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Wednesday 14 September 2022

कांवड, बोल बम और बैजनाथ धाम यात्रा से वापसी भाग 15 नीलम भागी Kanwer, Bole Bum Baidhnath Dham to Delhi Yatra Part 15 Neelam Bhagi

 

     
जहाँ देखो काँवड़िये, गाड़ी आने में एक घण्टे का समय है। बाजू में बैठे कांवडिये से मैं उसकी कांवड़ यात्रा सुनने लगी। उसने बताया कि सुल्तानगंज के जहाँगीर घाट पर स्नान करके गंगा जल लेकर नाव पर सवार होकर, बाबा अलगैबीनाथ का दर्शन करके पैदल चलते हैं। हम प्रतिदिन कम से कम 6 किमी. चलते थे। सफेद टी शर्ट वाले डाक काँवड़िये होते हैं। वे 24 घण्टे में 105 किमी. की अकेले दूरी तय करके बाबा को जल चढ़ाते हैं। जब ये पास से गुजरते तो इन्हें देखकर हमारे शरीर की बैटरी और चार्ज हो जाती। रास्ते में लोग बहुत सेवा करते हैं। ठहरने के लिए कलकतिया धर्मशाला, पटनिया ध., गोड़ियारी ध. उसने बैजनाथ धाम तक की पूरी धर्मशालाओं की सूची सुना दी। उसने पद यात्रा की है उसे याद है। मैंने सुना है मुझे नहीं याद हुई। रास्ते में विज्जुखरवा में हनुमान डैम और सूइया का पहाड़ भी अविस्मरणीय जगह है। जहाँ प्रकृति अपने सर्वोत्तम रुप का दर्शन कराती है। साथ ही उसने नारे बहुत आर्कषक सुनाये 

रास्ता कम, बोल बम

बोल बम का नारा है, बाबा एक सहारा है

बाबा नगरिया दूर है, जाना जरुर है  

बाबा नगरिया पहुँचते ही थकान दूर हो जाती है। जल चढ़ा कर मन खुश हो जाता है।

रेलवे स्टाफ और पुलिस का काम यहाँ बहुत सराहनीय है। भीड़ को पटरियों से दूर रखे हुए है। यहाँ तक की डिब्बों के क्रम की भी गाड़ी आने से पहले घोषणा करते हैं। हमारी गाड़ी हमसफ़र से दस मिनट पहले दूसरी गाड़ी ने आना है। गाड़ी का नाम और नम्बर बार बार बोला जा रहा है।

  अचानक मैं देखती हूँ हमारी सहयात्री जेठानी लगेज़ खींचती जा रही है। मैंने आवाज़ लगाई, उन्होंने नहीं सुना। अब मैं लेटे हुए कांवड़ियों की भीड़ में से रास्ता बनाकर, उनसे पूछने जा रही थी कि डिब्बे के क्रम तो डिस्प्ले नहीं हुए वे कहाँ जा रहीं हैं? वे पाँच लोग मिलकर आए है। वे अकेली क्यों?


थोड़ी देर में देवरानी भी उसी दिशा में सामान लिए जा रहीं हैं। मैंने तेज चल कर उन्हें आवाज़ लगाई। अरे हमारी गाड़ी का नाम क्या है? वे पीछे मुड़ कर झुंझलाकर बोली,’’आपको गाड़ी के नाम की पड़ी है, मेरी जेठानी पता नहीं कहाँ को चली गई?’’फिर तेजी से जेठानी के जाने की दिशा में चलते हुए, थोड़ा लहज़ा सुधार कर बोलीं,’’हमसफ़र है।’’मुझे तसल्ली हो गई कि इन्हें गाड़ी का नाम पता है। एक गाड़ी आई उसके जाते ही हमसफ़र के डिब्बे र्बोड पर डिस्प्ले होने लगे। देवरानी जेठानी के चक्कर में मैं बहुत दूर तक आ गई हूँ। बी 3 डिब्बा बहुत पीछे हैं। मैं भीड़ में चलना शुरु करती हूँ। गाड़ी आगे आ रही है, मैं उसकी विपरीत दिशा में जा रहीं हूँ। पर अपने डिब्बे में पहुंच गई। सीट पर बैठ कर पहले खूब सांस लेती हूँ। गाड़ी चलते ही गुप्ता जी चल दिए, पता करने कि सब सहयात्री सीटों पर आ गए हैं। जब वे लौट कर आए कि अपने डिब्बे में भी सबसे मिल लूं। उसी वक्त गाड़ी स्टेशन पर रुकी। देवरानी जेठानी गाड़ी में चढ़ीं। वे सीट की ओर अपने साथ घटी, घटना भी सुनाती जा रहीं हैं। 

हुआ यूं वो पहले वाली गाड़ी में चढ़ गईं थी। सीट पर वही उनका आते समय जैसा ही क्लेश था कि एक सीट दो सवारियों कैसे रिर्जव हो गई! इस क्लेश में एक स्टेशन तो निकल गया। अगले स्टेशन से पहले उन्हंे पता चल गया कि वे गलत गाड़ी में चढ़ गईं हैं। अब सब इनकी मदद को आ गए। रेलवे स्टाफ ने स्टेशन पर उतार कर पुलिस से कहा कि इन्हें अगली गाड़ी हमसफ़र आ रही है, उस पर चढ़ा देना। उन्होंने इसमें इन्हें चढ़ा दिया। गुप्ता जी अगर अपने डिब्बे में पहले मिलने जाते तो इन्हें न देख कर परेशान हो जाते। गुप्ता जी आकर पानी पी ही रहे थे कि देवरानी जेठानी गाड़ी में चढ़ीं। सब थके हुए थे, लाइट भी ऑफ नहीं की, सो गए। कोई चाय वाला नहीं आया इसलिए सुबह सब देर से उठे। अब गाड़ी में राजनीति से शुरु होकर देवघर पर गोष्ठी शुरु हो गई। स्थानीय यात्री बताने लगे यहाँ कभी आपको खराब पेड़ा नहीं देगें। मैंने कहा कि यहाँ खाने का रेट बहुत कम है। वो हंसते हुए बोले वहां के लोगों को ज्यादा लगता है और मेले में इतनी भीड़ में थोड़ी क्वालिटी तो गिर ही जाती है। कभी वैसे आइए और खाइए ताहेरी, बेल का मुरब्बा, खीर मोहन, सर्दी में तिलकुट, सरसों के तेल में तली सत्तू की कचौड़ी, धुस्का, झालमुरी इमली की चटनी, गुलगुले और घुंघनी। बातें करते हुए आनन्द विहार रेलवे स्टेशन आ गया और खूबसूरत यादों के साथ हमारी यात्रा को विराम मिला।








बासुकीनाथ से जिसीडीह स्टेशन बैजनाथ यात्रा भाग 14 नीलम भागी Basunath to Jasidih Junction Baidhnath Yatra Part 14 Neelam Bhagi

लौटते समय सब खरीदारी में लगे हुए है। मुझे और पद्मा शर्मा को कुछ नहीं खरीदना है। मैंने सोचा था लौटते में पेड़े लूंगी। यहाँ पेड़ों का स्वाद ऐसा है जैसे हम अपनी गंगा यमुना के दूध से घर में बनाते थे। बासुकीनाथ आते समय मेन रोड पर पेड़ा मार्किट देख कर और भी खुशी हुई कि स्पैशल कहीं नहीं जाना होगा। वैसे पेड़ा मार्किट तो पेड़ा नगर लग रही थी। रास्ते में ही खरीद लेंगे। जहाँ भी जया गौड़ और महिमा शर्मा खरीदारी के लिए रुकतीं, मैं और पद्मा जी किसी भी स्टॉल के आगे बैठ जाते। पान की दुकान देखकर पद्मा जी पान लगवाने लगीं। पान वाला पान लगाने में अपना पूरा हुनर दिखा रहा है। जब उसने कुछ लाल लाल डाला तो वे बोलीं,’’भइया इसमें हेमा मालिनी मत डालो, निकालो, और सारी हेमामालिनी निकलवाईं।’’सुनकर मैं हंसने लगी तो महिमा शर्मा मुझे समझाने लगीं कि हम इसे हेमा मालिनी कहते हैं। इतने सालों बाद देखते वहाँ पहुँचे जहाँ रिक्शा मिल जाता है। अब रिक्शा करके बसों के पास पहुँच गये। सब लोग दर्शन करके आते जा रहे हैं। लिट्टी चोखे के स्टॉल वाले की कुर्सियों पर बैठते जा रहें हैं। हरिदत्त शर्मा जी ने उससे लिट्टी चोखा लिया और उसकी कुर्सियों पर बैठे, हम वहाँ की रौनक देख रहे हैं। वह न बिठाए तो धूप में बैठना पड़ेगा। सबने उससे कुछ न कुछ मंगाना शुरु कर दिया।


जरनल दर्शन की मैं और डॉ. शोभा आ गए हैं, दो महिलाएं नहीं आईं। जब फोन करो तो कहतीं कि आ रहें हैं। रवीन्द्र कौशिक ने पूछा कि अगर रास्ता समझ नहीं आ रहा है तो किसी से जगह का नाम पूछ कर बता दो, मैं आपको ले जाता हूँं। उनका एक ही जवाब है, हम आ रहें हैं। 5 बजे की हमारी गाड़ी है। रास्ते में लंच भी करना है। अब गुप्ता जी ने फोन पर कहा कि तुम दोनों के पीछे सबकी गाड़ी छूट जायेगी। हम 30 मिनट में जा रहे हैं। टिकट आपके पास है। आप स्टेशन पर ही पहुँचों। 20 मिनट बाद उनका फोन आया कि बस स्टैण्ड पर तो हमारी बसे ही नहीं हैं। सुरेन्द्र ने कहा कि मुझसे बात करवाओ। उसने फोन पर उनसे कहा कि किसी ई रिक्शा वाले से बोलो,’’तुम्हें अमुक जगह पहुँचाये क्योंकि आप दो नंबर बस स्टैंड की बजाय कहीं और बस अड्डे पहुंच गई है।’’ जब सुरेन्द्र को लगा कि वे पहुंच गई होंगी, उसके कुछ देर बाद हम चले। वहाँ उनके लिए रुके, वे हमें रास्ते में बैठीं मिल गईं। सब खुश हो गए। बीच में खाने के लिए रुके। समय लेकर चले हैं जिसका ये फायदा हुआ कि कांवड़ियों के कारण गाड़ियाँ स्टेशन से काफी दूर रोक दी गईं। वहाँ से रिक्शा से स्टेशन पहुँचे। टिकट गुप्ता जी ने सब को दे दी थी। हमारा प्लेटर्फाम न0 5 है। कदम कदम पर पुलिस है। प्लेटर्फाम न0 बताते ही वे सीढ़ियों का रास्ता बताते हैं, सब उस ओर चल दिए। मैंने जाकर फिर पूछा,’’लिफ्ट नहीं है।’’उन्होंने मुझे दूसरी ओर भेज दिया। वहाँ एस्केलेटर आउट ऑफ ऑर्डर है। चल नहीं रहा है, बाजू में ही सीढ़ियाँ हैं पर कुछ लोग एस्केलेटर को सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। विभाग के दो आदमी खड़े हैं। मैंने उनसे ऐसे ही पूछा,’’ये आउट ऑफ ऑर्डर है तो ये इस पर क्यों चढ़ कर जा रहें हैं? सामने सीढ़ियों से भी तो जा सकते हैं।’’वे हंसते हुए बोले,’’इनके लिए नई टैक्नोलॉजी है, इन्हें खुशी मिलती है इसे इस्तेमाल करके।’’फिर वे बताने लगे कि ये इस पर जल्दी में कूद कर चढ़ते हैं, जोड़ पर इनका पैर पड़ता है। रोज किसी न किसी के पैर में चोट आती है। इलाज़ के लिए ले जाते हैं।



एस्केलेटर ठीक हो गया। मैं चढ़ गई। मुझे लगातार ऊपर तक उनकी आवाज आती रही। ’जल्दबाजी नहीं ध्यान से पैर रखो। कभी वे उनकी भाषा में समझाते। मैं 5 न0 प्लेटफॉर्म पर आती हूँ। मुझे कांवड़िये ने बैठने की जगह दे दी। यहाँ कोई ग्रुप का नहीं दिख रहा है। जिधर देखो भगवा कांवड़िये। क्रमशः