श्री अमरेश्वर महादेव मंदिर के रास्ते की सुन्दरता का वर्णन करने की, औकात कहाँ से लाऊँ जो देखा उसे लिखने की बस कोशिश की है। बीच में कहीं कहीं पर प्राकृतिक सौन्दर्य, हमको रूकने को मजबूर करता है और हम रूकते हंै। शहडोल रोड पर आठ किमी. का रास्ता पलक झपकते ही बीत गया। मंदिर से बाहर गाड़ी रूकी। वहाँ निर्माण कार्य चल रहा था। शायद अब भी चल रहा है क्योंकि परिसर बहुत विशाल है। जूते उतार, हाथ पाँव धो कर सफेद विशाल हाॅल में प्रवेश किया। सामने ग्यारह फीट ऊँचा शिवलिंग था। जिसका वजन इक्यावन टन हैं, वहाँ के पुजारी जी ने बताया। पूजा करके दायें बांयें देखा। देश में बारह ज्योतिर्लिंग हैं, उन्हें प्रतीक स्वरूप यहाँ स्थापित किया गया था। सभी की पूजा कर मन में सोचा कि कोशिश करूंगी, इन बारह स्थानों पर जाने की। वापिस गाड़ी में बैठै। शरद ने अमरावती गंगा धारा के दर्शन कराये। अमरावती गंगा अलग दिशा में जाती है फिर सोन में मिल जाती है। कुछ देर बाद गाड़ी रूकी, हम फिर दुर्गाधारा के सामने खड़े थे। शरद ने कहाकि पहले दिन आपको पैदल के रास्ते से लाया था। आज आपको गाड़ी का रास्ता भी दिखा दिया। हमने उतर कर फिर उस नल का खूब स्वाद ठण्डा ठण्डा पानी पिया। दुर्गाधारा को निहारा, मंदिर में गये और फिर वापिस होटल गये। शरद ने कहाकि आज आप कल्याण सेवा आश्रम की आरती देखना और वापिस चल दिये। शरद को हमने छुट्टी दे दी। होटल में कुछ देर आराम किया। साउथ इण्डियन खाना, यहाँ हर समय मिलता है। रेट इतने कम कि मैं लिख नहीं सकती, ऐसा इसलिये कि आपके दिमाग में अब के दाम न छप जायें। जब आप कुछ साल बाद जाये ंतो मंहगाई बढ़ने से कीमतों में बदलाव आयेगा ही ,तो यहाँ के सीधे सरल दुकानदार आपको बेइमान न लगें। बिना प्रिर्जवेटिव के दूध की चाय का स्वाद ही अलग होता है। मैं तो बहुत पीती थी। चाय और भजिया खा के, मैंने बाजारों में घूम घूम कर अमरकंटक नर्मदा जी से संबंधित किताबें खरीदी। ये काम मैं लौटने से पहले करती हूँं। इसमंे उस जगह से संबंधित धार्मिक, पौराणिक कहानियाँ होती है,ं जिन्हें मैं घर लौटने पर बड़े चाव से पढ़ती हूँं। यहाँ मुझे गाइड और लोगों से सुनना अच्छा लगता है। अपने लेख में भी जो देखती हूँ, अपने मन में उठे प्रश्नों का जो स्थानीय लोगों से जवाब मिलता है। उसे लिख देती हूँ। धार्मिक और पौराणिक कथाएँ इन पवि़़त्र पुस्तकों में ही रहने देती हूँ। कुछ ठेलों पर उधार मांगने वालों पर इबारतें दोहे लिखे हुए थे। मसलन
दोस्ती हमसे करो, रोजी से नहीं
प्रेम बीच अंतर पड़त, टूट जात ब्योहार।
इसीलिये प्रियबन्धुवर, मिलता नहीं उधार।।
प्यार गया, पैसा गया, और गया व्यापार ।
दर्शन दुर्लभ हो गया, जब से दिया उधार।।
रास्ते में हमने ठेले से चाट भी खाई। गोलगप्पे का पानी बहुत स्वाद था। मैंने उससे पूछा,’’तुम्हारा पानी इतना स्वाद क्यों है? दिल्ली, नौएडा के चाट वाले से मैं ऐसा कहती तो वो बदल में मुस्कुराकर थैंक्यू बोल देता पर इसने मुझे स्वादिष्ट पानी बनाने की रैंस्पी बता दी। जिसमें उसने खट्टा करने के लिये कैरी पीस कर मिलाई थी। आम के पेड़ वहाँ बहुतायत से पाये जाते हैं। शायद इसलिये, अब मैं कहीं भी पानी पूरी खाती हूँ तो मेरे मुहँ से निकलता हैं,’’पानी का स्वाद अमरकंटक जैसा नहीं है।’’ कल्याण सेवा आश्रम की आरती में भाग लिया। पता नहीं कितनी देर हमें मंदिर परिसर के वातावरण ने मोहे रक्खा। बाहर आये तो शरद गाड़ी लिये हमारा इंतजार कर रहा था, देखते ही बोला,’’आपने बहुत देर लगा दी , यहाँ से निकल रहा था, सोचा आपको होटल पहुँचा दूँ। मैंने आज भी तंबाकू नहीं खाया।’’ सुन कर बहुत अच्छा लगा। क्रमशः
Neelam Bhagi