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Thursday, 6 June 2024

जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ! भुवनेश्वर! Bhuvneshwer उड़ीसा यात्रा भाग 27, Orissa Yatra Part 27 नीलम भागी Neelam Bhagi

 


 

सम्मान समारोह से लौटने के बाद लंच के लिए हाल में  एकत्रित हुए। विश्वविद्यालय से जलपान करके लौटे थे। मैंने  सोचा आख़िर में लंच करूंगी। कार्यक्रम को  छोड़ कर, मेरी आदत है, जब भी खाली होती हूं, मैं कहीं भी मोबाइल खोलकर  उस पर लग जाती हूं और मैं लग गई।  मुझे आसपास का कुछ ध्यान नहीं रहता है। 

 धीरज शर्मा मोंटी(ग्वालियर) मेरे पास बैठे और बोले, "नीलम जी, मोबाइल तो आपके पास हमेशा ही रहेगा लेकिन यह जो आसपास साहित्यकार हैं, अगली बार पता नहीं आपको कब मिलेंगे!"  और मोंटी बहुत व्यस्त  रहते हैं, यह कह कर वे चले गए। मैंने तुरंत मोबाइल पर्स में रखा और मेरे आस-पास जो थे और उनसे परिचय होने लगा। मुझे बहुत अच्छा लगा विभिन्न प्रदेश के साहित्यकारों की अपनी बातें  जो किसी पुस्तक में नहीं हैं। अब तो ब्रेक में अपने रूम में भी नहीं जाती थी। किसी भी मेज  पर जाकर बैठ जाती। मेरा  संकोची स्वभाव पर कुछ देर बाद मुझे लगता ही नहीं था कि मैं उन्हें जानती नहीं हूं ।सब परिचित लगते । ट्रेन में मैं अपने साथ के यात्रियों से आराम से बतियाती आती हूं। साहित्य परिषद में  सभी बहुत विद्वान हैं। वह आपस में किसकी कितनी किताबें  छपी हैं, उस पर चर्चा करते हैं। मेरी तो एक भी नहीं छपी है। मैं यह सोचकर हीन भावना में रहती थी कि कोई मुझसे पूछेगा कि आपकी कितनी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं? तो मैं नालायक लगूंगी शायद इसलिए मैं अलग थलग सी रहती। मैं बैठने लगी तो देखा पुस्तक छपाई की बात तो कुछ देर में ही खत्म हो जाती है और कभी किसी ने भी मुझसे नहीं पूछा कि आपकी कितनी पुस्तक छपी है? इस सबके लिए धीरज शर्मा की  अभारी हूं कि मैं मोबाइल की दुनिया से हटकर इन विद्वानों की चर्चा को शांति से सुनती ।       अगले सत्र में हमारी प्रदेश अनुसार  टोलिया बना दीं। प्रत्येक टोली में  पुरस्कृत साहित्यकारों को भी साथ किया। उनके साथ संवाद किया। उन्होंने अपने अनुभव शेयर किये।  बहुत अलग सा  लगा। इसमें कोई भी अपने मन की बात  कर सकता था और सम्मानित साहित्यकार  उसमें  शामिल थे। चाय का समय हो गया है पर  मस्त बैठें थे। रात्रि  में हमारे लिए जगन्नाथ जी का महा प्रसाद था। वैसे तो हर जलपान, भोजन में उड़ीसा का स्थानीय व्यंजन  जरूर रहता था। पर महाप्रसाद की अलग से खुशी थी। और इसके बाद सांस्कृतिक  कार्यक्रम की प्रस्तुति थी। 

जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ! महाप्रसाद के लिए सबको  नीचे बैठकर खाना था। मैं और मेरे जैसे कुछ नीचे नहीं बैठ सकते तो हमारे लिए मेज कुर्सी लगाई गई। कुछ  ने  मुश्किल से नीचे बैठ कर महाप्रसाद  लिया। केले के पत्ते पर हाथ से महाप्रसाद खाना बहुत अच्छा लगा। महाप्रसाद के बाद हम सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने के लिए हम हॉल में गए। यहां ओडिसी लोक नृत्य और ओडिसी शास्त्रीय नृत्य गजब के प्रस्तुति थी। आज का पूरा दिन समारोह के  आनंद में बीता।  खूब मोटिवेट हुए और रात्रि विश्राम के लिए हमें हमारे होटल में पहुंचा दिया गया। 

क्रमशः 












Friday, 5 April 2024

पुरी कैसे जाना है!! Bhuvneshwar Odisha उड़ीसा यात्रा भाग 18 नीलम भागी Part 18 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह


घर पहुंचते ही मीताजी चाय बनाने चल दी और  नरेंद्र ने किमी. के हिसाब से  बिल बनाया कुल ₹2100 पार्किंग  के अलग। फिर भी दिल्ली नोएडा से कम है। मीताजी ने चाय बनाते हुए मोहंती जी को काम दे दिया, मेरी कल की पुरी और कोणार्क यात्रा का प्लान बनाने का।  मोहंती जी ने मुट्ठी भर दवा की गोलियां मीताजी को दी, उन्होंने फांक ली। यह देखकर, कल की यात्रा में मैंने मन ही मन उनको ले जाना स्थगित कर दिया। हालांकि आज वह दिन भर बहुत खुश थी। मोहंती जी  बहुत मेहनत से काम में लग गए। मैंने उन्हें भी मो बस के बारे में बताया। सबसे आखिर में बस के टाइम टेबल पर वे आए। चाय पीकर मैं रेस्ट करने लगी। मोहती जी  काम में लगे हुए पर बीच-बीच में मीताजी उन्हें टोकती कि अभी तक आपसे यात्रा का प्लान नहीं बना! वह और लगन से मोबाइल पर लग जाते हैं। उन्हें इस तरह व्यस्त देखकर  मुझे बहुत हंसी आती । काफी मेहनत मशक्कत के बाद उन्होंने कागज पर प्लान बनाया। उससे पहले मीताजी बोलीं,"पहले डिनर कर लेते हैं।" मैं और मीताजी खाने लगे।  मुझे बहुत अच्छा लगा कि मोहंती जी हमारी प्लेट पर ध्यान रख रहे थे कि क्या कम है और उसको लेकर आते। यानि मीताजी का सहयोग करते हैं।



डिनर के बाद, हम फिर कल की यात्रा की चर्चा पर बैठे। मेरा ट्रेन में बना प्लान था कि सोमवार सुबह बस से पहले कोणार्क जाऊंगी, वहां से पूरी, पुरी से भुवनेश्वर इससे मेरी दोनों जगह की यात्रा हो जाएगी। मीताजी चिंता में डूबी जा रही थी कि मैं अकेली कैसे कर पाऊंगी! मोहंती जी ने बस का टाइम टेबल निकाल लिया। पूरे समय की कैलकुलेशन करके 9 बजे की  बस से घर से जाना और वहां से तीन या चार बजे की बस से लौटना। 6 बजे तक मैं घर आ जाऊंगी। यह निष्कर्ष निकाला कि मैं कोणार्क जाना छोड़ दूं और सिर्फ पुरी यात्रा कर लूं क्योंकि पुरी में मुझे महाप्रसाद भी खाना था। मैंने आज्ञाकारी बच्चे की तरह हां में सिर हिला दिया। मीताजी ने मेरे लिए एक बैग लगाया, जिसमें खाने पीने का सामान  था। पानी की बोतल उन्होंने सुबह रखनी थी। मोहंती जी न्यूज़ सुनने लग गए। मैं रूम में आ गई। मीताजी को मेरी कल की चिंता थी और कहा  कि मैं उनको फोन से सब अपडेट बताती रहूंगी। कुछ देर बाद वह कच्चेे केले केे कटलेट्स बना लाई। जिसकी उन्होंने पहले से तैयारी कर रखी थी।  जो बेहद लज़ीज़  थे।

यहां सुबह शाम सर्दी थी, दिन में स्वेटर वगैरह की जरूरत नहीं थी बिल्कुल गर्मी लगती थी। मीताजी सलवार कुर्ते में थी।  फोन आया कि उनका देवर चार दिन पहले उनके यहां शादी हुई थी, शादी की मिठाई देने आ रहे हैं।

वे बोली," मैं साड़ी पहन कर आती हूं।" मैंने हैरानी से पूछा," आप तो अपने घर में हैं, अपने घर में तो कोई कैसे भी रहे!  उन्होंने उत्तर दिया,"हां ,अपने घर में कोई कैसे भी रहे पर परिवार के लोग  आते ही कितने समय के लिए हैं, उस समय जो परिवार का रिवाज है, वैसा करने में क्या हर्ज है!" ठंड में चेंज करना थोड़ा मुश्किल है उन्होंने सूट के ऊपर ही कॉटन की बड़ी प्यारी ओरिया साड़ी पहन ली और शॉल ले ली। मुझे ट्रेन की सरिता याद आई जो बिना दुपट्टे के मेरे पास चूड़ीदार पजामा ,कुर्ते में बैठी थी। अपना छोटा सा स्टेशन आने से कुछ समय पहले वह वहां से उठ कर चली गई। जब मैंने प्लेटफार्म पर देखा तो वह साड़ी पहने हुए थे और दो लोग परिवार के उन्हें गांव से रिसीव करने आए थे। तो मेरे मन में आया था कि गांव  की है शायद इसलिए। उसने पता नहीं किस समय साड़ी, गाड़ी के अंदर पहनी। यहां मीता जी अपने समय  में कॉन्वेंट एजुकेटेड शहर में पली बड़ी , अध्यापिका रहीं, अब राजधानी में रह रही है और ग्रैंडमदर है लेकिन फैमिली वैल्यूज,  परंपरा में  सरिता की तरह ही हैं। मेहमानों के जाने के बाद मेरे पास आकर हंसते हुए बोली," कितना टाइम लगा साड़ी पहनने में! इतने में ही सब खुश हैं, मैं भी खुश।" सब सोने चल दिए। मुझे 9:00 की बस से पुरी जाना था। मैं 8:30 बजे ब्रेकफास्ट करके बिल्कुल तैयार थी। बरमूडा बस स्टैंड से बस पकड़ने थी। मोहंती जी ने मुझे कागज जिसमें बस का टाइम टेबल, बस स्टैंड का नाम लिखा था, दिया और कहा," लौटने से पहले फोन कर देना, बस स्टैंड से हम ले जाएंगे।" सुबह 8:30 हम घर से निकले, 8 मिनट में हम बस स्टैंड पर पहुंच गए। वहां पुरी की बसों की लाइन लगी हुई थी। कंडक्टर चिल्ला चिल्ला कर  पुरी पुरी कर रहे थे। मोहंती जी वहां मो बस के बारे में पता करने जाने लगे। एक प्राइवेट खाली बस में मैं चढ़ने लगी और मोहंती जी को कहा कि जो पहले मिली है, मैं निकल जाती हूं ताकि टाइम से लौट आऊं। वे मान गए अब मैं अच्छी सी ड्राइवर के पीछे वाली विंडो सीट पर बैठ गई। और इन्हें जाने को बोला। ड्राइवर और कंडक्टर बस को भरने की मुहिम में लगे हुए थे और साथ ही साथ पुरी पुरी दहाड़ रहे थे। वहां सावरियां लेने में होड़ मची हुई थी। समय पर बस चल दी। पुरी तक का किराया कुल ₹100 है।

 क्रमशः