अपनी चादर में
पैर पसारने होंगे!!!!
नीलम भागी भाग 1
राजो को तो अचानक
देखते ही मैं खुशी से पागल हो गई। बचपन की मेरे मौहल्ले की सहेली है। उसे गले
लगाते ही मैं उसके पीछे, आस पास देखने लगी
और हैरान उसके परिवार का कोई भी सदस्य उसके साथ नहीं था। उसे बिठा कर पानी देकर
मैंने उससे पूछा कि वह कितने मिनट के लिये आई है? वह बोली कि अमेरिका की फ्लाइट तो चार दिन बाद है यह कह कर
वह चुप हो गई और मेरे दिमाग में डिबेट चलने लगी। यह आज कैसे आ गई और वह भी अकेली!
पूछना चाह रही थी पर मैंने अपनी जुबान पर कंट्रोल किया। अब वह बोली,’’तूं हमेशा कहती थी कि हम दोनो कुछ दिन साथ रहना
चाहती हैं। मैं तेरी इच्छा पूरी करने आ गई हूँ। लवली की थोड़ी तबियत खराब देखते ही
मैंने घर में कहा है कि अचानक मेरी बॉस दुबई आई हैं, उनके साथ दो दिन दुबई रहना है फिर वहाँ से अमेरिका। यहाँ का
बोलती तो सारा खानदान साथ आ जाता रहने, फिर हम बातें कैसे करतीं? बड़ी मुश्किल से
सबको एयरर्पोट आने से रोका है कि तुम बच्चे का घ्यान रक्खो। वह चण्डीगढ़ से अकेली
नौएडा आ गई। अचानक आई थी। हम लंच कर चुके थे। थोड़ी सी दाल थी उसमें आटा गूंध कर
प्याज के परांठे जल्दी से बना दिये रायते के साथ, जो उसे बहुत स्वाद लगे। उसने मुझसे रैसिपी भी ली। खाते ही
वह सो गई। मैं भी उसके पास लेट कर उसका चेहरा पढ़ने लगी। मेरी याद में उसका चेहरा
दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली राजो में बदल गया।
पिताजी की
इलाहाबाद से मेरठ बदली हुई तो मैं बड़ी दुखी हुई कि मेरी सहेलियाँ छूट जायेगी पर
मेरठ आते ही मेरे स्कूल दाखिले के लिये सोच ही रहे थे कि पड़ोस की राजो ने आकर,
अपने आप दादी से कहा कि मुझे उसके स्कूल में
दाखिल करवा दें। अगले दिन राजो मुझे और दादी को अपने स्कूल ले गई। मेरा नाम उसी की
क्लास में लिखवा दिया गया। दूसरी कक्षा से वह मेरी सहेली बन गई। हम दोनो साथ साथ
स्कूल आती जातीं। घर में भी साथ साथ खेलतीं। हमारे और उसके परिवार का माहौल एकदम
अलग था। मेरे पिता जी दस से पाँच सरकारी नौकरी करते थे। अम्मा घर के काम करती थीं,
दादी दादागिरी करती थी। बात बात पर एक ही
डॉयलाग बोलती, ’’लड़की की जात हो’’
जी में आता जवाब दूं कि लड़की की जात हूं,
कुत्ते की तो नहीं।’’ पर कभी अम्मा नहीं बोलीं तो हम कैसे बोलते भला? पिताजी ऑफिस से आते तो बड़े बड़े बहन भाइयों के
साथ मैं भी किताब खोल कर बैठ जाती। ये देख कर पिताजी बहुत खुश होते। खाना खाकर वे
लाइब्रेरी में पढ़ने चले जाते। राजो उन्हें जाते देखकर मुझे बुलाने आ जाती। हम
घूमती, खेलती अंधेरा होने पर घर
आतीं। राजो के पापा का ब्रेड, अण्डे बिस्कुट का
काम था। सुबह ट्रक उतरता छोटे सपलायर वहीं से आकर ले जाते। सुबह ही खाली हो जाते
फिर शाम को वे दुकानदारों से पैसे लेने जाते थे। उसके पापा जी कामचलाऊ अंकगणित और
लिखना पढ़ना जानते थे। उसे घर में पढ़ने को कोई नहीं कहता था। इसलिये मुझे उसका
परिवार बहुत अच्छा लगता था। मैं आठवीं पास कर गई थी पर राजो पाँचवीं में ही थी
क्योंकि वह एक एक क्लास दो दो बार पढ़ती थी। कौन समय बरबाद करे और हमने कौन सा लड़की
को मास्टरनी बनाना है यह कह कर उसके पापा जी ने उसका स्कूल से नाम कटवा दिया। राजो
बहुत खुश हुई और मैं भी। अब वह घर के लिये सब्जी, राशन आदि लाने का काम करती थी और किसी लड़के से छिप कर प्यार
करती थी और सिनेमा देखती थी। हमारे स्कूल में साइंस नहीं थी। मेरा स्कूल बदल दिया
पर राजो और मेरी दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ा। हम दोनो रोज मिलतीं। वो मुझे देखी
हुई पिक्चर की कहानी सुनाती थी। अपने प्रेम के किस्से सुनाती थी। देखी हुई फिल्म
के गाने की किताब खरीद कर लाती थी। मैं उसे गाना ठीक से पढ़ना सिखाती, वह तुरंत सीख कर याद कर लेती थी। अपने प्रेमी
को प्रेम पत्र, वह मुझसे ही
लिखवाती थी। उसका कहना था कि एक तो उसका लेख बहुत गंदा है दूसरा उसमें गलतियां
बहुत होती हैं। वह प्रेम पत्र का मजमून बोलती जाती, मैं सजा सजा कर
लिखती जाती थी। वह मुझे एक कॉपी दे देती थी, मैं कभी भी उसका एक पेज भी अपने लिए इस्तेमाल नहीं करती थी।
वह कापी प्रेम पत्र लिखने में ही खर्च होती थी। जब उसके प्रेम पत्रों का जवाब आता
तो वह पढ़ के, मुझसे पढ़वाने लाती। सच
में बड़ा मुश्किल था उन गन्दी राइटिंग और गलतियों से भरे प्रेम पत्रों को पढ़ना। कुछ
समझदारियाँ मुझमें बचपन से थीं। मसलन मैं
प्रेम पत्र पढ़ते हुए जहाँ मुझसे नहीं पढ़ा जाता था, वहाँ राजो से सुनी, फिल्म के प्यार मौहब्बत के डायलॉग मैं ऐसे बोलती थी जैसे प्रेम पत्र में लिखा
हो। राजो थी बड़ी सुन्दर उसके चेहरे पर मुहासे निकलने लगे। हम दोनों को बड़ी चिंता
हो गई। उसने मुझसे पूछा कि मेरे क्यों नहीं है? मैंने तुक्का मारा कि मेरे आंगन में नीम का पेड़ है न मैं
उसकी निबौरियाँ खाती हूँ। तुरंत बोली मुझे भी खिला। मैं पेड़ पर चढ़ कर पकी पकी
निबौरियां तोड़ने लगी। वह सीढ़ी से चढ़ कर छत पर बैठ गई और बेस्वाद निबोरियां,
बुरा सा मुंह बना कर चूसती रही और पिछले तीन
दिनों से चल रही किसी फिल्म की कहानी, सीन के साथ सुनाती रही। नीचे मेरी अम्मा सुन रही थी। उन्होंने आवाज लगाई,
’चल पढ’ मैं नीचे आकर किताब खोल कर बैठ गई। राजो बची निबोरियां लेकर अपने घर चली गई।
अम्मा ने बड़ी बहन से कहा कि राजो के विचार उन्हें ठीक नहीं लगे। बहन ने पूछा,’’कैसे?’’ अम्मा बोलीं,’’वो न सिनेमा की बातें करती है।’’ये सुन कर बहन मेरा हाथ पकड़ कर बाहर लाई और राजो को आवाज लगाई। उसके बाहर आते
ही मुझे आज्ञा दी,’’राजो से कुट्टी
कर।’’मैंने कर दी। पर बहन की
इस हरकत पर मुझे बहुत गुस्सा आया। कुछ कर नहीं सकती थी इसलिये गुस्सा पी लिया।
मैंने ठान लिया कि मैं अम्मा बहन के सामने उससे नहीं बोलूंगी। पीछे से बोलूंगी। उस
दिन रविवार था। हमारे घर में अंग्रेजी हिन्दी की दो अखबारें आती थीं। राजों को
अपना राशिफल सुनने का बहुत शौक था। अंग्रेजी का उसे मैं सुना देती थी वैसा,
जैसा वह सुनना चाहती थी। मसलन प्रेमी से मिलन
होगा। उसमें यह लाइन मैं अपनी तरफ से जोड़ देती थी। मिलन क्या था! जब राजो निकलती
तो प्रेमी साइकिल या टूविलर से उसे देखता हुआ पास से निकल जाता था। इसी प्रेमी
दर्शन के लिये वह राशिफल पर विश्वास करती थी। आज बिचारी को मैं राशिफल भी नहीं
सुना पाई। क्रमशः