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Sunday 31 May 2020

चैंगी बीच और खानपान संस्कृति सिंगापुर यात्रा भाग 9 Singapore yatra part 9 Changi Beach Neelam Bhagi नीलम भागी




ईस्ट कॉस्ट रोड की सैर करके, चाय पीने से भी मेरी थकान नहीं उतर रही थी। आंखें बंद करती तो एक सी फिटनैस की वर्कआउट करती महिलाएं आंखों के आगे आतीं। काफी देर रेस्ट करते हो गया तो अर्पणा मेरे पास ंएओ को लेकर आई ओर बोली,’’मासी आप बीच पर बहुत खुश थी न इसलिए कल आपको चैंगी बीच लेकर जायेंगे। वीकएंड पर हम चैंगी बीच पिकनिक मनाने गए। रास्ता ही इतना इतना खूबसूरत लग रहा था तो मंजिल की तो कल्पना ही बहुत प्यारी थी। एक जगह खूब साइकिलें खड़ी थीं। पार्किंग में जगह नहीं थी। सड़क के दोनों ओर लाइन से गाड़ियाँ खड़ीं थी। उसी लाइन में हमने भी गाड़ी पार्क कर दी, हमारा इंतजार बिजॉय फैमली कर रही थी, हम उनके पास पहुंचे। यहां बिल्कुल अलग अनुभूति हो रही थी। चैंगी बीच र्पाक सबसे पुराना है। यहां खूब चहल पहल थी। हजारों यहां बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं। वीकएंड होने से पिकनिक मनाते हर तरह के लोग दिख रहे थे। कोई स्केटिंग कर रहा है तो कोई जोगिंग कर रहा है। जगह जगह बारबीक्यू का प्रयोग हो रहा था। जहां से रेत शुरु होती है। वहां तक घास ओर पेड़ थें एक पेड़ की जड़ बाहर को इस तरह फैली थी कि उस पर बैठ कर मैंने रेत में पैर फैला लिए। यहां बीच पर किसी को नहाते या तैरते नहीं देखा। मौसम तो उन दिनो था ही अच्छा। वहां देश दुनिया के लोगो को देखना ही बहुत अच्छा लग रहा था। टॉयलेट एकदम साफ। साथ ही चैंगी विलेज, कॉफी शॉप, स्वाद खानों के रेस्टोरैंट थे। इनके पकवानों में चाइनीज, मलय  और भारतीय तीनों संस्कृतियों का प्रभाव देखा जा सकता है। कुछ पकवानों पर एशियाई और पश्चिम का असर है। यहाँ हर बजट पर फिट बैठने का खाना है। बहुसंस्कृतियों के कारण यहाँ खाने की बहुत वैरायटी है। चायनीज और मलय स्टालों में पकवानों का बनाया जाना भी आप देख सकते हैं। हमने जो ऑडर किया उसमें एक डिश ऐसी थी जिसमें स्क्वायर से पीस थें अमन ने मुझसे पूछा ये क्या है बताओ,? मुहं में डालते ही वह घुल जाता था। नहीं बता पाई। अरबी, कचालू, जीमींकंद सबके नाम ले दिएपर वो कुछ और था। जुलाई में सिंगापुर फूड फैस्टिवल का आयोजन वहाँ की सरकार करती है। खाने का स्वाद और प्रैजैंटेशन सराहनीय है। यहाँ सिंगापुर पोर्ट का एक अनुकूल रूट पर होना भी यहाँ खाने की वैराइटी में मददगार हो रहा है। शाम को जब गाड़ी पर लौटे, उस पर चालान की स्लिप लगी थी। वहाँ जितनी गाड़ियाँ खड़ीं थीं, सब पर चालान स्लिप थी। पार्किंग में जगह नहीं थी और जहाँ गाड़ी पार्क की, वो पार्किंग की जगह नहीं थी। वहाँ कोई जाम भी नहीं लगा था। एक दूसरे की देखा देखी सब ने फुटपाथ पर गाड़ियाँ लगा दी थीं। हमने बिजॉय को फोन करके पूछा कि तुम्हारी गाड़ी का भी चालान हुआ है?’’ वो बोला,’’हमारी फैमली तो साइकिलों पर आई है।’’यहाँ लोग साइकिल चलाने का कोई मौका नहीं छोड़ते, उसके साथ ही मुझे पता चला कि यहाँ कि यातायात व्यवस्था बहुत उत्तम है। क्रमशः



Friday 2 August 2019

सारे संसार का प्यार मैंने तुझी में पाया, उसने तो प्यार किया है न! Usney Toh Pyar Kiya Hai Na!! Part 6 नीलम भागी


आखिर कहाँ गई होगी? बता कर जाती तो हम रोक थोड़ी ही लेते, बस जरा मन को तसल्ली हो जाती, बड़ी बहन की तरह कुछ समझा ही देती। फिर मन को समझाया कि शुक्र है  ये तो बता गई की रात में नहीं आयेगी, सोमवार हमारे ऑफिस जाने से पहले आ जायेगी। सण्डे को दोपहर में नमन और बच्चे सो गये तो मैं पहली बार काजल के कमरे में गई। कहीं कुछ छिपाया नहीं था। मेरे दिये कपड़े घर में पहनती थी। बाकि जो कुछ रक्खा था, सब कुछ उसके पास कीमती मसलन कपड़े, परफ्यूम, मेकअप का सामान आदि था। बाथरूम में तरह तरह के शैंपू, बॉडी लोशन, शावर जैल आदि सजे हुए थे। ये सब देख मेरा तो सर घूमने लगा। ये विश्व के नामी ब्राण्ड की इसको जानकारी कहाँ से मिल रही है! कौन इसका खर्च उठा रहा है? खैर जो होगा, सामने आ जायेगा। हमारी गृहस्ती की व्यवस्था में कोई फर्क नहीं आ रहा था, सब कुछ ठीक चल रहा था। किसी और देश की मेड होती तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। ये अपनी लगती  थी शायद इसलिये मैं भय खा रही थी। यहाँ ये बाते आम थीं किसी की व्यक्तिगत जिंदगी में आप दख़लादांजी नहीं कर सकते। मैंने सोचा कि जब ये आयेगी तो इससे बात करके देखूंगी। फिर स्वयं ही जबाब आ गया कि जो इस पर इतना खर्च कर रहा है ये मेरे आगे डॉलर रख कर उसके पास रहने न चल दे। इसे गहरा प्रेम रोग लग गया है, इस रोग के कारण यह अब किसी की भी नहीं सुनेगी, बिल्कुल ये किसी की भी नहीं सुनेगी। जो होगा देखा जायेगा। ये सोच कर मुझे तसल्ली थी कि कम से कम आँखों के सामने तो है। दरवाजा बंद करने से पहले मेरी नजर इसके बिस्तर पर तकिये के नीचे से झांकती एक कापी पर पड़ी। मैंने उस कापी को इस कदर झपटा, जैसे कोई मुझसे पहले न उठा ले। तुरंत उसके बैड पर बैठ कर उसे पढ़ने लगी। आचार चटनियों की मेरी माँ की बताई विधियों के बाद, ये कॉपी को अपनी सहेली मान कर उस पर अपने दिल की बाते ऐसे लिख रही थी, मानों किसी से कह रही थी।  कभी पूछ रही थी ’’क्या मैं सचमुच इतनी सुन्दर हूँ! वो मेरी हर तस्वीर पर कमेंट लिखता है चारमिंग, क्यूट, स्वीट,............मेरी जिंदगी का तो अब एक ह़ी मकसद रह गया है अपनी फोटो पोस्ट करना और उसके कमेंट का इंतजार करना और अपने को खूबसूरत समझना. लॉरेंस ने मुझे लंच पर बुलाया था। उस दिन मै पूरी रात नहीं सोई थी। खूब अच्छे से तैयार होकर, मै सुबह मैरीना बे पर घूमती रही। लंच के समय उसके बताए रैस्टोरैंट में पहुँच गई थी, मैं बहुत नर्वस थी। कभी अकेले रैस्टोरैंट में गई नहीं और आज गई भी तो जीवन में पहली बार, विदेशी रैस्टोरैंट, विदेश में और वो भी विदेशी सोशल मीडिया मित्र के निमंत्रण पर। पता नहीं वो मन में मेरे बारे में क्या सोचता होगा कि मैं क्या हूँ ? क्या काम करती हूँ? धीरे धीरे मैंने डर पर जीत हासिल कर ली क्योंकि मेरी सोच बदलने लगी थी। मैं सोचने लगी कि मेरे बनाये खाने की हमेशा तारीफ होती है यानि मैं अच्छी कुक हूँ। इण्डिया में मेरा अपना फ्लैट है। अब मेरी टाँगों का कम्पन रूक गया और मेरी नजरें वहाँ लॉरेंस को ढूंढने लगी। इतने में पीछे से किसी ने मेरे कान में फुसफुसा कर अंग्रेजी लहजे में, काजल कहा और सामने आकर अपना हाथ अभिवादन के लिये आगे बढ़ाया, मैंने भी अपना हाथ, उसके हाथ में दे दिया। अंदर हमारे लिये टेबल रिर्जव थी। उसने मेरे समय पर पहुँचने का धन्यवाद किया। हम आमने सामने बैठे। उसने मेरे आगे मैन्यु रक्खा। मैंने उसे कहा कि मैं सब उसकी पसंद का लूंगी। उसने सब नानवेज आर्डर किया। दीदी का परिवार तो शाकाहारी है। इण्डिया में मैं अपने घर में मांस मछली खाती थी। अब आज खा रही थी। उसने मुझसे मेरे शौक पूछे तो मैंने बताया कूकिंग। सुनते ही लॉरेन्स ने सिंगापुर की पाक प्रणाली पर चर्चा शुरू कर दी। इनके पकवानों में चाइनीज, मलय और भारतीय तीनों संस्कृतियों का प्रभाव देखा जा सकता है। कुछ पकवानों पर एशियाई और पश्चिम का असर है। यहाँ हर बजट पर फिट बैठने का खाना है। बहुसंस्कृतियों के कारण यहाँ खाने की बहुत वैरायटी है। लॉरेंस ने बताया कि उसे खाने का बहुत शौक है। चार कोर्स में लंच किया। फिर उसने मुझसे पूछा कि कहीं घूमने चलना है या पिक्चर देखनी है। अब घूमने में मैं भला क्या बताती? अब तक मुझे तो केवल मैरीना बे और लिटिल इण्डिया ही पता था वो भी मेट लोगो से क्योंकि सण्डे ऑफ पर उन लोगों के साथ वहीं पर ही गई थी। उन्होंने भी अपनी जिन पहचान वालियों से मिलवाया था वे सब बाइयाँ ही थी। मुझे देखकर सब ने कहा था कि पता नहीं क्यूं मैं सबसे अलग लगती हूँ। इसका कारण भी उन्होंने बताया कि क्योंकि मेरे घर में कोई हरवक्त टाँय टाँय करने वाली बुढ़िया नहीं रहती है। सर मैडम सुबह जाते हैं, रात में आते हैं। पूरा दिन मैं अपनी मर्जी से रहती हूँ। चायनीज परिवारों में रहने वाली मेट तो काम करने की मशीन बन जाती हैं। क्योंकि उनका संयुक्त परिवार होता है। वहाँ तो ड्यूटी आर्वस में मोबाइल भी नहीं देख सकते। मुझे कइयों ने कहा कि जब मैं ये काम छोड़ूंगी तो उन्हें लगवा देना। मैं ख्यालों में खो गई थी और लॉरेंस जवाब के लिए मेरा मुहं ताक रहा था. ये सोच कर मैंने बोल दिया कि इण्डियन सिनेमा। लॉरेंस सुनते ही खुश होकर बोला,’’उसे भारतीय सिनेमा पसंद है। पर स्टोरी में नाच गाना हैरान करता है।’’मैंने सोचा कि हॉल में अंधेरे में ये कोई हरकत करेगा। अंग्रेजी के टाइटल वाली फिल्म थी उसने पूरे ध्यान से फिल्म देखी। कोई ओछी हरकत नहीं की। वो तो पूरा मर्यादा पुरूषोतम  है। ऐसा मुझे विश्वास हो गया। अब मैं उसे बहुत मिस करती हूँ, जब वह बुलाता दौड़ी चली जाती हूँ उसकी पढ़ी लिखी बातें मुझे बहुत प्रभावित करतीं हैं। मेरा कूकिंग का शौक जान कर वह चायनीज और मलय स्टालों में पकवानों का बनाया जाना मुझे दिखाता। उसके साथ ही मुझे पता चला कि यहाँ कि यातायात व्यवस्था बहुत उत्तम है। दीदी भइया हमेशा मुझे गाड़ी से ही ले जाते हैं। वह खाने की बातें करता। जुलाई का महीना था सिंगापुर फूड फैस्टिवल का आयोजन वहाँ की सरकार ने किया। वह खूब खाना ऑडर करता। उसके बारे में बताता रहता, मैं स्वाद और प्रैजैटेशन देखती और उसकी तस्वीर लेती हूँ। जो वह बोलता ध्यान से सुनती हूँ। उसका कहना था कि यहाँ सिंगापुर पोर्ट का एक अनुकूल रूट पर होना भी यहाँ खाने की वैराइटी में मददगार हो रहा है। हम दोनो छक कर खाते। बचा हुआ खाना वह पैक करवा लेता। पहली बार उसने मुझसे पूछा कि मैं खाना ले जाउँगी क्या? मैंने मना कर दिया। वो इसलिये कि रखना तो फ्रिज में ही पड़ेगा। नॉनवेज देखकर दीदी गुस्सा न करें इसलिये भी। जब भी जाती वो नई जगह ले जाता। बॉटानिकल र्गाडन, राष्ट्रीय स्मारक रेफलस होटल, र्गाडन बाई दा बे आदि। बाकि बचा सिंगापुर हम चाइनीज न्यूइयर पर देखेंगे। बच्चे छोटे थे दीदी मायके ससुराल देश के सिवाय कहीं नहीं गई। इस चाइनीज न्यूइयर पर हाँग काँग मकाउ जा रहीं हैं। मुझसे चलने को कह रहीं थीं। मैंने मना कर दिया। उन दिनों हम दिन भर घूमेंगे। मेरे लिये तो लॉरेंस का साथ ही दुनिया की सैर है। इस ऑफ पर उसने मुझे सरप्राइज़ आउटिंग के लिये जाने के लिये पूछा, मैंने हाँ कर दी। इतने कपड़े खरीदे कुछ पूछो मत। उसको मुझे तरह तरह की पोशाक में देखना पसंद है। देखो कहाँ जाते हैं! मैंने लॉरेंस से साफ कह दिया जहाँ मरजी ले जाओ पर मण्डे सुबह मुझे यहाँ होना है। उसने कहा ,’’ठीक है।’’ और साथ ही बाली की रिर्टन टिकट दिखा दी। कितना भला इनसान है, मैं टैंशन में न रहूँ इसलिये सस्पैंस भी खत्म कर दिया। अब बाली जाने तैयारी करती हूँ। मैने जैसें उसकी कापी रक्खी थी, वैसे ही रख दी और बाहर आकर सोच में डूब गई। पंद्रह दिन बाद चाइनीज  न्यू इयर है। मुझे आजतक इनका सिस्टम समझ नहीं आया दो दिन की छुट्टी होती है और वीकएंड साथ में जुड़ जाता है। या तो सोम मंगल को होता है। या वृहस्पति शुक्र को। वीकएंड मिला कर चार दिन का त्यौहार हो जाता है। कितना गहरा दिल लगा बैठी है ये लड़की कि सोना समर पर जान देने वाली को हाँग काँग मकाउ का लालच भी लॉरेंस के बिना बेकार लग रहा था। चलो मुझे ये पता चल गया कि यह कहाँ गई है और हाँग काँग न जाने का कारण भी। अब मुझे बेसब्री से इसके लौटने का इंतजार था।  
क्रमशः