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Wednesday, 31 August 2022

शिव जी का रावण को वरदान यात्रा भाग 6 झारखण्ड नीलम भागी Baba Baidyanath Dham Deoghar Part 6 Neelam Bhagi 6

     


 जाते समय तो ध्यान नहीं दिया क्योंकि तब बाबाधाम में इतनी भीड़ में दर्शन के लिए पहुंचने की चिंता में थी। लौटते समय मार्ग में थूकने वालों पर बहुत गुस्सा आ रहा है। देवघर में भी तो कई घण्टे थूक रोके, खूब घुमावदार लाइनों में दर्शनों के लिए बिना थूके खड़े रहें हैं।






पर बाहर आते ही रास्ता थूक कर गंदा करना! बहुत बुरा लग रहा है। होटल पहुंच कर पहले पैर धोये फिर चप्पल पहनी। सबके आते ही गलियों से बाहर आए। वहां लाइन से ई रिक्शा खड़ीं हैं और पानी की बोतलों के कार्टून रखे हैं। इस टूर में भी पानी की जितनी मर्जी बोतल लो। ई रिक्शा का यह फ़ायदा है कि विंडो सीट का क्लेश नहीं होता। सबको सब कुछ दिखता है। पतली पतली गलियां वाले घने बाजारों में से आराम से यह रिक्शा निकल सकती है और हम शहर से परिचित हो सकते हैं। देश भर से तीर्थयात्री आएं हैं, उनकी जरुरत का सामान, प्रशादी, उपहार आदि ले जाने के लिए भी दुकानों में खूब सामान है और खरीदारी भी खूब हो रही है। 

   अब शहर से बाहर घनी हरियाली में हम हरिला जोड़ी की ओर जा रहें हैं। जो देवघर से 8 किमी. की दूरी पर है। और मेरे ज़हन में बैद्यनाथ धाम की कहानी चल रही है।

       परम शिव भक्त लंकेश्वर रावण ने शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। पर लंकेश शिव को प्रसन्न नहीं कर सके क्योंकि भगवान भी अपने भक्त की परीक्षा ले रहे थे। अति कठिन तपस्या के बाद भी जब शंकर जी प्रसन्न नहीं हुए तब उसने गर्मी में पंचाग्नि के बीच बैठकर, वर्षा में भूमि पर बैठ कर, सर्दी में पानी के अन्दर रह कर शिवभक्त रावण ने अति कठिन तपस्या की। इतनी कठिन तपस्या के बाद भी जब भगवान प्रसन्न नहीं हुए तब लंकेश ने अपने आपको धिक्कारा कि उसकी तपस्या में ही कोई कसर रह गई है जो उसके ईस्ट देव उससे प्रसन्न नहीं हुए हैं। दशानन ने विधिपूर्वक शिव पूजन के बाद एक एक सिर काट कर शिव को अर्पित किए ज्योंहि दसवां सिर काटने लगे उसी समय भक्त वत्सल भगवान शिव प्रकट हुए। उन्होंने कुशल वैद्य की तरह अपने हाथों से उसके नौ सिरों को फिर से जोड़ दिया। फिर रुद्र ने उससे वर मांगने को कहा। रावण को मनोवांछित फल और उत्तम बल भगवान शिव ने प्रदान किया। मनचाहा वर पाने के बाद रावण ने भगवान से विनती की कि वे उसके साथ चल कर लंका में निवास करें। ये प्रस्ताव सुन कर भगवान शंकर भारी दुविधा में फंस गए पर अपने परम भक्त रावण की बात को भी नहीं ठुकरा सकते थे। उन्होंने रावण को कहा कि वह उनके लिंग स्वरुप को ले जाए लेकिन इसे धरती पर नहीं रखना क्योंकि ऐसा करने पर वह वहीं स्थापित हो जायेगा फिर कोई शक्ति उसे वहां से उठा नहीं पायेगीं। ये जानकर देवताओं में हाहाकार मच गया। देवता और ़ऋषिगण मिलकर भगवान विष्णु जी के पास जाकर उनकी स्तुति करने लगे। विष्णुजी ने उनके आने का कारण पूछा तो वे सब विनती करने लगे,’हे प्रभु! यदि शिवजी लंका में स्थापित हो गए तो देवता और ़ऋपि विरोधी रावण सर्वशक्तिमान हो जायेगा और तीनों लोकों में अर्नथ हो जायेगा।’ अब योजना बनी जिसमें भक्त और भगवान दोनों की बात रह जाये। महाज्ञानी रावण ने पूरे विधिविधान से शिवलिंग उठाने हेतू संकल्प लेने के लिए आचमन किया। तभी वरुण रावण के मुंह से आचपन द्वारा उदर में प्रविष्ट कर गए। रावण वैद्यनाथ शिवलिंग को लिए पुष्पक विमान में सवार होकर लंका की ओर प्रस्थान कर गया। रास्ते में उसे बहुत जोर से लघुशंका लगी। और इधर हमारे ई रिक्शा चालक कांग्रेस यादव ने पूछा,’’आप वो तालाब देखेंगी, जो रावण के सू सू करने से बना है।’’मैं तो यहां का चप्पा चप्पा देखने ही आई हूँ। मेरे हां करते ही वह आगे की दो ई रिक्शा को रुकने का कहता रहा पर वो तो ये जा वो जा। हमारी रिक्शा दाईं ओर मुड़ी, उसके पीछे बाकि रिक्शा भी मुड़ी। क्रमशः   


    

Monday, 29 August 2022

श्री श्री 1008 रावणेश्वर, बैजनाथ, हृदयपीठ, बाबाधाम यात्रा भाग 5 झारखण्ड नीलम भागी Baba Baidyanath Dham Deoghar Part 5 Neelam Bhagi

  


वैद्यनाथ ऐसा पवित्र स्थल है जहाँ द्वादश ज्योर्तिलिंग और शक्तिपीठ भी स्थापित है। जिसके कारण इस पवित्र शिव धाम की महत्ता देश भर में बहुत ज्यादा है। बाबा वैद्यनाथ की पावन भूमि में ही सति का हृदय भगवान विष्णु के सुर्दशन चक्र से खण्डित होकर गिरा था, जिसके कारण इसे हृदयपीठ के नाम से जाना जाता है। एक समय सती के पिता दक्ष ने कनखल में बहुत बड़ा यज्ञ किया। इस यज्ञ में दक्ष ने सभी देवताओं, ऋषियों को आमन्त्रित किया। जानबूझ कर जिसमें भगवान शिव व सती को नहीं बुलाया क्योंकि वे शिव को अपने बराबर नहीं समझते थे। सती बिना निमंत्रण के शिव जी से हठ करके पिता के घर  गई। जहां वे अपनेे पति का अपमान नहीं सह पाईं और यज्ञ कुंड में कूद गईं। शिवजी को जैसे ही पता चला, उन्होंने यज्ञ कुंड से मृत सती को निकाला और वे सति की देह को लेकर प्रलयंकारी तांडव करने लगे। ब्रह्माडं में हाहाकार मच गया। विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सति के शरीर को 51 भागों में अलग किया। जो भाग जहां गिरा वह शक्तिपीठ बन गया। सती का मृत अंग टुकड़े टुकड़े होकर कई स्थानों पर गिरा। वैद्यनाथ धाम में सति का हृदय गिरने के कारण इस स्थान का विशेष महत्व है एवं सिद्धि आदि कार्यों के लिए इस शक्तिपीठ का विशेष महत्व है। इस शक्तिपीठ को जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है तथा यह हृदयपीठ के नाम से प्रचलित है।
 https://youtu.be/9tqxoTVEBnY

   जब भगवान विष्णु द्वारा भगवान वैद्यनाथ की स्थापना हो गई तब भगवान विष्णु ने सोचा कि इस अघोर जंगल में शिव जी को जल कैसे चढ़ाएं और उनकी पूजा अर्चना आदि कौन करने आयेगा? उस समय देवघर में बैजू नामक ग्वाला रहता था। उसे विष्णु जी ने कहा कि जो शिवलिंग तुम देख रहे हो उस पर जल चढ़ाओगे तो तुम्हारी गाय खूब दूध देंगी। बैजू यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ और वह नित्य बाबा की पूजा करने लगा। एक दिन बाबा की पूजा किए बिना उसने नाश्ता कर लिया याद आने पर दौड़ा हुआ गया और बाबा को जल चढ़ाया। बैजू की भक्ति से बाबा बहुत प्रसन्न हुए एवं बैजू से बोले,’’बालक! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं जो भी वर मांगना हो मांगो।’’बैजू बोला,’’बाबा हमारी गाय खूब दूध देने लगें।’’ यह सुन कर बाबा बोले,’’ठीक है ऐसा ही होगा, कुछ और भी वर मांगो।’’ सुन कर बैजू परेशान हो गया वह ग्वाला तो दूध ही जानता था। वह कहने लगा,’’मां से पूछ कर आऊँ?’’बाबा बोले,’’ठीक है।’’बैजू जब अपनी माँ से पूछने गया तो उसने कहा,’’बेटा तूं महान है। जा बाबा से कहना कि तेरा नाम उनके नाम के साथ जोड़ा जाये।’’बैजू ने यही वर मांग लिया तब से इनका नाम बैजनाथ पड़ गया। मुझे लगता है तभी यहां की प्रसादी पेड़ा है और चाय वाला भी कुल्हड़ में पहले दूध फिर उसमें चाय का काढ़ा डालता है। दहीं का स्वाद तो यहाँ का है ही लाजवाब। पंडों के पास भी अपने यजमानों को दर्शन के साथ सुनाने की के लिए बहुत कथाएं हैं और उनकी हिम्मत के अनुसार पूजा की विधियां भी हैं।  

VIP दर्शन 





https://youtu.be/9tqxoTVEBnY

  यहाँ बाह्य अघ्घर््ा देने वालों की भी बहुत भीड़ थी। पूर्वी द्वार से बाहर आने के लिए सेवादारों से रास्ता पूछते पूछते हमने पूरा मंदिर परिसर घूम लिया कहीं दुर्गापूजा की तरह ढोल बज रहे हैं। यहां महिला कांवड़ियों की संख्या भी बहुत है। हम पूर्वी द्वार से बाहर आ गए। क्रमशः