सुबह चांदनी पहले आराधना के घर नाश्ता बनाती थी। फिर कुमार के यहाँ। दोनो घर एक ही फ्लोर पर आमने सामने थे। आराधना का कॉलिज दूर था। मिसेज कुमार का स्कूल घर के पास था। उसे जल्दी कॉलेज निकलना होता था। आज छुट्टी थी, दोनो परिवारों ने चांदनी को कह रक्खा था कि छुट्टी के दिन वह नौ बजे आया करे। जैसे ही आराधना ने चांदनी को दरवाजा खोला, वो चांदनी को घूरने लगी क्योंकि चांदनी राम राम दीदी कहते हुए हंसी नहीं। चुपचाप रसोई में काम करने लगी। आराधना ने उसे कहा,’’चांदनी छोले भीगे हुए हैं। मि. मिसेज. कुमार और तूं यहीं नाश्ता करोगे, भटूरे बनेंगे। चांदनी ने मरी हुई आवाज में जवाब दिया, "जी दीदी।" दोनो अपने कामों में लग गई। नाश्ता तैयार होते ही वे भी आ गये। चारों ने नाश्ता किया फिर चांदनी ने भी किया। आज दोनो परिवारों ने बाहर जाना था। इसलिए लंच बनाने को मना कर दिया। उन्हें देर न हो जाए, इसलिए अब सरोजा के उनके काम भी चांदनी करने लग गई। मशीन से कपड़े निकाल कर फैलाना, सूखे कपड़े तह लगाना। झाडू खटका, डस्टिंग आदि। कुमार के घर का जब वह काम करने गई तो आराधना ने मिसेज कुमार से कहा कि आज चांदनी को पता नहीं क्या हो गया है? आपको भी ऐसा लग रहा है। मिसेज कुमार ने जवाब दिया,’’ मैं समझी कि आपने इसके गुमसुम होने का कारण पूछ लिया होगा और मुझे बता दोगी।’’ये सुनते ही आराधना तो उसी समय चांदनी के पास गई, उससे पूछा,’’तेरे साथ क्या हुआ है?’’ बड़ी मुश्किल से उसने मुंह खोला। उसने बताया कि रेडियो में परशोतम की पसंद का गाना आ रहा था। अचानक मोनू टोनू लड़ पड़े। ये बोले," इन्हें बाहर ले जाकर चुप करा"। मेरे आटे में हाथ थे। हाथ धोने में तो समय लगता है न। बस उन्हे गुस्सा आ गया। सुनते ही आराधना तो उसी पर आग बबूला होने लगी। बेमतलब उसने मारा क्यूं? गलती भी होती तो भी मारने का क्या मतलब? तेरे हाथ टूटे थे, डण्डी छीन कर उसे दो मारती तो पता चलता कैसे दर्द होता है? सरोजा कहां थी? उसने कहा कि वह छत पर कपड़े फैलाने गई थी। उसी ने तो आकर मुझे बचवाया। मिसेज कुमार ने कहा कि तूं उससे दूर भाग जाती वो तुझे भाग कर तो मार नहीं सकता था। अपना कमाती है, अपना खाती है। मार मत खाया कर। दोनों ने अपने घरों से दर्द निवारक लगाने की उसे दवा दी। पिटाई काण्ड पर सरोजा ने विचार किया और यह निर्ष्कष निकाला कि मोनू, टोनू के कारण ये सब हुआ है। सड़क पार, चार अंदर के प्लॉट पर एक नया स्कूल खुला था। टोनू तो अभी छोटा था। सरोजा ने मोनू टोनू दोनों का वहां नाम लिखवा दिया। उसको बच्चे संभलवाने थे और उन पढ़े लिखों को बच्चे चाहिए थे। बच्चे आठ बजे जाते थे और एक बजे आते थे। आकर खाना खाकर सो जाते थे। सरोजा ही उन्हें लेने जाती थी और छोड़ने जाती थी। टोनू मोनू के गले में टाई देख कर उसे बहुत खुशी मिलती थी। उस कॉलौनी में पानी बिजली का बिल नाम मात्र का था। बचत के लिए प्रवासी नौकरी वाले किराए पर रहते थे। छुट्टी के दिन सरोजा किसी को भी पकड़ लेती थी। उनको मोनू टोनू का टैस्ट लेने को कहती थी। जाहिर है मोनू टोनू को कुछ नहीं लिखना पढ़ना आता था। सरोजा उनसे पूछती,’’तुम कित्ता पढ़े हो? वो बताते बी.ए.। फिर उनकी बी.ए. की फीस पूछती। जो मोनू टोनू की फीस से बहुत कम होती थी। मोनू टोनू को डांटती,’’ तुम स्कूल में क्या सीख कर आते हो?’’वो पोयम सुना देते और जो जो प्री स्कूल में सिखाया जाता सब सुनाते पर सरोजा को सब्र नहीं था। अगले दिन वह स्कूल में जाकर शिकायत करती कि तुम फीस तो बी.ए. से ज्यादा लेते हो और बच्चों को पहली की किताब पढ़नी भी नहीं आती। क्रमशः
Search This Blog
Showing posts with label story. Show all posts
Showing posts with label story. Show all posts
Tuesday, 24 December 2019
हंसते ही न आ जाएं कहीं, आंखों में आंसू हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग -11 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 11 Neelam Bhagi नीलम भागी
सुबह चांदनी पहले आराधना के घर नाश्ता बनाती थी। फिर कुमार के यहाँ। दोनो घर एक ही फ्लोर पर आमने सामने थे। आराधना का कॉलिज दूर था। मिसेज कुमार का स्कूल घर के पास था। उसे जल्दी कॉलेज निकलना होता था। आज छुट्टी थी, दोनो परिवारों ने चांदनी को कह रक्खा था कि छुट्टी के दिन वह नौ बजे आया करे। जैसे ही आराधना ने चांदनी को दरवाजा खोला, वो चांदनी को घूरने लगी क्योंकि चांदनी राम राम दीदी कहते हुए हंसी नहीं। चुपचाप रसोई में काम करने लगी। आराधना ने उसे कहा,’’चांदनी छोले भीगे हुए हैं। मि. मिसेज. कुमार और तूं यहीं नाश्ता करोगे, भटूरे बनेंगे। चांदनी ने मरी हुई आवाज में जवाब दिया, "जी दीदी।" दोनो अपने कामों में लग गई। नाश्ता तैयार होते ही वे भी आ गये। चारों ने नाश्ता किया फिर चांदनी ने भी किया। आज दोनो परिवारों ने बाहर जाना था। इसलिए लंच बनाने को मना कर दिया। उन्हें देर न हो जाए, इसलिए अब सरोजा के उनके काम भी चांदनी करने लग गई। मशीन से कपड़े निकाल कर फैलाना, सूखे कपड़े तह लगाना। झाडू खटका, डस्टिंग आदि। कुमार के घर का जब वह काम करने गई तो आराधना ने मिसेज कुमार से कहा कि आज चांदनी को पता नहीं क्या हो गया है? आपको भी ऐसा लग रहा है। मिसेज कुमार ने जवाब दिया,’’ मैं समझी कि आपने इसके गुमसुम होने का कारण पूछ लिया होगा और मुझे बता दोगी।’’ये सुनते ही आराधना तो उसी समय चांदनी के पास गई, उससे पूछा,’’तेरे साथ क्या हुआ है?’’ बड़ी मुश्किल से उसने मुंह खोला। उसने बताया कि रेडियो में परशोतम की पसंद का गाना आ रहा था। अचानक मोनू टोनू लड़ पड़े। ये बोले," इन्हें बाहर ले जाकर चुप करा"। मेरे आटे में हाथ थे। हाथ धोने में तो समय लगता है न। बस उन्हे गुस्सा आ गया। सुनते ही आराधना तो उसी पर आग बबूला होने लगी। बेमतलब उसने मारा क्यूं? गलती भी होती तो भी मारने का क्या मतलब? तेरे हाथ टूटे थे, डण्डी छीन कर उसे दो मारती तो पता चलता कैसे दर्द होता है? सरोजा कहां थी? उसने कहा कि वह छत पर कपड़े फैलाने गई थी। उसी ने तो आकर मुझे बचवाया। मिसेज कुमार ने कहा कि तूं उससे दूर भाग जाती वो तुझे भाग कर तो मार नहीं सकता था। अपना कमाती है, अपना खाती है। मार मत खाया कर। दोनों ने अपने घरों से दर्द निवारक लगाने की उसे दवा दी। पिटाई काण्ड पर सरोजा ने विचार किया और यह निर्ष्कष निकाला कि मोनू, टोनू के कारण ये सब हुआ है। सड़क पार, चार अंदर के प्लॉट पर एक नया स्कूल खुला था। टोनू तो अभी छोटा था। सरोजा ने मोनू टोनू दोनों का वहां नाम लिखवा दिया। उसको बच्चे संभलवाने थे और उन पढ़े लिखों को बच्चे चाहिए थे। बच्चे आठ बजे जाते थे और एक बजे आते थे। आकर खाना खाकर सो जाते थे। सरोजा ही उन्हें लेने जाती थी और छोड़ने जाती थी। टोनू मोनू के गले में टाई देख कर उसे बहुत खुशी मिलती थी। उस कॉलौनी में पानी बिजली का बिल नाम मात्र का था। बचत के लिए प्रवासी नौकरी वाले किराए पर रहते थे। छुट्टी के दिन सरोजा किसी को भी पकड़ लेती थी। उनको मोनू टोनू का टैस्ट लेने को कहती थी। जाहिर है मोनू टोनू को कुछ नहीं लिखना पढ़ना आता था। सरोजा उनसे पूछती,’’तुम कित्ता पढ़े हो? वो बताते बी.ए.। फिर उनकी बी.ए. की फीस पूछती। जो मोनू टोनू की फीस से बहुत कम होती थी। मोनू टोनू को डांटती,’’ तुम स्कूल में क्या सीख कर आते हो?’’वो पोयम सुना देते और जो जो प्री स्कूल में सिखाया जाता सब सुनाते पर सरोजा को सब्र नहीं था। अगले दिन वह स्कूल में जाकर शिकायत करती कि तुम फीस तो बी.ए. से ज्यादा लेते हो और बच्चों को पहली की किताब पढ़नी भी नहीं आती। क्रमशः
Location:India
India
Sunday, 22 December 2019
रूठे सैंया, हमारे संग क्यों रूठे? हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 10 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 10 Neelam Bhagi नीलम भागी
चालीस दिन बाद चांदनी खाना बनाने गई। उसके लौटने पर सरोजा काम करने गई। मोनू को परशोतम की गोद में देकर चांदनी घर के काम निपटाती। परशोतम की शादी के बाद सरोजा गांव ही नहीं गई थी। इसलिये छुट्टी बहुत जरुरत पड़ने पर ही लेती थी। इस कारण मैडम लोग भी खुश रहतीं थी। चांदनी फिर हामिला हो गई। सुन कर सरोजा बहुत खुश हुई। उसके अनुसार अब परशोतम का घर मजबूती से बस गया। सरोजा ने चांदनी को समझाया कि जल्दी ही दूसरे बच्चे का पेट में आना बहुत अच्छा हुआ है। दोनो बालक साथ साथ पल जायेंगे। चांदनी को भी सास की बात ठीक लगी। वो वैसे भी आज्ञा पालन ही करती थी। बाहर का काम, घर का काम और मोनू को संभालना सब काम, वह गाना सुनते हुए ही करती थी। क्योंकि परशोतम घर में है तो रेडियो बंद नहीं हो सकता। चांदनी के काम की गति गाने की धुन के अनुसार होती थी। मसलन फास्ट म्यूजिक पर उसके हाथ तेज चलते और स्लो पर धीरे चलते थे। लेकिन दिन में एक बार परशोतम काने के खोखे पर जरुर जाता था। वह उसे बैठने को स्टूल देता था। जब उसका मन करता, तब घर लौटता। इस समय चांदनी परशोतम के बारे में सोचती। उसकी अंगुलियां ही आंखों का काम करती थीं। रुपए पैसे की सब उसे पहचान थी। अपनी पसंद की दो सब्जी वह रोज खरीदता था। सुबह और दोपहर कौन सी बनेगी और रात को कौन सी दाल बनेगी, वो ही बताता था। एक दिन चांदनी ने उससे पूछे बिना सब्जी बना दी। परशोतम तो रुठ गया। उसने खाना नहीं खाया। न मां ने खाया। बेटा भूखा रहे तो मां के गले से भला कौर उतरता है! न न। चांदनी तो कैसे खा सकती थी? वो तो खाती ही पति और सास के बाद थी। किसी ने नहीं सोचा कि इसकी गोदी में बच्चा है जो दूध मां का दूध पीता है और यह फिर गर्भवती हुई है। थोड़ी थोड़ी देर के बाद क्रोधित होकर, परशोतम खड़ा हो हो कर बोलता,’’ठीक करके रख दूंगा। मुझे ऐसा वैसा आदमी मत समझना।’’ सरोजा के कहने पर चांदनी ने उसके पांव पकड़ कर माफी मांगी फिर भी मां के समझाने पर बड़ी मुश्किल से परशोतम का गुस्सा उतरा और उसने अनशन खत्म किया। आराधना और मिसेज कुमार दोनो ने आपस में सलाह की कि अगर चांदनी के फिर लाल पैदा हुआ, तो ये लोग तो चांदनी को लालों की खान बना देंगे। इन लोगों को लड़कों का बहुत क्रेज़ रहता है। लड़के ही पैदा करवाते रहेंगे। उन्होंने सरोजा को समझाया कि चांदनी के दूसरे बच्चे के बाद परशोतम का अपरेशन करवा देना क्योंकि अंग्रेजी स्कूल में बच्चे पढ़ाने का खर्चा बहुत है। पर सरोजा डिलीवरी के साथ ही चांदनी का ऑपरेशन करवाने को राजी हो गई। सरोजा के दूसरा भी पोता हुआ। उसका नाम टोनू रक्खा। कपड़ा सुखाने में दिक्कत का कह कर सरोजा ने काने से छत खाली करवा ली। बाकि तीनो किरायेदार तो पत्नियों वाले थे। काने ने छत खाली कर दी,वहीं एक कमरा किराए पर ले लिया लेकिन परशोतम और उसकी दोस्ती में कोई कमी नहीं आयी। पीछे वाले घरों में पत्नी को पिटने की परंपरा थी। उनका कहना था कि औरत पैर की जूती होती है, जिसकी मरम्मत होती रहती है। और बड़े बूढ़े बुढ़ियों को चलते फिरते बेमतलब उपदेश देने की आदत थी। एक दिन परशोतम ने किसी बात से नाराज होकर चांदनी की पिटाई करनी शुरु की। चांदनी चुपचाप मार खाती रही। मोनू के चीख चीख कर रोने पर सरोजा दौडी़। देखती क्या है कि वह रुई की तरह उस पर डण्डा बरसा रहा था। सरोजा मदद के लिए चिल्लाने लगी। पड़ोसियों ने आकर छुड़ाया। मर्द लोग कहने लगे ,’’इस तरह भी लुगाई को कोई पीटता है। हम भी मारते हैं पर इसने तो हद ही कर दी।’ इनमें से ही कुछ घटिया औरते बोल रहीं थीं,’’ आदमी है, गुस्सा आयेगा तो पीटेगा ही।’’ चांदनी को अकेली देख कर कुछ भली औरतों ने समझाया कि जब आदमी पीटने को आये तो जोर जोर से रो रो कर चिल्लाओ ’अरी, मैया री मार डाला री।’ पड़ोसी आ जाते हैं बचाने। ऐसे चुपचाप मार नहीं खाते
क्रमशः
Subscribe to:
Posts (Atom)