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Wednesday, 29 December 2021

नई दिल्ली से हरदोई भाग 1 नीलम भागी


महामारी के बाद ये मेरी पहली रेलयात्रा है। इस बार अखिल भारतीय साहित्य परिषद का त्रैवार्षिक अधिवेशन, दिनांक 25-26 दिसंबर 2021 को अल्लीपुर, हरदोई, उत्तर प्रदेश में आयोजित किया गया। पंद्रहवां अधिवेशन जबलपुर में था। वहां जाना मेरे लिए अनूठा अनुभव था। ये सोलहवां अधिवेशन कोरोना के कारण एक साल विलंब से हो रहा था और सीमित संख्या में प्रतिनिधि आमंत्रित थे। मैं विज्ञान की छात्रा रही हूं पर यहां से मैं बहुत मोटीवेट होकर लौटती हूं। इन दिनों कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी, कोई परवाह नहीं! कोरोना से जंग जीत चुकी थी। वैक्सीनेशन हो चुका था। हमारे प्रवीण आर्य जी ने दिल्ली से जाने वालों का व्हाटअप ग्रुप बनाया था। जिसमें सबने अपना टिकट पेस्ट कर दिया था। आयोजन के व्यवस्थापकों ने हरदोई रेलवे स्टेशन से अल्लीपुर ले जाने की व्यवस्था कर रखी थी। किसी की गाड़ी रात्रि में 3 बजे भी पहुंचती तो प्रतिनिधि को चिंता करने की जरुरत नहीं थी। उसे अधिवेशन स्थल पर पहुंचाया जाता। मेरा आरक्षण नई दिल्ली से चलने वाली लखनऊ मेल में था। यह रात दस बजे चलती हैं और सुबह 4.45 पर हरदोई पहुंचती है। रेलवे से मैसेज आया था  जिसमें गाड़ी प्लेटर्फाम नम्बर एक से जायेगी। रास्ते में जाम नहीं मिला, मैं 9 बजे स्टेशन पर पहुंच कर साफ सुथरे प्लेटफार्म नम्बर एक की सीट पर बैठ कर, मोबाइल में लग गई। 9.45 पर मैंने देखा कि हमारा कोई भी साथी प्लेटर्फाम पर दिखाई नहीं दे रहा है। एनाउंसमैंट पर ध्यान दिया तो पता चला कि गाड़ी प्लेटफार्म नम्बर 16 से जायेगी। सामान हमेशा मेरे पास कम होता है। सबसे आखिर में यह प्लेटफार्म था। नौएडा से अक्षय कुमार अग्रवाल भी जा रहे थे। उन्हें भी फोन किया ताकि वे पहाड़गंज की ओर से न आएं। अब मैं प्लेटफार्म नंबर 16 की ओर सीढ़ियां चढ़ कर चल दी। गाड़ी  खड़ी थी। मेरी बी 2 डिब्बे में 20 नम्बर लोअर सीट थी। मेरे सामने का यात्री अकेला लग रहा था। दोनों मिडल सीट खाली थीं। अपर और साइड सीट वाले बड़ी तन्मयता से मोबाइल में लगे हुए थे। मैंने सामने वाले से पूछा,’’आपको कहां जाना है?’’उन्होंने जवाब दिया,’’लखनऊ और आपको? मैंने बताया,’’हरदोई।’’अचानक मुझे याद आया कि अक्षय जी का ग्रुप में मैंने पढ़ा था कि आरक्षण लखनऊ तक का हैं, फिर भी मोबाइल से दोबारा पढ़ा और उनसे पूछा कि हमारे एक साथी से आप सीट बदल लेंगे? उन्होंने जवाब दिया कि अगर लोअर सीट होगी तो जरुर, पर हरदोई में तो दूसरी सवारी मुझे उठा देगी। मैंने बताया कि उनका लखनऊ तक का रिर्जवेशन है। मैंने अक्षय जी को फोन कर दिया। वे जैसे ही आये, उसने अक्षय जी पर प्रश्न दागा,’’आपने जाना हरदोई है तो लखनऊ तक का टिकट क्यों कटवाया?’’उन्होंने बताया कि हरदोई तक का वेटिंग में था और लखनऊ तक का कनर्फम था इसलिए। टी.टी. को बताकर वह चला गया। हम भी मोबाइल में लग गए। कोरोना से पहले भी सबके पास मोबाइल होता था पर सोने से पहले आपस में बतियाते थे। लेकिन आज ऐसा लग रहा था कि जैसे सोशल मीडिया का स्वाध्याय चल रहा था।


गाजियाबाद आया। साथ ही एक परिवार आया पति पत्नी और उनकी गोद में बच्चा था। उन्होंने आते ही सामान लगाया और दोनों मिडल सीट खोली, उस पर लेटे और लाइट ऑफ कर दी। खिड़की पर कोरोना के कारण पर्दा नहीं था और ना ही बिस्तर मिलना था। डिब्बे का तापमान अच्छा था। टोपा लगा और मोटी शॉल ओढ़ कर मैं लेट गई।   

   मैं #प्रेरणा शोध संस्थान न्यास, नोएडा द्वारा आयोजित आजादी का अमृत महोत्सव भारतोदय दिनभर अटैंड करके आई थी। इसलिए जल्दी सो गई। 4.30 नींद खुली देखा, अक्षय जी मोबाइल की टार्च से समय सारणी पढ़ रहें हैं। मैंने पूछा,’’अब हरदोई आने वाला है न।’’ वे बोले,’’ पता नहीं कौन सा स्टेशन आ रहा हैं। मैंने उतरने की तैयारी कर ली। गाड़ी रुकते ही मैं सामान लेकर गेट पर और अक्षय जी बोले,’’पता लगाता हूं ,कौन सा स्टेशन है? बिना सामान के चल दिए। दरवाजा बंद था। अटैंण्डैंट को जगाया कि बताए कौन सा स्टेशन है? उसने पटरियों की तरफ का गेट खोला, दो मिनट गाड़ी रुकती है। मैं बोली इधर प्लेटर्फाम हैं। उसने बर्थ फोल्ड कर दरवाजा खोला, और जोर जोर से आवाज लगाने लगा कि कौन सा स्टेशन है। कोई नहीं दिख रहा था पर दूर से आवाज आई,’’हरदोई।’’ मैं लगेज़ पकड़ कर उतरी। बी 2 डिब्बा प्लेटर्फाम से दूर था और फर्श काफी नीचा था। एक हाथ से लगेज़, एक हाथ से पाइप पकड़े तीनों पायदान उतर गई पर अगला स्टैप में फर्श इतना नीचा था कि मैं धड़ाम से गिर पड़ी। क्रमशः