एम.लक्ष्मा रेड्डी( रिटायर्ड एग्रीहॉटीकलचर सोसाइटी, हैदराबाद) ने अपना 75वां जन्मदिन करोना महामारी के समय नियमों का पालन करते हुए अतरंग मित्रों के साथ सादगी से मनाया।
मित्रों ने मुझे भी तस्वीरें भेजीं। इन तस्वीरों में मुझे रिर्टन गिफ्ट ने बहुत प्रभावित किया वह था ’हिमायत पसंद आम का पौधा’ और मेरे दिमाग में तरह तरह के प्रश्न खड़े हो गए। मैंने पर्यावरण प्रेमी सुदेन्द्र कुलकर्णी से कहा कि आप लोग अच्छा करते हैं जो गिफ्ट में पौधे देते हैं। उन्होंने जवाब दिया,’’गिफ्ट में नहीं, रिर्टन गिफ्ट में देते हैं। ’’गिफ्ट में क्यों नहीं?’’ मेरे यह पूछने पर उन्होंने जवाब दिया कि जैसे -जन्मदिन पर पच्चीस दोस्त इक्क्ट्ठे हुए। अगर सब गिफ्ट में पौधा देते तो उसे उगाने के लिए जगह चाहिए न। इतने पौधे जिसके घर में एक साथ आ जाएं तो वो सोच में पड़ जायेगा। लेकिन रिर्टन गिफ्ट में सबके साथ एक ही हिमायती आम का पौधा गया न। सब आस पास के रहने वाले थे। सब इसे प्यार से पालेंगे, सींचेंगे और देखभाल करेंगे। ये आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिल नाडू की जलवायु में उगता है। इसका आम मई जून में मिलता है। जो बहुत लजी़ज पर पतले छिलके का होने के कारण, देश के कोने कोने में पहुंचाना मुश्किल होता है। वजन में 800 ग्राम तक हो जाता है। ऐसा सुनने में आता है कि इसका जन्मस्थान तो केरल है। सूरत में अच्छा नहीं है पर सीरत में लाजवाब होने के कारण मुगल बादशाह हूमायंु की पसंद था। इसलिए इसका नाम हूमायु पसंद आम हो गया। इसे हिमायत, इमाम, हिमाम पसंद आम भी कहते हैं। मैंने पूछा,’’जो फ्लैट में रहते हैं वो गिफ्ट के पेड़ का क्या करेंगे?’’उन्होंने जवाब दिया,’’जैसे मैं फ्लैट में रहता हूं। मुझे इतने प्यार से उन्होंने दिया, मैं इसे संभालूंगा, जब मुझे इसके लिए सुरक्षित जगह मिलेगी, जहां इसकी देखभाल होगी, वहां लगवा दूंगा और इसका संरक्षण करुंगा ताकि ये फले फूले। जुलाई का महीना है। देखना सब के पौधे अच्छे से जमेंगे। हम दोस्त जब मिलेंगे तो एक दूसरे के हिमायत आम के पेड़ का हाल पूछ्रेगें।’’
Bahumat बहुमत Madhya प्रदेश, छत्तीसगढ़ से एक साथ प्रकाशित समाचार पत्र में यह लेेेेख प्रकाशित हुआ है।
बहुमत मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ से एक साथ प्रकाशित समाचार पत्र में यह लेख प्रकाशित हुआ है |
वैसे पेड़ों की आजकल कुछ लोग बहुत देखभाल करते हैं क्योंकि एक पेड़ एक साल में 20 किलो धूल सोखता है। 700 किलो ऑक्सीजन देता है। 20 टन कार्बनडाइआक्साइड सोखता है। गर्मी में पेड़ के नीचे 4 डिग्री तापमान कम होता है। वायुमंडल की जहरीली धातुओं के मिश्रण को इसमें सोखने की क्षमता है। दूषित हवा को फिल्टर करता है। घर के करीब एक पेड़ शोर को सोखता है। यानि अकॉस्टिक वॉल की तरह काम करता है। घर के पास यदि खूब पेड़ हैं तो जीवन कुछ साल बढ़ सकता है। मुझे ये तो बिल्कुल ठीक लग रहा है। क्योंकि चार साल पहले मेरी अम्मा को चिकनगुनिया हो गया था, बचने की उम्मीद नहीं थी। जब जरा ठीक हुईं तो रोज मेरे सहारे से बाहर पेड़ के नीचे जाकर लेटतीं। अब 93वें साल में अपने काम स्वयं करती हैं। पेड़ के नीचे ही उनका पढ़ना, आराम करना होता है। घर के सामने पार्क में कोई डण्डी भी तोड़ रहा हो तो मुझे आवाज़ लगा कर कहेंगी,’’देख, कोई पेड़ काट रहा है।’’मैं तुरंत रोकने जाउंगी। मुझे भी जब किसी कार्यक्रमें पौधा मिलता है तो बड़ा अच्छा लगता है।
इण्डिया हैबिटेट सेंटर लोधी रोड दिल्ली में कम्यूनिटी संवाद पत्रिका का वार्षिक एडिटर मीट कार्यक्रम था। विनोद अग्रवाल(एडिटर) ने एनाउंस किया कि लंच के बाद सब अपना गिफ्ट लेकर जायेंगे। जहां लंच लगाया था उसके पास ही लगभग 200 तरह तरह के पौधे रक्खे थे। अपनी प्लेट लेकर, हम खाते हुए पौधों को देख रहे थे। जिसको अपने घर के लिए जो पौधा ठीक लग रहा था। उसने पसंद कर लिया। लौटते समय अपना पंौधा लेकर आ गये। मुझे इस पौधे का नाम नहीं पता। मैं अब तक उसे संवाद का पौधा कहती हूं ।
नौएडा के पर्यावरण प्रेमी त्रिलोक शर्मा पंद्रह साल से पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर अपनी संस्था वन रिपब्लिक फाउण्डेशन के वार्षिक उत्सव पर सबको औषधीय पौधे देते हैं। मकसद होता है पर्यावरण के प्रति जागरुकता पैदा करना। मुझे भी तुलसी का पौधा मिला था। जिससे मैंने तुलसी के कई पौधे बना लिए और जिन्होंने मांगे उन्हें दिए। वाटसअप वॉल पर ये पंक्तियां मुझे अच्छी लगीं
मंदिरों में बटे अब यही प्रसाद, एक पौधा और थोड़ी सी खाद।