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Wednesday, 7 September 2022

बासुकीनाथ दर्शन बैजनाथ यात्रा भाग 13 नीलम भागी Basukinath Darshan Baidhnath Yatra Part 13 Neelam Bhagi

 



  लाइन में चलते हुए मैं वहाँ तक पहुँच गई, जहाँ बोर्ड लगा हुआ है, आप मंदिर के करीब हैं। मैंने देखा मेरी सहयात्री कोई भी दूर दूर तक नहीं है। यहाँ से चार लाइनें बराबर चल रहीं हैं। गीले यहाँ भी सभी हैं। मैं पीछे क्यों रह गई? अब मैं इस पर मीमांसा करने लगी। हुआ यूं कि पीछे से कोई कांवड़ियों का ग्रुप ’बोल बम बोल बम’ बोलता दौड़ता हुआ आता मैं साइड दे देती। अब मैं सबसे पीछे हो जाती मेरे आगे 30-40 लोग लग जाते। नीचे कार्पेट बिछे हुए थे जो ज़ाहिर है, गीले हैं।

कहीं कहीं पर कार्पेट नहीं है। उस पर चलते हुए जब मुझे पैरों में कंकड़ चुभ रहें हैं तो कांवड़ियों के तो पैरों में छाले पड़े होते हैं! उनके पांव के छाले में में कंकड़ चुभते होंगे तो व्यवस्थापकों को इस पर ध्यान देना चाहिए। अगली बार कांवड़ियों का बहुत बड़ा ग्रुप ’बम बम’ करता भागता हुआ आया। मैं फिर साइड में लग जाती। बाद में मैंने ध्यान दिया कि वो खाली जगह से दौड़ते आते हैं अगर मैं न हटती तो वे मेरे पीछे लाइन लगा लेते। दाएं बाएं बिना देखे इन्हें भागते देख कर मैंने ध्यान दिया कि आस पास से लोग लाइन में घुस कर व्यवस्था खराब न करें इसलिए साइड पर जाली लगा रखी है। पर ये क्या यह जाली तो उखड़ कर  कहीं कहीं अन्दर की ओर मुड़ी हुई है। कोई भी उसके पास से गुजरेगा तो उसकी टाँगों में चुभेंगी।

फिर र्बोड आ जाता है आप मंदिर के बहुत करीब हैं।

यहाँ से लाइने पास पास होने से बहुत भीड़ हो गई है। इस भीड़ के साथ ही मैं मंदिर के एकदम निकट पहुँच गई पर अपनी तबियत बिगड़ती देख मैं एकदम खुले में आ गई। तो मेरी तबियत सुधरने लगी। सिक्योरिटी से बाहर का रास्ता पूछने लगी। वह मेरे साथ चलता रहा। बस मैंने चलते हुए हाथ जोड़े जो दर्शन किया उससे यही समझी कि मंदिर वैद्यनाथ मंदिर की तरह ही लगता है। पार्वती जी के मंदिर के साथ मां काली का मंदिर है और देवी देवताओं के मंदिर हैं। यहाँ भी लंबी डंडी की कड़छी की तरह में धूप ज्योत जला कर श्रद्धालू गर्भग्रह के बाहर आरती कर रहे हैं। सिक्योरिटी ने मुझसे कहा कि आप अगर ठीक महसूस कर रहीं हैं तो मैं गर्भग्रह में ले चलता हूँ। मैंने कहा,’’नहीं अब जब भी यहां आउंगी तो किसी विशेष दिन पर नहीं। मेला तो दो दिन से देख ही रहीं हूं।’’उसने कहा," आप सीधा जाइएगा वहाँ हमारा स्वास्थ्य शिविर लगा हुआ है।’’ मैं चल दी। भीड़ में चलते हुए शिविर में पहुंच गई। उन्होंने मुझे कुर्सी पर बिठा दिया, मुझे कुछ था ही नहीं। जितनी मैंने लाइन में व्यवस्था की कमियां निकाली। इन लोगों के व्यवहार से मेरी सोच बदल गई। इतने बड़े जनसमूह के इंतजाम में थोड़ी बहुत कमी तो रह ही जाती है और मैं ढूंढ ढूंढ कर कमियां निकाल रही थी। मैंने सोचा कि बस स्टैण्ड पर जाकर अपनी बस में बैठ जाती हूँ। उनसे पूछा कि रिक्शा कहाँ मिलेगी? वे बोले,’’यहाँ भीड़ के कारण रिक्शा मना है, थोड़ा आगे जाकर मिलेगा। और पूछा, "कहाँ जाना है?’’ मैं बोली कि बस स्टैण्ड। उन्होंने पूछा,’’कौन से बस स्टैण्ड यहाँ तो चार बस स्टैण्ड हैं?’’ मैं भूल गई। गुप्ता जी को फोन किया उन्होंने कॉल नहीं ली। मैं आराम से बैठ गई। यह सोच कर कि गुप्ता जी कॉल बैक जरुर करते हैं। इतने में भीड़ में गुप्ता जी ग्रुप के साथ दिखे, मैं भी उनमें शामिल हो गई। क्रमशः