Search This Blog

Showing posts with label self defence. Show all posts
Showing posts with label self defence. Show all posts

Wednesday 12 February 2020

बेटी पढ़ाओ ,भारतीय दृष्टिकोण और ज्ञान परंपरा भाग 2 नीलम भागी Bhartiye Drishtikon Aur Gyan ke Parampera part 2 Neelam Bhagi


राज पुरोहित विद्वानों की बैठक में गये। वहां कोई बाहर से पण्डित आया था। सब उसे सुनने आये थे। उसने बताया कि बाल गंगाधर तिलक ने कहा था ’ज्ञान की साधना करना ब्राह्मण का कर्त्तव्य है।’ विद्वानों के सत्संग में राज पुरोहित ने ये सुनकर विचार किया कि क्या मैं ऐसा कर रहा हूं? उनकी अर्न्तात्मा ने जवाब दिया कि नहीं। क्योंकि बेटे पढ़ रहे थे यानि ज्ञान की परंपरा कायम थीं लेकिन बेटी! वह तो अपनी मां की देख रेख में घर के काम में निपुण और कुशल गृहणी बनने की योग्यता प्राप्त कर रही है। उन्होंने ठान लिया कि मैं अपनी बेटी को पढ़ाउंगा। बैठक समाप्त होने पर घर आये। आंगन में बेटी रुक्मणी चारपाई पर अपने हाथ से काते , बुने सूत के सफेद खेस पर बढ़ियां तोडते हुए, संस्कृत के श्लोकों का मधुर सुर में गायन कर रही है। राजपुरोहित चौंकी पर बैठ कर सुनने लगे। बेटी का स्वर थमा तो पिता ने कहा,’’रुक्मणी पीढ़ी लेकर मेरे पास बैठ।’’रुक्मणी काम छोड़ कर, हाथ धो कर पिता के पास बैठ गई। पिता ने पूछा,’’बेटी तुझे संस्कृत किसने सिखाई?’’रुक्मनी नहीं जानती थी कि संस्कृत क्या होती है? वो हैरानी से पिता का मुंह ताकने लगी। पिता ने पूछा,’’ जो तूं अभी पाठ कर रही थी।’’ वो तुझे किसने सिखाया?  उसने डरते हुए कहा कि जो आप भाइयों को याद कराते हो, वो सुन सुन कर मुझे याद हो गये। पिता ने उसी समय उसकी मां से कहा कि खीर बनाओ। सफेद फूल तो वो लेकर ही आये थे। उन्होंने बेटी रुक्मणी का यानि मेरी दादी का विद्यारम्भ संस्कार किया और दादी का अक्षर ज्ञान शुरु हुआ। दादी से बेटियो के लिए ज्ञान की परंपरा मेरे परिवार में शुरु हुई। बेटियों के लिए दूर दूर तक पाठशाला नहीं थी। पिता ने पढ़ना सिखाया। पढ़ना अभी सीखी ही थी कि अध्यापक परिवार से उसके लिए रिश्ता आ गया। पिता ने  ये सोच कर अध्यापक से शादी कर दी थी कि दामाद उसे लिखना सिखा देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दादी पुरी जिंदगी पढ़ी हुई महिला रही। पढ़ी लिखी नहीं। यहाँ भी बेटियों के लिए स्कूल नहीं था। लेकिन बिना किसी स्कूल गये, मेरी बुआ भी पढ़ी। क्योंकि बुआ का तख्ती पूजन दादी ने बचपन में ही  कर दिया था। मेरी बुआ को दादी ने हिन्दी सिखाई। किसी ग्रन्थी से गुरुमुखी सिखवाई और दादा से अंग्रेजी, उर्दू घर पर ही सीखी। बिना कोई कक्षा पास मेरी बुआ राजरानी चार भाषाओं को लिखती, और अखबारें पढ़ती थी। इसलिये हम बच्चों को बुआ बहुत पढ़ी लिखी लगती थी। उसने दादी की ज्ञान परंपरा को आगे खिसकाया। दादी ने ठान रक्खा था कि बहू पढ़ी लिखी लेगी। नाई जब पिताजी के लिए रिश्ता लाया तो उसने बताया कि कपूरथला के गणितज्ञ जोशी परिवार की दो बेटियां हैं। पुत्री पाठशाला नाम के स्कूल में पढ़ती हैं वहां की प्रधानाचार्या गुरुकुल की पढ़ी, सुमित्रा बहन जी हैं। वहां लड़कियों को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग भी दी जाती है। बड़ी का नाम कमला है वह गोरी है, वो तो दोनों हाथों से लाठी चलाती है। छोटी बिमला है, सांवली है, वो लेजियम चलाती है। क्रमशः