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Thursday, 3 April 2025

हर त्योहार नई शुरूआत!

 


   पूर्वोत्तर भारत में चैत्र महीने की षष्ठी को ’’चैती छठ’’ मनाया जाता है। इसमें परिवार नदी में स्नान करके, वहाँ वेदी बना कर पूजा का कलश स्थापित करता है और सूर्य को अर्घ्य देता है। चैत्र नवरात्रों में नदी में अष्टमी स्नान किया जाता है। वहाँ मेला लगा होता है जहाँ खा पीकर खरीदारी करके लौटते हैं। नवमीं को कन्यापूजन कर, नवरात्र व्रत का पारण करके भगवान श्रीराम का जन्मदिन(6 अप्रैल) पूरे भारत में श्रद्धा और हर्षोलास से मनाया जाता है।



 रवि की फसलें पक रहीं हैं कटाई शुरू होनी है जो कड़ी मेहनत का काम है। जिसके लिए स्वस्थ रहना भी जरूरी है। नवरात्र के नौ दिन शाकाहार, अल्पहार, उपवास, नियम, अनुशासन से आने वाले मौसम परिवर्तन के लिए शरीर को तैयार करते हैं। 

मौसम भी महोत्सव की तारीख तय करता है!! श्रीनगर का टयूलिप महोत्सव(1 से 30 अप्रैल) जब टयूलिप की कलियाँ खिलने को तैयार होती हैं तब यह उत्सव पंद्रह दिन से एक महीने तक मनाया जाता है। हर वर्ष मौसम इस महोत्सव की तारीखें तय करता है। होता अप्रैल में ही है।

उगादी के बाद से दक्षिण भारत में आम, कैरी खाना शुरु हो जाता है। उत्तर पूर्व भारत के नागालैंड के मोन जिले में आओलिंग महोत्सव(1 से 6 अप्रैल) कोन्याक जनजातियों का पर्व है। ये अपना अधिकतर समय खेती करने और शिकार करने में बिताते हैं। हर साल वसंत को चिहिंत करने के लिए यह त्योहार मनाते हैं।

मोपिन महोत्सव(5 अप्रैल) अरूणाचल प्रदेश का आनन्दायक उत्सव है। यह फसल उत्सव एलॉन्ग, बसर और बामे के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला उत्सव है। उस समय यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य बहुत मनमोहक होता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस उत्सव द्वारा बुरी आत्माओं को दूर रखा जाता शांति और सद्भावना का संदेश फैलाने वाले त्यौहारों में महावीर जयंती 10 अप्रैल को मनाई जायेगी। यह जैन धर्म के 24वें तीर्थकंर भगवान महावीर के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाई जाती है।

हनुमान जयंती(12 अप्रैल) को मंदिरों में सुदंरकाण्ड का पाठ और भण्डारे आयोजित किए जाते हैं।

13 अप्रैल 1699 को श्री केसरगढ़ साहिब आनन्दपुर में दसवें गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी इसलिए सभी गुरुद्वारों में वैसाखी समारोह मनाया जाता है। मुख्य समारोह आनन्दपुर साहिब में होता है।


वैसाखी उत्सव फसल कटाई समय को दर्शाता है और ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी वैसाखी को धरती पर अवतरित हुई थी इसलिए इस दिन गंगा स्नान का महत्व है जो नहीं पहुंच सकते वे अपने आस पास बहने वाली नदी पर जाते हैं। पंजाब में वैसाखी के दिन नदियों के पास ही मेले लगते हैं। सुबह सपरिवार जो भी पास में नदी या बही होती है, वहाँ स्नान करते हैं। लौटते हुए जलेबी और अंदरसे खाते हैं। लोटे में नदी का जल, गेहूँ की पाँच छिंटा(बालियोंवाली डंडियां) घर लाकर उस पर कलेवा बांध कर मुख्य द्वार से लटका दिया जाता है और नदी के जल को पूजा की जगह रख दिया जाता है। स्कूलों में भी बाडियां( गेहूं की कटाई) की छुट्टियां हो जाती हैं। फिर सपरिवार कटाई में लग जाते हैं। इन दिनों जो नौकरी पेशा सदस्य दूसरे शहरों में रहते हैं। वे भी पैतृक घरों में जाकर बाडियां में मदद करते हैं। बर्जुग परिवार को चेतावनी देते हुए कवित्त कहते हैं

 ’पक्की खेती जान कर, न कर तूं अभिमान, 

 मींह, नेरी देख के, घर आई ते जान। 

 यानि लहलहाती फसल को देख कर कभी अभिमान मत करना। मौसम का कुछ नहीं पता। आंधी, वर्षा से बच कर जब फसल खेत से खलिहान में आ जाती है, तब खुश होना। कटाई के बाद बैसाखी में लाये उस नदी के जल को खाली खेत में छिड़क दिया जाता है।

पूर्वोतर भारत का मुख्य रोजगार चाय बगान है। किसी के पास कोई भी हुनर नहीं है तो भी उसके लिए रोजगार है, चाय की पत्ती तोडने का। हथकरघे का काम तो प्रत्येक घर में होता है। लोग बहुत र्कमठ हैं। महिलाएं कुछ ज्यादा ही मेहनती हैं, खेती के साथ कपड़ा भी बुनती हैं। इतनी मेहनत के बाद, त्यौहारों को बहुत उत्साह से मनाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बैसाख यानि अप्रैल में मनाया जाने बिहु उत्सव है। इस समय बसन्त के कारण प्राकृतिक सौन्दर्य चारों ओर होता है। इसे रोंगाली बिहु या बोहाग बिहू(14 से 20 अप्रैल) भी कहते हैं। एक महीना रात भर किसी न किसी के घर बीहू नृत्य गाना होता है। जो अपने घर करवाता है। वह सबका खाना पीना, बकरी ,सूअर का मांस पकाता है और हाज (चावल की बीयर) आदि का बन्दोबस्त करता है। इसे सम्मान सेवा कहते हैं। मूंगा सिल्क जिसे दुनिया में गोल्डन सिल्क ऑफ आसाम कहते हैं, विश्व में और कहीं और नहीं होता। पुरूष गमझा गले में डालते है। मेखला चादर तो बहुत ही खूबसूरत पोशाक है, उसे नृत्य के समय पहनते हैं। सब रेशम का होता है। बिहु की विशेषता है इसे सब मनाते हैं कोई जाति, वर्ग, धनी निर्धन का भेद भाव नहीं होता। 

शाद सुक मिंसिएम उत्सव(14 अप्रैल) मेघालय का लोकप्रिय त्योहार है। जैसे भारत के अधिकतर हिस्सों में फसल कटाई की खुशी के पर्व हैं। उसी तरह खासी पुरूष और महिलाएं भी रेशमी कपड़ों में और गहनों से सजकर, पुरूष रेशमी धोती, बास्केट, पंख लगी पगड़ी और पारंपरिक आभूषण पहन कर साथ साथ नाचते हैं। इसे थैंक्सगिविंग फैस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है।

 उत्तराखण्ड में बिखोती उत्सव मनाया जाता है जिसमें पवित्र नदी में स्नान करके राक्षस को पत्थर मारने की प्रथा है। 

यूनेस्को द्वारा 2016 में मानवता की सांस्कृतिक विरासत के रुप में दर्ज, पाहेला वैशाख बंगाल, त्रिपुरा, बांगलादेश में उत्सव पर मंगल शोभा जात्रा का आयोजन होता है। झारखण्ड के आदिवासी, समुदाय के साथ सरहुल मनाते हैं और सरना देवी की पूजा करते हैं। उसके बाद से नया धान, फल, फूल खाते हैं और बीज बोया जाता है। यह माँ प्रकृति की पूजा और वसंत उत्सव है जो प्रजनन का भी संकेत देता है और शादी विवाह की शुरूआत होती है। जुरशीतल भारत और नेपाल क्षेत्र में मैथिलों द्वारा मनाया जाता है। मैथिल नववर्ष को जुरशीतल के उत्सव 14 अप्रैल को मिथिला दिवस का अवकाश रहता है। मैथिल इस दिन भात और बारी(बेसन की सरसों के तेल में छनी) और गुड़ वाली पूरी बनाते हैं। पाना संक्राति, महा बिशुबा संक्राति, उड़िया नुआ बरसा, उड़िया नया साल का सामाजिक, सांस्कृतिक धार्मिक उत्सव है। इस समारोह का मुख्य आर्कषण मेरु जात्रा, झामु जात्रा और चाडक पर्व है। कहीं कहीं पर छाऊ नृत्य, लोक शास्त्रीय नृत्य समारोह होता है। अंगारों पर भी चलते हैं। 

 तमिल नववर्ष को पुथांडु उत्सव कहते हैं। तमिल महीने चितराई के पहले दिन पुथांडु, तमिल नाडु, पांडीचेरी, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, मारीशियस में और विश्व में जहां भी तमिलियन हैं मनाया जाता है। यह आमतौर पर 14 अप्रैल को पड़ता है। इस दिन को तमिल नववर्ष या पुथुवरुशम के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार परिवार के सभी लोग एक साथ मिलकर मनाते हैं। घर की सफाई, फूलों और लाइटों से सजावट करके, र्हबल स्नान कर, नये कपड़े पहन कर मंदिर जाते हैं। घरों में शाकाहारी भोजन वडा, पायसम, खासतौर पर ’मैंगो पचड़ी’ बनाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन देवी मीनाक्षी ने भगवान सुन्दरेश्वर से विवाह किया था। 

केरल का नववर्ष मलियाली महीने मेदान के पहले दिन विशु मनाया जाता है। आसपास के राज्यों के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है। 14 या 15 अप्रैल को परिवार के साथ मनाते हैं। यह पर्व भगवान विष्णु और उनके अवतार कृष्ण को समर्पित है। इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है। पिछली फसल के लिए भगवान का धन्यवाद किया जाता है और धान की बुआई की जाती है। परिवार के बुजुर्ग विशुकानी(विष्णु की झांकी) सजाते हैं। सुबह बच्चों की आंखो को ढक कर परिवार का बड़ा, बच्चे को विशुकानी के सामने लाकर आंखों सेे हाथ हटा लेता है। अर्थात सुबह सबसे पहले भगवान के दर्शन करते हैं। बुजुर्ग बच्चों को विषुक्कणी(भेंट या रूपए) देते हैं। मंदिर जाते हैं। विषु भोजन करते हैं जिसमें 26 प्रकार का शाकाहारी भोजन होता है। इतने प्यारे फसलों के त्यौहार जिसमें सुस्वादु भोजन बनते हैं, नौकरी के कारण परिवार से दूूर गए सदस्यों को भी अति व्यस्त होने पर भी, कुटुंब में आने को मजबूर करते हैं। कदम्मनिता पदयानी(14 से 23 अप्रैल) यह त्यौहार पर केरल में राज्य की समृद्ध संस्कृति, कौशल, सजावट, परंपराओं और रंग का शानदार प्रर्दशन है। इसलिए इन दिनों बहुत से कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। 

 भारतीय संविधान के पिता, भारत के महान व्यक्तित्व बाबासाहेब डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर का जन्मदिन 14 अप्रैल को धूमधाम से मनाया जाता है। कोल्लम पूरम, कोल्लम(15 अप्रैल) कोल्लम के आश्रमम मैदान में एक सप्ताह तक चलने वाले इस उत्सव के दौरान मंदिर की मूर्ति को एक भव्य पालकी पर ले जाया जाता है। जिसके पीछे भक्त अनुष्ठान करते हैं। नर्तक और संगीतकार अपनी कला के द्वारा श्रद्वांजलि देते हैं। सजे हुए हाथी इसे सबसे लोकप्रिय उत्सव बनाते हैं। इस उत्सव में स्थानीय प्रर्दशन, अनुष्ठान, भोजन केरल के असली रंग से परिचित कराता है।  

 संकटमोचन संगीत महोत्सव(16 से 21 अप्रैल) यह वार्षिक संगीत महोत्सव हनुमान जयंती के अवसर पर वाराणसी के घाट पर आयोजित किया जाता है। भारत के सबसे प्रतिष्ठित इस महोत्सव में देश के लोकप्रिय शास्त्रीय संगीतकारों को सुनने का आनन्द मिलता है। 

गरिया पूजा(20 अप्रैल) त्रिपुरा में सात दिन तक चलने वाला यह उत्सव है। इसमें गरिया देवता की पूजा होती है जो पशुधन और धन की रक्षा करते हैं। इस दौरान भगवान गरिया को प्रसन्न करने के लिए बच्चे ढोल बजा कर नाचते गाते हैं। अंतिम दिन सरकारी अवकाश होता है।

  वरुथिनी एकादशी(26 अप्रैल) के दिन भगवान श्री हरिहर विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसा मानना है कि कुरूक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय जो एक मन सोना दान करके पुण्य मिलता है, वही पुण्य इस दिन व्रत करने से मिलता है। श्री वल्लभाचार्य जयंती इस वर्ष उनका 546वां जन्मदिन है। वाराणसी में तेलगु ब्राह्मण परिवार में जन्में महापुरूष के लिए प्रचलित मान्यता है कि भगवान कृष्ण श्रीनाथ जी के रूप में इनके सामने प्रकट हुए थे। कोलमाईनर्स डे भारत यह दिवस कोयला खनिकों की कठिन मेहनत और समाज में उनके योगदान को याद करने के लिए मनाया जाता है।

परशुराम जयंती 29 अप्रैल महर्षि के सम्मान में इस दिन को उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति करने के लिए, जीवन की सुखसुविधाओं का त्याग करने के तरीके के रूप में मनाया जाता है। इसको अक्षय तृतीया भी कहा जाता है, जो नए प्रयास शुरू करने, व्यवसाय शरू करने, सोना खरीदने के लिए यह दिन बहुत शुभ होता है। इस दिन बिना महूर्त के कोई भी शुभ कार्य कर लेते हैं। मसलन खूब शादियाँ होतीं हैं। इसे हिंदू और जैन दोनों मनाते हैं। 

बसव जयंती(30 अप्रैल) लिंगायतों द्वारा पारंपरिक रूप से मनाई जाने वाली बसवन्ना की जयंती है जो 12वीं सदी के हिंदू कन्नड़ कवि और दार्शनिक शिव के अनुयायी थे। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना में मनाया जाता है। कर्नाटक और महाराष्ट्र में सरकारी अवकाश होता है। उत्सव बसवेश्वर मंदिरों में मनाया जाता है। मातंगी जयंती देवी मातंगी को दस महाविद्या में नवीं महाविद्या के रूप में पूजते हैं। इनके पूजन से वैवाहिक जीवन सुखी रहता है। इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है।

चिथिराई महोत्सव, एक महीने 25 अप्रैल से 7 मई मदुरै तमिलनाडु,  मदुरै के प्रसिद्ध मंदिर में भगवान सुंदरेश्वर के साथ देवी मीनाक्षी के विवाह उपलक्ष में मनाया जाता है। जोड़े की मूर्तियों को सजाए गए रथ में शहर के चारों ओर ले जाया जाता है। जिसका लोग बड़े उत्साह से स्वागत करते हैं। इस अवसर पर व्यापार प्रदर्शनी, मेले आयोजित किए जाते हैं।

22 अप्रैल को पर्यावरण सुरक्षा के सर्मथन में विश्व पृथ्वी मनाते हैं। फसल उत्सव, प्रेरणास्रोत महापुरुषों का जन्मदिन, पशुधन और पर्यावरण संरक्षण को विशेष दिनों में मनाना हमारे जीवन को खुशहाल बनाता है। 

 नीलम भागी

जर्नलिस्ट, लेखिका, ब्लॉगर, ट्रैवलर

प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से प्रकाशित प्रेरणा विचार पत्रिका के अप्रैल अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ है।