Search This Blog

Showing posts with label Radharani Mandir] Ladali mehal. Show all posts
Showing posts with label Radharani Mandir] Ladali mehal. Show all posts

Sunday, 10 May 2020

सुन बरसाने वाली, गुलाम तेरो बनवारी, मथुरा यात्रा भाग 12 Bersana Mathura Yatra Part 12 नीलम भागी



नंद बाबा विलक्षण बालक कन्हैया को कंस के गुप्तचरों से बचाने के लिए बड़े गोपनीय ढंग से साधारण बच्चे की तरह, ग्वाल बालों के संग पाल रहे थे। पर कृष्ण बलराम साधारण बालकों द्वारा  पूतना, शटकासुर, तृणावर्त आदि असुरों के वध से वे थोड़ा विचलित हो गये। कंस के असुरों के उपद्रव बढ़ने लगे तो महावन, जिसे पुरानी गोकुल कहते हैं,से आगे नंद अपना गोधन, गोपों को नंदगांव लेकर चले गये। कान्हा साधारण बालकों की तरह बाल लीलाएं रचाते रहे। मक्खन चुराना, गोपियों की दही मटकी फोड़ना आदि। यशोदा का काम कन्हैया की शिकायतें सुनना था। सबसे प्रिय उनकी गोपी बरसाना की राधा है। बरसाना का प्राचीन नाम वृषभानपुर है। राधा का जिक्र पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु की पुत्री थी। वृषभान वैश्य वनिक कुल के थे। कुछ विद्वानों का कहना है कि राधा का जन्म यमुना के निकट बसे रावल ग्राम में हुआ था। वृषभान और नंद में  घनिष्ठ प्रेम होने के कारण वे भी नंदगांव के पास बरसाना चले गयें। कुछ विद्वान बरसाने को राधा की जन्मस्थली मानते हैं। यहां पर ब्रह्माचल पर्वत पर 250 मीटर की ऊंचाई पर राधारानी का मंदिर हैं। जिसे लाडली महल भी कहते हैं। इस भव्य मंदिर को 1675 ई. में राजा वीर सिंह ने बनवाया था। सैकड़ों सीढ़ियां चढ़ कर श्रद्धालु महल में पहुंच कर दर्शन करते हैं। यहां श्री जी राधारानी के चरण दबाते हैं। ये देखते ही मुंह से ब्रज का लोकप्रिय भजन निकलता है,’ सुन बरसाने वाली, गुलाम तेरो बनवारी।’ दर्शनों के बाद महल के प्रांगण में बैठ कर सुस्ताना, देश दुनिया से आये दर्शनार्थियों को देखना भी बहुत अच्छा लगता हैं। यहां अब हम आराम से साफ फर्श पर बैठ गए और दर्शन करवाने वाले पंडित जी को मैंने कहा,’’ अब आप सुनाइए।’’उन्होंने सुनाना शुरू किया कि छ सौ साल पहले दक्षिण भारत से किशोरी जी के परम भक्त श्री नारायण भटट बरसाना आए। वह किशोरी की भक्तिमय हो गए। लाडली जी ने उन्हे ब्रह्माचल पर्वत पर होने का स्वप्न दिया। तब नारायण भट्ट ने अपने शिष्य नारायण स्वामी के साथ ब्रह्माचल पर्वत श्री जी मंदिर और जयपुर मंदिर के बीच प्रकट्य किया। ब्रज मे। निवास करने के लिए ब्रह्मा जी श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का आननद लेना चाहते थे। उन्होंने सतयुग के अंत में विष्णु जी से प्रार्थना की कि आप जब ब्रज में अपनी स्वरूपा श्री राधाजी और अन्य गोपियों के साथ दिव्य रासलीला करेंगे तो मैं भी उन लीलों  का दर्शक होना चाहता हूं। उनकी इच्छा सुन कर विष्णु जी ने कहा कि इसके लिए तो आपको वृषभानुपुर जाकर पर्वत का रूपधारण करना होगा। पर्वत होने से वर्षा आदि के जल से भी वह स्थान सुरक्षित रहेगा। मैं तुम्हारे पर्वत रूपी शरीर पर ब्रज की गोेपियों के साथ अनेक लीलाएं करुंगा और आप देखना। इसलिए बरसाना में ब्रह्मा पर्वत रूप में हैं। पद्म पुराण के अनुसार दायीं ओर ब्रह्म पर्वत और बायीं ओर विष्णु पर्वत है। ब्रह्मा जी के चार मुख के रूप् में मानगढ़ जहां मान लीला की, दानगढ़ जहां दान लीला की, विलास गढ जहां विलास लीला की और भानु गढ़ जहां लाडली महल है। यहां राधाअष्टमी का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाते हैं। उन्हें लड़डुओं का भोग लगा कर पहले मोरों को खिलाया जाता है। मोर राधाकृष्ण के प्रेम के प्रतीक हैं। फिर छप्पन भोग लगाया जाता है। यहां की लटठमार होली तो विश्वप्रसिद्ध है। बरसाने से चार किलोमीटर दूर नंदगांव है बीच में संकेत गांव पड़ता है। कहते हैं कि यहां पर राधाकृष्ण का पहली बार मिलन हुआ था। नंदगांव से होली खेलने आते हैं। यहां की रंगीली गली में उन पर रंग डाला जाता है और महिलाएं लट्ठ से उनका स्वागत करती हैं। मंदिर मार्ग पर होटल रैस्टोरैंट, धर्मशालाएं हैं पर हमें तो गोर्वधन के लिए निकल पड़े। क्रमशः     








बहुमत मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ से एक साथ प्रकाशित समाचार पत्र में यह लेख प्रकाशित हुआ है।