई जो अत्यंत सुन्दर, शांत और साफ, अद्भुत स्थल है। उनके रामायण महाकाव्य को दर्शाती मूर्तियों को खूबसूरती से उकेरा है। 3 किमी.परीधि का सरोवर है। जिसका परिक्रमा पथ 30 फुट का है। बड़ा हॉल, संस्कृत लाइब्रेरी, म्यूजियम और आधुनिक मल्टीस्टोरी कार पार्किंग है, जिसमें एक समय में 500 चौपहिए वाहन पार्क हो सकते हैं। यहां श्रीराम मंदिर ,जगननाथ पुरी मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, राम,सीता लक्ष्मण मंदिर, भगवान बाल्मीकि का धूना, सीता जी की कुटिया, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर, विशाल हनुमान जी की मूर्ति, 
माता सीता मंदिर, वह स्थान जहां सीता राम का मिलाप हुआ था और 
वह स्थान भी जहां सीता जी धरती में समाई थीं। कार्तिक मास की पूर्णिमा को यहां चार दिवसीय मेला लगता है। ’माता सीता दी बावली’ जहां वे स्नान करती थीं। ऐसी मान्यता है कि उसमें नहाने से संतान प्रप्ति होती है और वहां सांकेतिक इंटो का घर बनाने से अपना घर बन जाता है। 
सीता जी को भी तो असहायावस्था में भगवान बाल्मीकि पिता तुल्य का घर मिला और वे 
लवकुश पुत्रों की मां बनी। ग्वालियर में तीन महीने में तैयार आठ फीट ऊंची, 800 किलो की गोल्ड प्लेटिड भगवान बाल्मीकि की मूर्ति के आगे खड़ी  मैं, अब तक के पढ़े सुने रामायण काल में खो जाती हूं। 
     प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर नदी के पास महर्षि ध्यान लगाए बैठे हैं। कई ऋतुएं आईं और गईं। उनके  ऊपर पर्त दर पर्त मिट्टी की पर्तें जमती गईं। जिस पर चीटियों ने बिल बना लिए। देखने पर मिट्टी की मानव आकृति है पर आंखें चमक रहीं हैं। कुछ घटने के इंतजार में। आस पास तो अब छोटा सा ग्राम भी बस चुका है। बालको ने देखा नदी पार एक राजरथ रुका, जिसे पुरुष(लक्षमण) चला रहे थे और महिला(सुकुमारी सीता) जो नहीं जानतीं थीं कि उनको, श्री राम ने जनमत से विवश होकर त्याग दिया है। क्योंकि अग्नि परीक्षा लेने के बाद भी श्री राम नहीं चाहते थे कि उनके राजतंत्र में एक भी विरोध का स्वर हो। दोनों नाव से उतर कर इस ओर आए। महिला को उतार कर पुरुष ने उन्हें कुछ कहा और वापिस नदी पार कर, राजरथ पर सवार होकर चला गया। सीता जी की अवस्था देख कर, अनहोनी की आशंका से बालकों ने दौड़ कर महर्षि का ध्यान भंग कर, आंखों देखा हाल सुनाया। ऋषि दौड़े, देखा सीता जी को तो नदी ही, उस समय मां की गोद लग रही थी। भगवान बाल्मीकि ने कहा,’’ठहरो, पुत्री आओ, ये तुम्हारे पिता का निवास है। तुम्हारा घर है चलो। सीता जी उनके पीछे चल दीं, और अजन्में लव कुश भी उनके साथ बच गए। महिलाओं ने स्नेह से उन्हें घेर लिया। कोई उनसे प्रश्न नहीं पूछा। उनके लिए वो असहायावस्था में महिला हैं। झोंपड़ी तैयार की गई। और भगवान बाल्मीकि के लिए रामकथा महाकाव्य लिखने, जन जन तक पहुंचाने और लव कुश को गढ़ने के लिए कर्मभूमि तैयार थी। न जाने कितनी देर वहां बैठी रही!!
आज हर रामकथा के मूल में भगवान बाल्मीकि की रामायण है। क्रमशः     

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से एक साथ प्रकाशित बहुमत समाचार पत्र में यह लेख प्रकाशित है