लोकगीत प्रकृति और मन के उद्गार हैं। लोक के गीत हैं। जनसामान्य की कला है। जो किसी एक व्यक्ति का नहीं है, इसे समाज अपनाता है। लोक रचित लोकगीतों में कोई नियम कायदे नहीं होते। ऐसा सुनने में आता है कि जिस समाज में लोक गीत नहीं होते। वहाँ पागलों की संख्या अधिक होती है। जब भी इसे गाया जाता है, श्रोता और गायक ताज़गी से भर जाता है।#Folksong,#लोकगीत,#अखिलभारतीयसाहित्यपरिषद,#नोएडाहाट,#ChawkiHaweli,