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Friday 17 May 2019

सोमनाथ से अहमदाबाद रवानगी, गुजराती थाली Gujrati thali ,नीलम भागी Gujrat yatra 12


नीलम भागी
 हमें अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ जाना था। ड्राइवर ने बताया कि ये दूरी 430 किमी. है और कम से कम आठ घण्टे का समय लगेगा। बस में बैठ कर, मेरा तो एक ही काम रहता है, खिड़की से बाहर देखते रहना और वो मैं देखती ही रही। सब आपस में बतियाते रहे फिर बस में शांति हो गई। इतने में देवेन्द्र वशिष्ठ उठे और उन्होंने बस में सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरूवात कर दी और संचालन अंजना अंजुम को सौंप दिया। अंजना अंजुम ने सबसे पहले देवेन्द्र वशिष्ठ को कुछ सुनाने के लिये आमंत्रित किया। उन्होंने लक्ष्मण मूर्छा के संदर्भ में भजन गाया और एक देवी का गाया। पूनम माटिया ने शेर सुनाये। मनोज शर्मा ’मन’ ने अपनी रचनाएं सुनाईं। बाबा कानपुरी ने छंद सुनाये। अंजना अंजुम ने कवितायें और ब्रज की शैली में भजन गाये। सब ताली बजा कर उनके साथ गाने लगे। के.के. दीक्षित जी ने कब्ज और हाज़त रफा पर किसी शायर के शेर सुना कर हंसने पर मजबूर कर दिया। बीच बीच में जे. पी. गौड़ और त्यागी जी सबको कुछ न कुछ खाने को देते रहे। अंजना  को कुछ सुनाने के लिये बुलाया, उसे लगा कि भजनों की कुछ ओवरडोज़ हो गई है। इसलिये उसने अपने जन्म से पहले के फिल्मी गीत गाने शुरू किये मसलन जवां है मौहब्वत, हंसी है ज़माना, शोला जो भड़के, दिल मेरा धड़के आदि। गाने के शौकीनों ने साथ दिया। मैं और अन्य साथी बहुत अच्छे श्रोता रहे। अंजना अंजुम ने कुशल संचालन किया। समापन के कुछ समय बाद ड्राइवर ने गाड़ी परफैक्ट परोंठा हाउस नेशनल हाइवे गोनडल पर रोक दी। सबने अपने मोबाइल चार्जिंग के लिये दिये। पता नहीं वो कितने प्वाइंट लगा कर बैठा था, सबके लगा दिये। देवेन्द्र वशिष्ठ ने सबसे पूछा कि लंच में क्या होना चाहिये। सबने गुजराती थाली की डिमाण्ड की। कई तरह की रोटियां, मक्का, बाजरा, बाजरी रोटलो, पूरी, भाखरी, परांठे, पूरन पोली, थेपला, रिंगना मेथी नो शाक, खट्टी मीठी दाल, उंधयू, भिंडी सांभरिया, बटेटा रसीला, स्टीम्ड बासमती राइस, बादशाही खिचड़ी, पुलाव, बटेटा सूखी भाजी, ढोकला, समोसा , सेव भाजी, कचूंबर सलाद, कढ़ी, पापड़, कई तरह की चटनियां, छास, पनीर भाजी और फ्रूट क्रीम। सब अनलिमिटिड। मैं अंजना एक टेबल पर खाने बैठे, जूठा हम छोड़ते नहीं हैं इसलिये हमने खाली थाल और कटोरियां ली। इतनी वैरायटी थोड़ा थोड़ा लेने पर ही पेट बुरी तरह भर गया। सब कुछ स्वाद था। लेटने को तो था नहीं आगे फिर सफ़र। अब सब बस में उंघ रहे थे। मुझे तो बिस्तर पर ही नींद आती है। मैं फिर बाहर देखती रही। सायं पांच बजे एक रैस्टोरैंट पर बस रूकी। मैं चाय लेकर बाहर आ गई। सामने हाइवे था। दोनो चौड़ी सड़को के बीच में थोड़ी सी कच्ची जगह थी। वहाँ एक परिवार बैठा कुछ कर रहा था। फिर सब खड़े हो गये। मैंने एक आदमी से पूछा कि ये लोग वहाँ क्या कर रहें हैं? उस आदमी ने बताया कि यहाँ पर इस परिवार के कुल देवता थे। हाइवे बनने पर यह जगह छोड़ दी गई है। कोई भी शुभ काम होने पर ये यहाँ पूजा करने आते हैं और मैं इनका ड्राइवर हूं। तेजी से गुजरते वाहनो वाली सड़क को उन लोगो ने बड़ी मुश्किल से पार किया। तब तक साथी बस में आ गये, बस चल पड़ी अहमदाबाद की ओर।   








Thursday 18 April 2019

दिल्ली से राजकोट गुजरात यात्रा भाग 1 Delhi se Rajkot Gujrat Yatra 1 नीलम भागी




6 मार्च को ’महात्मा गांधी को जानो’ दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी(सांस्कृतिक मंत्रालय भारत सरकार का संगठन, डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी मार्ग, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने) का एक डेलीगेशन गुजरात यात्रा पर गया। जिसमें लेखकों, साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों और पत्रकारों ने भाग लिया। सवा पाँच बजे की हमारी एअर इंडिया की फ्लाइट थी। किसी कारण वश हमने जाना स्थगित कर दिया था। 6 तारीख को हमने चैक किया तो हमारी टिकट कैंसिल नहीं हुई थी। उस समय बारह बजे थे। अंजना बोली,’’चलो, चलते हैं।’’ ग्रुप में मैसेज चैक किया। देवेन्द्र वशिष्ठ ने लिखा था कि साढ़े तीन बजे तक इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल तीन पर सब पहुँचे। जल्दी जल्दी बैग में कपड़े ठूसे, जरूरत का सामान लिया, हम चल दीं। मैट्रो पर ही भरोसा था कि वह हमें समय पर पहुंचा सकती है। घर से मैट्रो स्टेशन के बीच इतना जाम मिला कि लगा कि फ्लाइट तो मिस होगी ही, उसी समय देवेन्द्र जी का मैसेज आ गया कि फ्लाइट लेट है, 6 बजे उड़ान भरेगी। नौएडा से नई दिल्ली मैट्रो फिर दौड़ते हुए नई दिल्ली स्टेशन से एयरर्पोट मैट्रो पकड़ी। एयरपोर्ट पर पहुंचते ही अंजना बोली,’’मैं तेज चलती हूं और तुम धीरे। मैं जा रहीं हूं, यह कह कर वह चल दी। वो लोगों से पूछ पूछ कर, टर्मिनल तीन की ओर तेज तेज जा रही थी। मैं दौड़ दौड़ कर उसका पीछा कर रही थी। मुझे ये फायदा था कि  किसी से रास्ता नहीं पूछना पड़ रहा था। एयरर्पोट में प्रवेश करते ही जल्दी से चैक इन काउण्टर खोज कर वहाँ पहुँचे, र्बोडिंग पास लिया, दौड़ते हुए सुरक्षा जाँच की लाइन में लगे। उन्होंने एक नई लाइन बनवा दी। वहाँ हमारा पहला दूसरा नम्बर था। जाँच होते ही हम गेट नम्बर 32 की ओर चल दिये। वहाँ हम दोनो के अलावा कोई सवारी नहीं थी क्योंकि सब प्लेन में बैठ चुकी थीं। प्लेन में प्रवेश करते ही हमारे साथियों के चेहरे हमें देख कर खिल गये। ये देख बहुत अच्छा लगा। अंजना तेज चलती है न इसलिये मुझसे आगे जाकर विंडो सीट पर बैठ गई। मैं उसके बराबर में, सागर जी तो किनारे पर अपने सीट नम्बर पर बैठे ही हुए थे। मेरे बैठते ही अंजना बोली,’’अब मुझसे बोलना कि तुम तेज नहीं चल सकती हो। अपनी चीटी चाल से चलती तो शर्तिया फ्लाइट मिस होती न।  तुम मेरे पीछे जेब कतरे की चाल से लगी हुई थी।’’मैंने उसे सुधारते हुए कहा कि मैं ऐसे चल रही थी जैसे महात्मा गांधी दाण्डी यात्रा पर जा रहे हों। यह बोल कर मैंने लंबी लंबी सांसे लेकर अपने को र्नामल किया। उसका बारहवीं में पढ़ने वाला लाडला बेटा, पहली बार माँ से अलग रूका था। वह फोन पर बेटे को दुखी होकर समझा रही थी, उधर बेटा रो रहा था। पूरा खानदान उसको आश्वासन दे रहा था कि सब उसका बहुत ध्यान रक्खेंगे। खैर एक घण्टे चालीस मिनट में हम राजकोट पहुँच गये। जिस बात ने मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित किया वह था,  एअरर्पोट पर गुजरात टुरिज्म का काउण्टर। बाहर से आने वाला टूरिस्ट वहाँ से पूरी जानकारी ले सकता है। वह मेरा और अपना लगेज लेकर सब के साथ बस का इंतजार करने लगी। मैं आस पास घूमती रही। बापू को शिक्षित करने वाले शहर में मेरे मन में अलग सा भाव आ रहा था। बस आ गई। विंडो सीट पर बैठी मैं साफ सुथरे राजकोट से परिचय करती जा रही हूँ। बस सौराष्ट्र विश्वविद्यालय के अतिथी गृह के आगे रूकी। सबको कमरे एलॉट हो गए। दस मिनट बाद ही भोजन के लिए बुलावा आ गया। मैस में बुफे लगा हुआ था। प्लेट बहुत बड़ी थीं पर हल्की। मिक्स वैजीटेबल, छोले, आलू, दाल, चावल, कड़ी, खिचड़ी , फारसण, सलाद लेकर आप बैठ जायें और रोटी जहाँ बैठ कर आप खायेंगे, वहाँ कई वैराइटी की पहुँच रही थी, आप अपनी पसंद की लें लें। टेबल पर छाछ से भरे जग रक्खे थे। वही दाल सब्जियाँ थीं पर पकाने की कला अलग थी इसलिये स्वाद भी उत्तर भारत से अलग था।  सफेद कढ़ी बिना पकौड़े की खट्टी मिठी और पतली उसकी सुंदरता, बघारी हुई साबुत लाल र्मिच बढ़ा रहीं थीं, बाजरे की रोटी को रोटला कहा जा रहा था। भाखरी बिस्कुट जो मुझे राजकोट के अलावा कहीं नहीं दिखा ,फीका पर इतना कुरकुरा उसके लिये एक ही शब्द ’लाजवाब’। लहसून मिर्च की चटनी  मिली। प्रत्येक मेज पर मिर्च के आचार और गुड़ की शीशियाँ थी। हैरानी तो मुझे तब हुई जब इतने चटपटे खाने के साथ लोकल, मिर्च का आचार भी खा रहे थे। डिनर के बाद हम अपने रूम में आ गये। अंजना अपना टुथब्रश भूल आई थी। हम दोनों तो जीमने के बाद, आते ही सो गईं। क्रमशः