पणजी मीरामार बीच, डोना पाउला अधूरी प्रेम कहानी, बिग फुट, कोकम शर्बत, मंगेशी टैम्पल, चर्च, गोवा वैक्स म्यूजियम गोवा यात्रा भाग 6
नीलम भागी
़5 मिनट पहले हम अपनी बस की ओर चल पड़े, हमारे सहयात्रियों में कॉलिज के छात्र छात्राएँ भी थे। सब चुम्मू से दोस्ती करना चाहते थे। नये लोग थे इसलिये ये संकोच कर रहा था। अगर कोई उसे चुम्मू कहता तो तुरंत उसे समझाता कि उसका नाम शाश्वत है, सिर्फ नीनों का चूम्मू है। बस में जैसे ही हम अपनी अपनी सीटों पर बैठे। गाइड ने बताया अब हम फिश संग्राहलय जा रहे हैं। वहाँ पहुँचते ही हमने टिकट लिया और समुद्री जीवों को देखना शुरू किया। ये जीवित थे। सबके साथ उनके नाम लिखे हुए थे। चुम्मू की हैरान शक्ल को देख कर सब खुश हो रहे थे। जहाँ कुछ ऊँचा होता, कोई भी चुम्मू को उठा कर दिखाता। बाहर आते ही गाइड ने मेरे हाथ में दो टिकट देखते ही एक टिकट लेकर चला गया, कुछ देर बाद लौटा तो मेरे हाथ में एक टिकट के रूपये रख कर बोला,’’बताओ भला बच्चे से टिकट ले ली।’’
उन दिनों यहाँ फिल्म फैस्टिवल लगा हुआ था। चौड़ी साफ सड़के, वैसे ही फुटपाथ जिनके दोनो ओर विशाल पेड़ और अब सजावट भी की गई थी। एक किमी. की दूरी पर मीरामार बीच था। यहाँ का पानी ठण्डा था और दूर तक सिल्वर रेत फैली हुई थी। अब बस यहाँ से तीन किलोमीटर दूर डोना पाउला की ओर जा रही थी, जिसे आशिकों का स्वर्ग भी कहा जाता है। अन्दर गाइड हमें उनकी प्रेम कथा सुना रहा था और हम सब मंत्र मुग्ध सुन रहे थे। वायसराय डी. मेनजस की बेटी डोना और एक मछुआरे में प्यार हो गया। जिसका बहुत विरोध हुआ पर अत्यंत सुन्दरी डोना ने धनवान की बेटी होते हुए भी, निर्धन मछुआरे का साथ नहीं छोड़ा। प्रेमी जोड़े ने ऊँचाई से कूद कर जान दे दी। इक दूजे फिल्म की शूटिंग भी यहाँ पर हुई थी। बस रूकते ही सब डोना पाउला की मूर्तियाँ छूने चल दिये। यहाँ पर तो प्रेमी प्रेमिकायें बहुतायत में थे। यहाँ एक बाजार भी लगा हुआ था। यहाँ घूमने के बाद हमारी बस बिग फुट ले गई। अंदर जाते ही मध्यम वॉल्यूम में गोवन म्यूजिक बज रहा था। कहते हैं कि गोअन संगीत की समझ से पैदा होता है। यहाँ आकर मुझे लगा कि गोअन संगीत सबकी पसंद बन जाता है। हल्की धुन में गोवन संगीत चल रहा था, हम चल रहे थे और साथ में गाइड का वर्णन चल रहा था। खेती, मछली पालन, लघु उद्योग, नमक बनाने से लेकर औजार बनाने तक को दर्शाया था। कभी कुछ सीढ़ियाँ चढ़ते कभी उतरते। मिठाई की दुकान ऐसी कि चुम्मू ने खाने की जिद पकड़ ली। सबने समझाया कि इनको मिट्टी से बनाकर, कलर किया है। यहाँ मैंने पहली बार कोकम का शरबत पिया, मीठे, नमक और खट्टे का गज़ब का मेल था। मैंने तुरंत कोकम के कंसनट्रेट शरबत का एक जार खरीद लिया। वहाँ से लोकल खाने के जल्दी न खराब होने वाले छोटे छोटे पैकेट ले लिए। हमारी बस के साथी गोवा के नहीं थे। सभी जी भर के कोकम शरबत पर रहे थे। पहला गिलास तो मुफ्त का था। उसके बाद पे करना था। चुम्मू ने कहीं भी कुछ नहीं चखा। मैंने कोकम शर्ब्ात पीने के लिये बहुत कहा तो बोला,’’नीनो, आपने अमुक हीरो की बॉडी देखी है, वो तमुक कोल्ड ड्रिंक पीता है। मैं भी वैसा स्ट्रांग बनूंगा।’’ मेरी आँखों के सामने वह विज्ञापन आ गया, जिसमें बोतल में बंद चुल्लू भर रंगीन पानी पी कर बड़े बड़े करतब करता, अमुक हीरो था। संग्राहलयों में घूमते पसीना आता जगह जगह ताजा नारियल पानी बिकता था, मैं पीती पर उसने कोल्डड्रिंक, कुरकुरे, चिप्स और आइसक्रीम के सिवाय कुछ नहीं खाया। मैं सोच रही थी कि बच्चों के खानपान पर बाजारवाद का कितना असर पड़ चुका है। अब बस मंगेशी मंदिर की ओर जा रही थी। रास्ते में एक रैस्टोरैंट पर खाने के लिये बस रूकी। चुम्मू ने फ्रैंच फ्राइस, मैंने चावली(लोबिया), सोरक करी और रोटी आर्डर की। अब हम मंगेशी मंदिर गए। इसकी वास्तुशैली शांतादुर्गा मंदिर जैसी है। प्रत्येक सोमवार यहाँ से शिवजी की यात्रा निकाली जाती है। अब हम बासिलिका ऑफ बोम जीसस चर्च गए। जिसमें से. जेवियर की पार्थिव देह रक्खी है। यह 400 साल पुराना है। इसके सामने से. कैथेड्रल चर्च है। इस पुर्तगाली शैली की चर्च को बनाने में 75 वर्ष लगे थे। अंदरूनी सजावट व भव्यता दर्शकों का मन मोहती है। यहाँ से बाहर कुछ लोग टैटू बनवा रहे थे। चुम्मू ने तो रोना शुरू कर दिया कि मुझे तो टैटू बनवाना है। किसी तरह माने नहीं। एक छात्र ने टैटू बनाने वाले को समझा दिया। मैं चुम्मू को लेकर उसके पास गई और बोली,’’ इसकी बाँह पर टैटू बना दो।’’ टैटू वाला बोला,’’आपको पुलिस पकड़ लेगी, जो बच्चों के टैटू बनवाता है। उसे पुलिस पकड़ लेती है।’’चुम्मू मेरा हाथ पकड़ कर बस की ओर भागने लगा। यहाँ से हम ’वैक्स डी गोवा’’ आर्ट गैलरी एण्ड म्यूजियम गए। यहाँ इतिहासिक , महापुरूषों और सैलिब्रिटीज़ की हूबहू मोम में बनी आकृतिया थीं। चुम्मू को गांधी जी के तीन बंदर बहुत पसंद आये। सीढ़ियों से उतरे तो नीचे बाजार लगा हुआ था। बस में बैठते ही चुम्मू सो गया, हम लौट रहे थे। जो लोग सामान ले कर आये थे। वे होटल से चैक आउट कर के आये थे। गाइड ने उन लोगो से पूछ लिया था। जहाँ जिसको बस अड्डा या स्टेशन हमारे रास्ते के पास पड़ता उसे उतारता, सामान उतारने में मदद करता। मुझसे भी पूछा कि हम कहाँ ठहरे हैं? मैंने बताया तो मुझे भी कहा कि बेटे को बोल दो, सवा सात बजे अमुक जगह पहुँच जाये। जब हमारी बस वहाँ से निकली, तो अंकूर श्वेता वहाँ खड़े थे। पास ही हमारा अर्पाटमेंट था।
नीलम भागी
़5 मिनट पहले हम अपनी बस की ओर चल पड़े, हमारे सहयात्रियों में कॉलिज के छात्र छात्राएँ भी थे। सब चुम्मू से दोस्ती करना चाहते थे। नये लोग थे इसलिये ये संकोच कर रहा था। अगर कोई उसे चुम्मू कहता तो तुरंत उसे समझाता कि उसका नाम शाश्वत है, सिर्फ नीनों का चूम्मू है। बस में जैसे ही हम अपनी अपनी सीटों पर बैठे। गाइड ने बताया अब हम फिश संग्राहलय जा रहे हैं। वहाँ पहुँचते ही हमने टिकट लिया और समुद्री जीवों को देखना शुरू किया। ये जीवित थे। सबके साथ उनके नाम लिखे हुए थे। चुम्मू की हैरान शक्ल को देख कर सब खुश हो रहे थे। जहाँ कुछ ऊँचा होता, कोई भी चुम्मू को उठा कर दिखाता। बाहर आते ही गाइड ने मेरे हाथ में दो टिकट देखते ही एक टिकट लेकर चला गया, कुछ देर बाद लौटा तो मेरे हाथ में एक टिकट के रूपये रख कर बोला,’’बताओ भला बच्चे से टिकट ले ली।’’
उन दिनों यहाँ फिल्म फैस्टिवल लगा हुआ था। चौड़ी साफ सड़के, वैसे ही फुटपाथ जिनके दोनो ओर विशाल पेड़ और अब सजावट भी की गई थी। एक किमी. की दूरी पर मीरामार बीच था। यहाँ का पानी ठण्डा था और दूर तक सिल्वर रेत फैली हुई थी। अब बस यहाँ से तीन किलोमीटर दूर डोना पाउला की ओर जा रही थी, जिसे आशिकों का स्वर्ग भी कहा जाता है। अन्दर गाइड हमें उनकी प्रेम कथा सुना रहा था और हम सब मंत्र मुग्ध सुन रहे थे। वायसराय डी. मेनजस की बेटी डोना और एक मछुआरे में प्यार हो गया। जिसका बहुत विरोध हुआ पर अत्यंत सुन्दरी डोना ने धनवान की बेटी होते हुए भी, निर्धन मछुआरे का साथ नहीं छोड़ा। प्रेमी जोड़े ने ऊँचाई से कूद कर जान दे दी। इक दूजे फिल्म की शूटिंग भी यहाँ पर हुई थी। बस रूकते ही सब डोना पाउला की मूर्तियाँ छूने चल दिये। यहाँ पर तो प्रेमी प्रेमिकायें बहुतायत में थे। यहाँ एक बाजार भी लगा हुआ था। यहाँ घूमने के बाद हमारी बस बिग फुट ले गई। अंदर जाते ही मध्यम वॉल्यूम में गोवन म्यूजिक बज रहा था। कहते हैं कि गोअन संगीत की समझ से पैदा होता है। यहाँ आकर मुझे लगा कि गोअन संगीत सबकी पसंद बन जाता है। हल्की धुन में गोवन संगीत चल रहा था, हम चल रहे थे और साथ में गाइड का वर्णन चल रहा था। खेती, मछली पालन, लघु उद्योग, नमक बनाने से लेकर औजार बनाने तक को दर्शाया था। कभी कुछ सीढ़ियाँ चढ़ते कभी उतरते। मिठाई की दुकान ऐसी कि चुम्मू ने खाने की जिद पकड़ ली। सबने समझाया कि इनको मिट्टी से बनाकर, कलर किया है। यहाँ मैंने पहली बार कोकम का शरबत पिया, मीठे, नमक और खट्टे का गज़ब का मेल था। मैंने तुरंत कोकम के कंसनट्रेट शरबत का एक जार खरीद लिया। वहाँ से लोकल खाने के जल्दी न खराब होने वाले छोटे छोटे पैकेट ले लिए। हमारी बस के साथी गोवा के नहीं थे। सभी जी भर के कोकम शरबत पर रहे थे। पहला गिलास तो मुफ्त का था। उसके बाद पे करना था। चुम्मू ने कहीं भी कुछ नहीं चखा। मैंने कोकम शर्ब्ात पीने के लिये बहुत कहा तो बोला,’’नीनो, आपने अमुक हीरो की बॉडी देखी है, वो तमुक कोल्ड ड्रिंक पीता है। मैं भी वैसा स्ट्रांग बनूंगा।’’ मेरी आँखों के सामने वह विज्ञापन आ गया, जिसमें बोतल में बंद चुल्लू भर रंगीन पानी पी कर बड़े बड़े करतब करता, अमुक हीरो था। संग्राहलयों में घूमते पसीना आता जगह जगह ताजा नारियल पानी बिकता था, मैं पीती पर उसने कोल्डड्रिंक, कुरकुरे, चिप्स और आइसक्रीम के सिवाय कुछ नहीं खाया। मैं सोच रही थी कि बच्चों के खानपान पर बाजारवाद का कितना असर पड़ चुका है। अब बस मंगेशी मंदिर की ओर जा रही थी। रास्ते में एक रैस्टोरैंट पर खाने के लिये बस रूकी। चुम्मू ने फ्रैंच फ्राइस, मैंने चावली(लोबिया), सोरक करी और रोटी आर्डर की। अब हम मंगेशी मंदिर गए। इसकी वास्तुशैली शांतादुर्गा मंदिर जैसी है। प्रत्येक सोमवार यहाँ से शिवजी की यात्रा निकाली जाती है। अब हम बासिलिका ऑफ बोम जीसस चर्च गए। जिसमें से. जेवियर की पार्थिव देह रक्खी है। यह 400 साल पुराना है। इसके सामने से. कैथेड्रल चर्च है। इस पुर्तगाली शैली की चर्च को बनाने में 75 वर्ष लगे थे। अंदरूनी सजावट व भव्यता दर्शकों का मन मोहती है। यहाँ से बाहर कुछ लोग टैटू बनवा रहे थे। चुम्मू ने तो रोना शुरू कर दिया कि मुझे तो टैटू बनवाना है। किसी तरह माने नहीं। एक छात्र ने टैटू बनाने वाले को समझा दिया। मैं चुम्मू को लेकर उसके पास गई और बोली,’’ इसकी बाँह पर टैटू बना दो।’’ टैटू वाला बोला,’’आपको पुलिस पकड़ लेगी, जो बच्चों के टैटू बनवाता है। उसे पुलिस पकड़ लेती है।’’चुम्मू मेरा हाथ पकड़ कर बस की ओर भागने लगा। यहाँ से हम ’वैक्स डी गोवा’’ आर्ट गैलरी एण्ड म्यूजियम गए। यहाँ इतिहासिक , महापुरूषों और सैलिब्रिटीज़ की हूबहू मोम में बनी आकृतिया थीं। चुम्मू को गांधी जी के तीन बंदर बहुत पसंद आये। सीढ़ियों से उतरे तो नीचे बाजार लगा हुआ था। बस में बैठते ही चुम्मू सो गया, हम लौट रहे थे। जो लोग सामान ले कर आये थे। वे होटल से चैक आउट कर के आये थे। गाइड ने उन लोगो से पूछ लिया था। जहाँ जिसको बस अड्डा या स्टेशन हमारे रास्ते के पास पड़ता उसे उतारता, सामान उतारने में मदद करता। मुझसे भी पूछा कि हम कहाँ ठहरे हैं? मैंने बताया तो मुझे भी कहा कि बेटे को बोल दो, सवा सात बजे अमुक जगह पहुँच जाये। जब हमारी बस वहाँ से निकली, तो अंकूर श्वेता वहाँ खड़े थे। पास ही हमारा अर्पाटमेंट था।