सिंगापुर एयरपोर्ट
पर मैं चैक इन का काउण्टर देख रही थी। इतने में दो सरदार जी मेरे पास आये और बिना
कुछ बोले, मेरे आगे
उन्होंने अपनी टिकट कर दी। मैंने पढ़ा, उनकी और मेरी
फ्लाइट एक ही थी यानि वे मेरे सहयात्री थे। अब मैंने उनकी ओर देखा वे मुझे लेबर ही
लगे। मैंने उन्हें पंजाबी में जवाब दिया कि मेरी भी यही फ्लाइट है। सुनते ही उनके
चेहरे पर मुस्कान आई। उन्होंने पंजाबी में कहा,’’सानू कुज नई पता, आये तां असी किसे दे नाल सी। मतलब की उन्हें कुछ नहीं पता। जब वे यहाँ आये थे
तो उनके गाँव का कोई पहले से यहाँ का रहने वाला था, वे उसके साथ आये थे। अब उन्हें कुछ नहीं समझ आ रहा है। वे
गुरमुखी तो पढ़ना जानते हैं और कुछ नहीं। मैंने उनसे कहा कि आप मेरे साथ रहना।
मैंने पटियाला सलवार कुर्ता और बाग बूटी कढ़ाई का दुपट्टा ले रक्खा था। पंजाबी
पोशाक देखकर ही शायद वो मेरे पास आये थे। दोनों मेरे पीछे ही लाइन में लगे। वे
चाचा भतीजे थे। जितने कदम मैं चलती उतने वे चलते, मैं रूकती वे रुक जाते। ये तो मेरी पूँछ बन गये. मेरा लगेज
चैक इन में गया। मैं काउण्टर से हटी, वे घबरा गए ये सोच कर कि मैं उन्हें छोड़ कर चल न दूं। मैं उनके बराबर खड़ी रही।
जैसे ही उन्हें बोर्डिंग पास मिला, मैं चल दी,
वे मेरे पीछे पीछे चल दिए। वे मेरे बराबर नहीं
चलते थे। हमेशा पीछे ही रहे। सिक्योरिटी जाँच के लिए मैं लाइन में लगी। हमारी लाइन
के पीछे लगे किसी को मलेशियन महिला इशारा करती जाये, फिर जब एक सिक्योरिटी वाले ने आकर मेरे पीछे लाइन में लगे
चाचा भतीजे को पुरूषों की लाइन में लगाया। तब मेरी समझ में आया कि ये सारा काण्ड
मेरी पूंछ के कारण था। मेरे बराबर चल रहे होते तो मैं उन पर ध्यान देती और उन्हें
महिलाओं की लाइन में न लगने देती। उन्हें तो बस ये पता था कि इस बीबी के पीछे रहना
है, दिल्ली तक। इन हैण्ड
सामान में मेरे पास पर्स था और लैपटॉप बैग था। पर्स मिल गया और लैपटॉप लेने के
लिये उन्होंने मुझे दूसरी लाइन की ओर इशारा कर दिया। अब मेरी पूंछ मुझसे कुछ दूरी
पर मुझ पर आँखे गड़ाये खड़ी थी। सिक्योरिटी वालों ने लैपटॉप को बाहर निकाला और उसके
बैग की सभी जेबों की तलाशी लेकर मुझे लौटा दिया। बैग लेकर जब मैं आई तो मेरी पूंछ
दिखनी बंद हो गई। दिखती भला कैसे पूंछ तो पीछे होती है। मैं बोर्डिंग पास पर लिखे
गेट नम्बर को खोजती जा रही थी। अपना गेट मिलते ही मैं जाकर एक सीट पर बैठी तो
मुझसे कुछ दूरी पर पूंछ भी बैठ गई। फ्लाइट में अभी चालीस मिनट थे। मैं वाशरूम चल
दी। बाहर आई तो देखा उनमें से एक बाहर खड़ा था। मैं समझ गई कि ये एक एक करके फारिग
होने गये होंगे। मैं भी उसके पास खड़ी हो गई। दूसरे के आने पर मैं चल दी। वे भी मेरे
पीछे चल दिये। मैं आकर बैठी तो वो भी बैठ गये। अब मुझे अपनी पूंछ से मोह हो गया।
खाली बैठी क्या करूं सोचा चलो पानी पी आती हूं और चल दी। मुड़ कर यह देखने के लिए
देखा कि पूंछ साथ है। पूंछ भला कैसे अलग हो सकती है!!! वो भी मेरे पीछे ही थी। प्लेन
में जाते समय वे मेरे पीछे ही उसमें दाखिल हुए। प्लेन में सीट मेरी पहले थी,
उनकी मुझसे तीन लाइने छोड़ कर पीछे थी। इसलिये
यहाँ एयरहोस्टेज ने उन्हें उनकी सीट पर पहुँचा दिया। जैसे ही प्लेन लैंड किया। सीट
बैल्ट खुलते ही क्या देखती हू!! पूंछ मेरे बाजू में खड़ी थी। फ्लाइट में यदि मेरी
विंडो सीट होती है तो मैं सबसे बाद में ही उतरती हूं, ये सोचते हुए कि गाड़ी तो नहीं है जो आपका स्टेशन छूट
जायेगा। अब मैं खड़ी हुई तो वे बिना पीछे वालों को सॉरी बोले मुझे अपने आगे जगह
देने को वे पीछे हो गये। मुझे उनके आगे लगना मजबूरी थी क्योंकि उनके पीछे वालों को
भी तो उतरना था। उतरते ही कागजी कार्यवाही की लाइन में लगे। क्लीयर होते ही मैं
सामान के लिये अपनी बैल्ट की खोज में चल दी। सामान लेते ही, जैसे ही उनका लगेज आया। मैंने अपनी सीधी सरल पूछं से पूछा
कि आपको कोई लेने आ रहा है। उनका जवाब था, “नहीं जी।“ वे मुझसे बोले,’’हमें पंजाब जाना है हमें कश्मीरी गेट से बस
मिलेगी। हमें यहाँ से
कश्मीरी गेट बस अड्डे के लिए कोई ऑटो या टैक्सी कर दो।’’मुझे उसी समय एक
सुनी हुई घटना याद आ गई। पंजाब में हम शादियों में अपने ननिहाल जाते हैं तो रसोई
संभालने के लिए महाराजिन आती है। उसे सब मासी कहते हैं। एक साल पहले मैं शादी में
गई वह मुझे बड़े प्यार से खाना खिलाती जा रही थी और साथ ही दिल्ली वालों को कोस रही
थी। उससे पहले एक शादी में वो अपने बेटे लाडी के अमेरिका जाने से बेहद खुश थी। इस
खुशी का भी एक बहुत बड़ा कारण है वो ये कि वहाँ लड़को की क्वालिफिकेशन विदेश है।
किसी से पूछो कि आपके बेटे ने क्या किया है? वे बड़े फख्र से
जवाब देते हैं कि साडा मुंडा अमरिका च या अंगलैंड च या कनाडा च है। मतलब इंगलैंड,
अमेरिका, कनाडा यानि जिस भी देश में रह कर वह कमाता है, उस देश का नाम ही उसकी शैक्षिक योग्यता है।
मासी बात बात में कहती कि उसके बेटे ने उसे काम करने से मना कर दिया है पर जब तक
उसमें हिम्मत है वो मंदिर वाले जोशी परिवार में रसोई सम्भालने जरूर आयेगी क्योंकि
यहाँ से उसकी सास का व्यवहार था। वह अपनी सास की मदद के लिए यहाँ आती थी। उसी
परंपरा को वह निभा रही थी। हमारे परिवार ने भी उसकी भावना की कद्र की है और उसकी
देखरेख में कामवालियाँ लगा देते हैं। हम सब खाते हैं। वो पास में पीढ़े पर बैठ कर
सब के खाने का ध्यान रखती और बतियाती है। हुआ यूं कि उसने किसी तरह अपनी जमापूंजी
और जुगाड़ से अपने लाडी को अमेरिका भेजा। बेटा पहली बार अमेरिका से घर आ रहा था। तो
उसके एक दोस्त ने कहा कि उसका ससुराल दिल्ली में है। वे लाडी को एयरपोर्ट से उतार
कर कश्मीरी गेट में उसके शहर की बस में बिठा देंगे। क्योंकि गाड़ी तो अपने समय पर
जाती है। बस हमेशा मिल जाती है और उसमें सीट भी मिल जाती है। दोस्त ने अपने साले
को कहा कि लाडी को एयरपोर्ट से बस अड्डे तक टैक्सी से ले जाकर, खिला पिला कर बस में
बिठाना है। साले ने जीजा की आज्ञा का पालन किया। उसने देखा कि एयरपोर्ट से बाहर
एयरपोर्ट स्पैशल बस भी खड़ी थी। लाडी की फ्लाइट के कुछ लोग, उनमें विदेशी भी थे, उसमें बैठ रहे थे। लाडी ने भी साले से कहा कि इस बस में
चलते हैं। पर साला नहीं माना उसने टैक्सी ही बुलाई। एयरपोर्ट से कुछ दूर निकलते ही
जहाँ स्ट्रीट लाइट न होने के कारण अंधेरा था। एक पुलिस की वर्दी पहने आदमी ने गाड़ी
रूकवाई। वह लाडी पर प्रश्नों की बौछार करते हुए बोला,’’दिखाओ कितने डॉलर लाये हो?’’ उसके पास पाँच सौ डॉलर ही थे। उसने आगे कर दिये। डॉलर लेते
ही वह व्यक्ति दूर खड़ी जीप में जाकर बैठा और जीप नौ दो ग्यारह हो गई। तीन साल बाद
लम्बे सफ़र से लौटे लाडी बेचारे का अपने देश में इस तरह स्वागत हुआ। गुस्से से
कांपते लाडी ने साले से पूछा कि बस में भी ऐसे जांच करते हैं पुलिस वाले। जवाब
टैक्सी वाले ने दिया कि बस में उनकी हिम्मत ही नहीं होती है। मुझे तो ठग लग रहे
थे। खैर लाडी का तो घर आने का मजा ही खराब हो गया। इस घटना को मासी पाँच सौ डॉलर
ठगने वाले लुटेरों को कोसते हुए सब को सुनाती है। मैने सोच लिया कि मैं इन्हें
पब्लिक ट्रांसर्पोट में ही ले कर जाउंगी। सामने मैट्रो स्टेशन था। मैट्रो से मुझे
नौएडा जाने के लिए नई दिल्ली पर एयरर्पोट मैट्रो से उतर कर, दूसरी मैट्रो से राजीव
चौक जाना और वहाँ से नौएडा के लिये मैट्रो पकडना था यानि तीन मैट्रो में सफर।
मैंने पूंछ से कहाकि दो बजे के करीब सुपरफास्ट पंजाब जाती है। अभी बारह बजे हैं।
यहाँ से मैट्रो का बीस मिनट का रास्ता है नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तक। वहाँ से और
कई गाड़ियां भी जाती होंगी। वे बोले कि उनके पिंड में स्टेशन नहीं है। बस कश्मीरी
गेट से जाती है। वहाँ से तो मैंने भी कभी बस नहीं पकड़ी अंकुर श्वेता फोन कर रहे
थे कि वे मेरे लिए कैब बुक कर रहें हैं। मैंने उन्हें कहा कि मैंने प्री पेड
टैक्सी ले ली है। अब पूंछ मुझे लाडी लगने लगी। मैं मैट्रो स्टेशन गई पूंछ मेरे साथ
ही थी। टिकट काउण्टर पर मैंने उससे तीन टिकट नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की मांगी। वो
कोई भला आदमी था। उसने मुझसे पूछा कि आपने कहाँ जाना है? मैंने कहा कि मुझे नौएडा और इन्होंने कश्मीरी गेट। उसने
समझाया कि आप ऐसा करो कि अगला स्टेशन यहाँ से द्वारका है, वहाँ ये एयरपोर्ट मेट्रो खत्म होगी। सामने ही द्वारका से नौएडा मैट्रो खड़ी
मिलेगी, बस इससे उतरना और सामने चढ़ना। रास्ते में राजीव चौक आयेगा। ये
दोनों वहाँ उतर जायेंगे। मैट्रो स्टाफ या किसी से भी पूछ कर कश्मीरी गेट की मैट्रो
में बैठ जायेंगे और मैंम पूछते पूछते तो इनसान लंदन तक पहुंच जाता है। हमने वैसा
ही किया। पूँछ कुछ भी नहीं पूछती थी, बस सुनती थी और जैसा मैं कहती वैसा करती थी।
एयरपोर्ट मैट्रो आई हम उस पर चढ़े अभी सामान सैट करके बैठे ही थे कि द्वारका आ गया।
उतरे सामने नौएडा के लिये मैट्रो खड़ी थी। टिकट लेकर हम उसमें बैठे। मैं महिलाओं के
डिब्बे में नहीं बैठी। अब वे मेरे सामने की सीट पर बैठे। मेरे बच्चों का फोन आ रहा
आप हो कहाँ? मैंने कहा कि जाम
बहुत है। नौएडा की मैट्रो यहाँ शुरू होती है। इसलिये खाली डिब्बा था। मैंने पूंछ
को मैट्रो स्टाफ दिखा कर समझाया कि जब आप उतरोगे तो ऐसे वर्दी वाले से कश्मीरी गेट
की मैट्रो पूछ कर उस पर चढ़ जाना। साथ ही मैंने उन्हें अपना मोबाइल नम्बर दिया और
कहा कि कोई परेशानी हो तो फोन कर लेना। स्टेशन आने से पहले स्टेशन का नाम बोला
जाता है। कश्मीरी गेट से पहले स्टेशन से बाहर मत निकलना। उन्होंने मेरे निर्देश को
ध्यान से सुनकर सिर हिलाया. राजीव चौक आने से पहले मैंने ऊँची आवाज में कहा कि जो
भी कश्मीरी गेट की मैट्रो में जा रहा हो, कृपया इन्हें भी साथ में चढ़ा लेना। पाँच लोग थे। उनके साथ ये भी उतर गये।
मैंने भी घर पहुँच कर फोन पर ध्यान रक्खा। शाम को सात बजे एक नये नम्बर से फोन
आया। मैंने जैसे ही हैलो किया उधर से आवाज आई। बीबी असी नेरा होन तो पहलां घर
पहुंच गयें आं। यानी हम अंधेरा होने से पहले घर पहुंच गये हैं। मुझे भी खुशी मिली
कि मेरी पूंछ सुरक्षित है।