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Sunday, 23 December 2018

सोमेश्वर नाथ मंदिर, तुरकौलिया, अहुना मटन, Bihar Yatra बिहार यात्रा भाग 6 नीलम भागी

सोमेश्वर नाथ मंदिर, तुरकौलिया, अहुना मटन,
                                       नीलम भागी
उत्तर बिहार का ऐतिहासिक अरेराजा का सोमेश्वर नाथ प्राचीन मंदिर है। यह तीर्थस्थल मोतिहारी से 28 किलोमीटर की दूरी पर गंडक नदी के पास स्थित है। यहाँ सावन के महीने में बहुत बड़ा मेला लगता है। नेपाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालू यहाँ पूजा अर्चना करने आते हैं। हम जब गये तो त्यौहार के बिना भी दर्शनार्थियों की वहाँ भीड़ थी। सीढ़ियां उतर कर मैं ऐसी जगह खड़ी हो गई, जहाँ मैं किसी की पूजा में रूकावट नहीं बन रही थी। जमीन पर मुझे डॉक्टर ने बैठने को मना किया है। वहीं खड़े खड़े मैंने अपने कंठस्थ शिव स्तुति को मन ही मन दोहराया। मुझे वहाँ बहुत अच्छा लग रहा था। शायद लोगों की आस्था और श्रद्धा के कारण वहाँ अलग सा भाव था। भक्त एक सीढ़ियों से आते, जल्दी पूजा करते और दूसरी सीढ़ियों से वापिस निकलते जाते। इतने प्रसिद्ध मंदिर में बढ़िया सफाई की व्यवस्था न देख अच्छा नहीं लगा। जूता चप्पल रखने का भी कोई इंतजाम नहीं था।
 यहाँ से हम तुरकौलिया के ऐतिहासिक नीम के पेड़ को देखने गये। ये पेड़ किसानों पर हुए अत्याचारों का गवाह है। इस पेड़ से बांध कर उन किसानों पर कोड़े बरसाये जाते थे, जो नील की खेती करने को मना करते थे। इसके नीचे बैठ कर कर बापू ने निलहों से पीड़ित किसानों से उन पर हुए अत्याचारों की दास्तां को सुना था। बापू ने एक आयोग बना कर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, रामनवमी प्रसाद बाबू  धरनीधर बाबू के द्वारा गरीब किसानो के बयान दर्ज करवाये। 29 नवम्बर 1917 को मि. मौड़ ने चंपारण एग्रेरियन बिल अंग्रेजी अदालत में पेश किया, जिसे अंग्रेजी हकूमत ने स्वीकृत कर लिया। यह बिल तीनकठिया प्रथा हटाने एवं बेसी टैक्स को कम करने से संबंधित थी। अब बापू तो पिता तुल्य हो गये थे।
हम जिस भी राह जाते, हमें इकड़ी जिसे कहीं कहीं पर भुआ भी कहते हैं दिखती है। हल्की हवा में उसके रेशे पानी की लहर की तरह लहराते बहुत अच्छे लगते। कहीं कहीं महिलायें उसके बंडल सिर पर रक्खे जाते देख, मैंने पूछा कि यह किस काम आती है? पता चला कि यह पैट्रोल से तेज जलती है। झोपड़ी की छत भी बनाने के काम आती है। सामने तुरकौलिया तालाब था। अभिषेक ने बताया कि इसकी मछलियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं। मैं ड्राइवर के बराबर की सीट पर बैठी थी। मैंने देखा कि वहाँ हाइवे पर तो किनारे पर और साइड रोड पर तो सड़क पर ही बकरियाँ घूमती रहतीं थी बिना गडरिये के। एक ही रंग आकार की कई कई बकरियाँ देख, मैंने ड्राइवर साहेब से पूछा कि लोग अपनी अपनी बकरियों को कैसे पहचानते होंगे? उन्होंने मेरी ओर ऐसे देखा मानो मैंने बहुत ही बचकाना प्रश्न किया हो फिर जीनियस की अदा से बोले,’’ ये साली बहुत ही बदमास होती हैं, शाम होते ही अपने अपने घर चली जातीं हैं। घर वालों को नहीं ले जाने की परेशानी उठानी पड़ती।’’ रास्ते में हरी सब्जी की र्नसरी देखी जहाँ पर लगभग सब किस्म की हरी सब्जियों की पौध थी। इस इलाके से ठेकेदार बाल मजदूर ले जाते थे। अब कुछ संस्थाएं ऐसी हैं जो इस काम को रोक रहीं हैं ताकि बिना रजीस्ट्रेशन के कोई न जाये।
 चम्पारन का अहुना मटन बहुत प्रसिद्ध है। यह मिट्टीहांडी में कच्चे कोयले( लकड़ी के कोयला) पर धीमी आँच  पर पकाया जाता है। अब ये चम्पारन मीट दूर दूर तक प्रसिद्ध है। इसे बनाने की विधि नेपाल से आई है। पूर्वी चम्पारण के घोड़ाहसन में इसमें कुछ परिवर्तन किया गया। उन्होंने हण्डिया को सील करना शुरू किया। बिना औटाये यह 45 से 50 मिनट में पक जाता है। घोड़ाहसन के अहुना मीट बनाने वालों की पटना और मोतीहारी में काफी मांग है। इसमें तेल मसाले और मटन सब एक साथ हाण्डी में डाल कर उसे गूंधे आटे से सील कर दिया जाता है। बस बीच बीच में हाण्डी को बिना खोले हिला दिया जाता है। मिट्टी की हांडी के कारण ये काफी समय तक गरम रहता है। अंकुरित चाट के खोमचे कहीं भी दिख जाते और गन्ने के रस के ठेले इफरात में थे।   क्रमशः