रास्ता कम, बोल बम
बोल बम का नारा है, बाबा एक सहारा है
बाबा नगरिया दूर है, जाना जरुर है
बाबा नगरिया पहुँचते ही थकान दूर हो जाती है। जल चढ़ा कर मन खुश हो जाता है।
रेलवे स्टाफ और पुलिस का काम यहाँ बहुत सराहनीय है। भीड़ को पटरियों से दूर रखे हुए है। यहाँ तक की डिब्बों के क्रम की भी गाड़ी आने से पहले घोषणा करते हैं। हमारी गाड़ी हमसफ़र से दस मिनट पहले दूसरी गाड़ी ने आना है। गाड़ी का नाम और नम्बर बार बार बोला जा रहा है।
अचानक मैं देखती हूँ हमारी सहयात्री जेठानी लगेज़ खींचती जा रही है। मैंने आवाज़ लगाई, उन्होंने नहीं सुना। अब मैं लेटे हुए कांवड़ियों की भीड़ में से रास्ता बनाकर, उनसे पूछने जा रही थी कि डिब्बे के क्रम तो डिस्प्ले नहीं हुए वे कहाँ जा रहीं हैं? वे पाँच लोग मिलकर आए है। वे अकेली क्यों?
थोड़ी देर में देवरानी भी उसी दिशा में सामान लिए जा रहीं हैं। मैंने तेज चल कर उन्हें आवाज़ लगाई। अरे हमारी गाड़ी का नाम क्या है? वे पीछे मुड़ कर झुंझलाकर बोली,’’आपको गाड़ी के नाम की पड़ी है, मेरी जेठानी पता नहीं कहाँ को चली गई?’’फिर तेजी से जेठानी के जाने की दिशा में चलते हुए, थोड़ा लहज़ा सुधार कर बोलीं,’’हमसफ़र है।’’मुझे तसल्ली हो गई कि इन्हें गाड़ी का नाम पता है। एक गाड़ी आई उसके जाते ही हमसफ़र के डिब्बे र्बोड पर डिस्प्ले होने लगे। देवरानी जेठानी के चक्कर में मैं बहुत दूर तक आ गई हूँ। बी 3 डिब्बा बहुत पीछे हैं। मैं भीड़ में चलना शुरु करती हूँ। गाड़ी आगे आ रही है, मैं उसकी विपरीत दिशा में जा रहीं हूँ। पर अपने डिब्बे में पहुंच गई। सीट पर बैठ कर पहले खूब सांस लेती हूँ। गाड़ी चलते ही गुप्ता जी चल दिए, पता करने कि सब सहयात्री सीटों पर आ गए हैं। जब वे लौट कर आए कि अपने डिब्बे में भी सबसे मिल लूं। उसी वक्त गाड़ी स्टेशन पर रुकी। देवरानी जेठानी गाड़ी में चढ़ीं। वे सीट की ओर अपने साथ घटी, घटना भी सुनाती जा रहीं हैं।
हुआ यूं वो पहले वाली गाड़ी में चढ़ गईं थी। सीट पर वही उनका आते समय जैसा ही क्लेश था कि एक सीट दो सवारियों कैसे रिर्जव हो गई! इस क्लेश में एक स्टेशन तो निकल गया। अगले स्टेशन से पहले उन्हंे पता चल गया कि वे गलत गाड़ी में चढ़ गईं हैं। अब सब इनकी मदद को आ गए। रेलवे स्टाफ ने स्टेशन पर उतार कर पुलिस से कहा कि इन्हें अगली गाड़ी हमसफ़र आ रही है, उस पर चढ़ा देना। उन्होंने इसमें इन्हें चढ़ा दिया। गुप्ता जी अगर अपने डिब्बे में पहले मिलने जाते तो इन्हें न देख कर परेशान हो जाते। गुप्ता जी आकर पानी पी ही रहे थे कि देवरानी जेठानी गाड़ी में चढ़ीं। सब थके हुए थे, लाइट भी ऑफ नहीं की, सो गए। कोई चाय वाला नहीं आया इसलिए सुबह सब देर से उठे। अब गाड़ी में राजनीति से शुरु होकर देवघर पर गोष्ठी शुरु हो गई। स्थानीय यात्री बताने लगे यहाँ कभी आपको खराब पेड़ा नहीं देगें। मैंने कहा कि यहाँ खाने का रेट बहुत कम है। वो हंसते हुए बोले वहां के लोगों को ज्यादा लगता है और मेले में इतनी भीड़ में थोड़ी क्वालिटी तो गिर ही जाती है। कभी वैसे आइए और खाइए ताहेरी, बेल का मुरब्बा, खीर मोहन, सर्दी में तिलकुट, सरसों के तेल में तली सत्तू की कचौड़ी, धुस्का, झालमुरी इमली की चटनी, गुलगुले और घुंघनी। बातें करते हुए आनन्द विहार रेलवे स्टेशन आ गया और खूबसूरत यादों के साथ हमारी यात्रा को विराम मिला।