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Tuesday, 4 February 2025

उत्साह, परंपरा और खुशियों से भरा फरवरी Febuary Festival Neelam Bhagi

 इक नाज़नीन ने पहने फूलों के देखो गहने। प्रकृति की अनोखी छटा बसंत आगमन से शुरु होती है। पूर्वोतर भारत में फरवरी तो पर्यटन का सीजन है।   

सूरजकुंड अर्न्तराष्ट्रीय शिल्प मेला 1से 16फरवरी में भारत के शिल्प और स्थानीय कलाओं का आनन्द उठाने के लिए लाखों लोग फरीदाबाद पहुँचते हैं। ओपन एयर थियेटर में सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देखना और स्थानीय व्यंजनों का आनन्द उठाना सबको बहुत भाता है।

काला घोड़ा मुंबई में आयोजित कला उत्सव कला प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। फरवरी में ही एलीफेंटा महोत्सव मुंबई के पास एलीफेंटा द्वीपों पर संगीत, नृत्य, वाद्य एवं गायन का प्रर्दशन किया जाता है।

सूर्य देव की उपासना का पर्व रथ सप्तमी (4फरवरी) को भानु सप्तमी या अचला सप्तमी भी कहा जाता है। मुख्य रुप से महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना दक्षिण भारत के राज्यों में यह फसल कटाई का संकेत है और किसानों की अच्छी फसल की उम्मीद का भी प्रतीक है। महिलाएँ घरों में सूर्य देव की तस्वीर बनाती हैं। आंगन में सूर्य की ओर मुंह करके दूध उबाला जाता है। इस दूध से खीर पायसम बनाया जाता है। परिवार में जिस बच्चे की पहली रथ सप्तमी होती है, उसे कान्हा के लड्डू गोपाल या बालरुप में सजाया जाता है। पड़ोसियों, मित्रों और रिश्तेदारों के बच्चे इस कन्हैया को घेर लेते हैं। परिवार कृष्णा के ऊपर से बोर की बरसात करता है। उसमें बच्चों की पसंद की खाने की चीजों के साथ उस समय के स्थानीय उपलबध फल आदि भी होते हैं। मसलन गन्ने की गंडेरिया, बेर आदि भी, अब तो चॉकलेट, कुकीज़ का भी चलन होने लगा है। बच्चे इस बरसात के माल से जेेबें भरते हैं। स्वागत के लिए द्वार पर रंगोली बनाई जाती है और महिलाओं का हल्दी कुमकुम लगा कर सत्कार किया जाता है। गर्मी की शुरुआत होने लगती है। सूर्यदेव को आभार प्रकट करने का यह पर्व है, जिनकी कृपा से अच्छी पैदावार होगी।      

  फूली हुई है सरसों और धरती तो फूलों के गहनों से सजने लगी है! ऋतुराज बसंत के स्वागत में। यानि ’बसंत पंचमी का उत्सव’ सब ओर रंग और उमंग। पीले कपड़े पहनना, पीले चावल या हलुआ बनाना, खाना, खिलाना और परिवार सहित सरस्वती पूजन करना। इस दिन बिना साहे के विवाह संपन्न किए जाते हैं। कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं। बच्चे का अन्नप्राशन यानि पहली बार अन्न खिलाने का संस्कार कर सकते हैं। परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बच्चे को खीर चटाता है। बसंत पंचमी के बाद से बच्चे को सॉलिड फूड देना शुरु किया जाता है। वैसे बच्चे को छ महीने का होने पर पहले ही अन्न देने लगते हैं। पर अन्नप्राशन संस्कार बसंत पंचमी को कर लेते हैं। 

बच्चे का तख्ती पूजन(अक्षर ज्ञान) बसंत पंचमी को करते हैं। सरस्वती पूजन के बाद तख्ती पर हल्दी के घोल से बच्चे की अंगुली से स्वास्तिक बनवाते हैं। परिवार बोलता है

गुरु गृह पढ़न गए रघुराई, अल्पकाल सब विद्या पाई। 

और बच्चे की स्कूली शिक्षा शुरु होती है।       




पूर्वांचल में बसंत पंचमी को होलिका दहन के लिए ढाड़ा गाढ़ देते हैं।

फगुआ के बिना होली कैसी!! अब फगुआ, फाग, जोगीरा और होली गायन शुरु हो जाता है। जिसमें शास्त्रीय संगीत, उपशास्त्रीय संगीत और लोकगीत हर्षोल्लास से गाए जाते हैं। प्रवासी घर जाने की तैयारी शुरु कर देते हैं।

वृंदावन बांके बिहारी मंदिर, शाह बिहारी मंदिर, मथुरा के श्री कृष्ण जन्मस्थान और बरसाना के राधा जी मंदिर में ठाकुर जी को बसंत पंचमी के दिन पीली पोशाक पहनाई जाती है और पहला अबीर गुलाल लगा कर होलिका दहन के लिए ढाड़ा गाड़ा जाता है और बसंत पंचमी से फाग गाने की शुरुआत होती है। देश विदेश से श्रद्धालु ब्रजमंडल की होली में शामिल होने के लिए तैयारी शुरु कर देते हैं। बसंत पंचमी से ब्रज में चलने वाले 40 दिन के उत्सव शुरू हो जाते हैं।  

खिचड़ी मेला गुरु गोरखनाथ जी के मंदिर गोरखपुर(जिले का नाम गुरु गोरखनाथ के नाम पर है) में मकर संक्राति को शुरु होता है जो एक महीने से अधिक समय मध्य फरवरी तक चलता है। किसान अपनी पहली फसल की खिचड़ी चढ़ाने के लिए लाइनों में लगे होते हैं। इस प्रशाद की खिचड़ी को मंदिर की ओर से बनाया जाता है और विशाल मेले के साथ, मंदिर में खिचड़ी का भंडारा चलता है। रविवार और मंगलवार के दिन खास महत्व होता है। मेले में झूले और हर तरह के सामान, खाने पीने की दुकाने लगी रहती हैं। गुरु गोरखनाथ के खिचड़ी मेले में कोई भूखा नहीं रह सकता। खिचड़ी का प्रशाद खाओ और मेले का आनन्द उठाओ। देश के बड़े आयोजनों में यह मेला है।

 बूरी बूूट युलो 4 - 6 बसंत के स्वागत में अरुणाचल प्रदेश की न्याशी जनजाति जो राज्य की प्रमुख स्वदेशी जनजातियों में से एक है, उसके द्वारा यह जीवंत आनंदमय उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव बसंत आगमन के स्वागत में, अपने पूर्वजों की आत्माओं के सम्मान करने, भरपूर्व फसल के लिए आर्शीवाद मांगने और अपनी सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाने के लिए यह उत्सव बसंत से शुरु होकर कई दिन तक चलता है। यह उत्सव प्रकृति चक्र से अभिन्न रुप से जुड़ा हुआ है।

महानंदा नवमीं 6 फरवरी को उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में महानंदा नवमी मनाई जाती है। हरसू ब्रह्मदेव जयंती भी मनाई जायेगी।

केरल में अदूर के प्राचीन श्री पार्थसारथी मंदिर में 7 फरवरी को आयोजित दस दिवसीय  सांस्कृतिक कार्यक्रमों का समापन है। जिसमें हाथियों के प्रर्दशन का नजा़रा प्रमुख है।

उदयपुर विश्व संगीत महोत्सव 7 से 9 फरवरी  को राजस्थान के उदयपुर में तीन खूबसूरत जगहों पर दिन के अलग अलग मूड को ध्यान में रखकर संगीत का प्रर्दशन होगा।

जैसलमेर मरु उत्सव 10 से 12 फरवरी यह राजस्थान के सबसे लोकप्रिय त्यौहारों में से एक है जो जैसलमेर से 42 किमी दूर थार रेगिस्तान की चमकदार रेत पर मनाया जाता है। दुनियाभर से पर्यटक यहाँ रण उत्सव के जीवंत और रंगीन माहौल को अनुभव करने आते हैं।  

माघ पूर्णिमा 12 फरवरी को काशी में जन्में संत रविदास की जयंती पर पवित्र नदी में स्नान करके उनके रचे पदों, दोहों को कीर्तन में गाया जाता है। उनका जीवन बताता है कि भक्ति के साथ सामाजिक, परिवारिक कर्त्तव्यों को भी निभाना चाहिए। उनका कहना था कि ’मन चंगा तो कठौती में गंगा’

ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन

पूजिए चरण चंडाल के, जो होवे गुण प्रवीण

परियानमपेट्टा पूरम 17 फरवरी को केरल पलक्कड़ जिले में परियानमपट्टा मंदिर स्थित है। यहाँ वार्षिक पूरम उत्सव मलयालम महीने कुंभम में मनाया जाता है। इसमें तीन जुलूस आयोजित किये जाते हैं जिसमें सजे हाथी भाग लेते हैं। जिसकी पृष्ठभूमि पारंपरिक केरल मंदिर संगीत होता है। सात दिवसीय उत्सव का मुख्य आर्कषण अनुष्ठान में प्राकृतिक रंगों से फर्श पर देवी मां की छवि बनाई जाती है। रात्रि में लोक कलाओं का मंचन किया जाता है।

कोणार्क नृत्य महोत्सव 19 से 23 फरवरी तक उड़ीसा के कोणार्क मंदिर में आयोजित किया जाता है।

खजुराहों नृत्य महोत्सव 20 से 26 फरवरी को मध्य प्रदेश कला परिषद् द्वारा आयोजित नृत्य उत्सव में दुनियाभर से पर्यटक पहुंचते हैं। 

सभी तीर्थ भी अपने राजा से मिलने प्रयागराज, माघ में  आते हैं। यहां रहना, अपना सौभाग्य मानते हैं। एक ही स्थान पर समय बिताते हुए प्रदोष, माघी पूर्णिमा, गुरु रविदास जयंती, जानकी जयंती, छत्रपति शिवाजी जयंती, दयानंद सरस्वती जयंती, शिवरात्री मिलजुल कर मनाते हैं। अपने प्रदेश की बाते करते हैं और दूसरे की सुनते हैं। कुछ हद तक देश को जान जाते हैं। उनमें सहभागिता आती है। अपने परिवेश से नये परिवेश में कुछ समय बिताते हैं। कुछ एक दूसरे से सीख कर जाते हैं, कुछ सीखा जाते हैं। मानसिक सुख भी प्राप्त करते हैं। धर्म लाभ तो होता ही है। 

जानकी जयंती(21 फरवरी) हर नदी वहाँ के स्थानीय लोगो के लिये पवित्र है और उनकी संस्कृति और उत्सवों से अभिन्न रूप से जुड़ी है। नदियों को माँ कहा जाता है। जैसे माँ निस्वार्थ संतान का पोषण करती है। वैसे ही नदी हमें देती ही देती है। जीवनदायनी नदियों को लोग पूजते हैं, मन्नत मानते हैं। वनवास के समय सीता जी ने भी गंगा मैया पार करने से पहले, उनसे सकुशल वापिस लौटने की प्रार्थना की थी। इसलिए जानकी जयंती पर श्रद्धालु पवित्र नदी का पूजन भी करते हैं।

कश्मीर में शिवरात्रि 26 फरवरी का उत्सव तीन चार दिन पहले से और दो दिन बाद तक मनाया जाता है। नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर यह ऐसा स्थान है। जिसके विषय में यह माना जाता है कि यहां आज भी शिव की मौजूदगी है। पशुपतिनाथ को उनके भक्त भोलेनाथ, महादेव, रुद्र, पंचमुखी, प्रभु पशुपतिनाथ कहते हैं। यहां भी कई अनोखी बातें और परंपराएं जूड़ी हैं। भालेश्वर महादेवी काठमांडू की चंद्रगिरि पहाड़ियों पर स्थित हिन्दू मंदिर है। यह भगवान शिव को समर्पित है। गलेश्वर मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के कारण, मुख्यमंदिर को दूसरे पशुपति के नाम से भी जाना जाता है। पास में ही काली गंडकी और राहु नदी का पवित्र संगम है। धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से स्थान बहुत पवित्र है। गलेश्वर मंदिर प्रत्येक दिशा में आश्चर्यों से घिरा है। पश्चिम में पुलस्त्य पुल्हाश्रम तीन महान शिव को समर्पित, प्रसिद्ध ऋषि पुल्हा, पुलत्स्य और विश्ररवा जो यहां ध्यान, साधना करते थे। पुलस्त्य और पुल्ह भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे और विश्रवा पुलस्त्य ऋषि के पुत्र थे। दक्षिण भारत आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के सभी शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की लाइने लगी रहती हैं। उज्जैन में महाकालेश्वर और जबलपुर तिलवाड़ा में जाना अपना सौभाग्य समझा जाता है। भगवान शिव की जटाओं से उनकी पुत्री माँ नर्मदा की उत्पत्ति हुई है। अमरकंटक में घूमते हुए माँ की कहीं भी जलधारा मिल जातीं थीं इसीलिये कहते हैं ’नर्मदा के कंकर सब शिवशंकर।

    ब्ंागलादेश के चंद्रनाथ धाम जो चिटगांव के नाम से प्रसिद्ध है। वहां कहते हैं इस दिन अभिषेक करने से सुयोग्य पति पत्नी मिलते हैं। नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में देश दुनिया से श्रद्धालू पहुंचते हैं।

’शिवरात्रि’ का अर्थ है भगवान शिव की महान रात्रि सभी हमारे हिन्दू उत्सव दिन में मनाये जाते हैं। पर इस पर्व में रात्रि के चारों पहर अभिषेक होता है। एक साधारण इनसान शिव के 28 अवतार, शिवपुराण नहीं जानता, उसे बस ये पता है कि भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए जैसा सुनता देखता है, वही उसकी पूजा की विधि बन जाती है। जिसे वह श्रद्धा से करता है और श्रद्धा से बुद्धि को बल मिलता है। तुलसीदास ने भी लिखा है 

शिवद्रोही मम दास कहावा सो नर सपनेहु मोहि नहिं पावा। 

नृत्य महोत्सव नाट्यांजलि 26 फरवरी से यह तमिलनाडु के कई नटराज मंदिरों के प्रांगण में एक सप्ताह तक मनाया जाने वाला त्यौहार है। सबसे लाजवाब आयोजन मंदिरों के शहर चिदाबंरम में होता है।

 उत्साह, परंपरा और खुशियाँ यही हमारे उत्सवों की मिठास है जिसमें प्रकृति भी हमारे साथ है!

नीलम भागी(लेखिका, जर्नलिस्ट, ब्लॉगर, टैªवलर)

यह लेख प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से प्रकाशित 

 प्रेरणा विचार पत्रिका के फरवरी अंक में प्रकाशित हुआ है।