मुझे गाडि़यों, ट्रकों के पीछे लिखी कविता, शायरी पढ़ने का बहुत शौक है। उसे मैं दिल से पढ़ती हूं इसलिये मुझे याद भी हो जाती हैं। अधिकतर उनके पीछे नसीहत, चेतावनी लिखी होती है। मसनल ’हंस मत पगली, प्यार हो जायेगा।’ ’नाली में पैर डालोगी, धोना ही पड़ेगा। ड्राइवर से प्यार करोगी तो, रोना ही पड़ेगा।’
मालिक की गाड़ी,
डाइवर का पसीना।
चलती है रोड पर,
बन के हसीना।
जब भी मुझसे कोई गलती होती है, तो पछताने के समय मेरे मुँह से ट्रक के पीछे लिखी चेतावनी, अपने आप निकल जाती है, जैसे किसी वेदपाठी के मुँह से एैसे मौके पर श्लोक निकलता है।
हुआ यूँ कि मैं शाॅपिंग करने जा रही थी। एक 16 -17 साल का लड़का बैग लिए खड़ा था। उसके चेहरे से घोर दुख टपक रहा था। मुझसे बोला, “मैडम, आप शैंपू लेंगी।” मैंने कहा, “नहीं”। उसकी आँखें भर आईं। वह बोला, “आधे रेट में ले लीजिए न।” मैंने उससे कड़क आवाज में पूछा, “कहाँ से चुरा कर लाए हो?” वह बोला, “मैं आपको चोर लगता हूं।” अब मेरी आँखें उसे एक्स रे मशीन की तरह जाँचने लगी। मेरी जाँच की रिर्पोट से पहले ही, वह बोला,’’ मैं जिस स्टोर में काम करता था, वह बंद हो गया है। उसका किराया बहुत ज्यादा था। दुकानदार स्टोर का किराया ही नहीं निकाल पा रहा था, तो हमारी तनख्वाह कहां से देता! स्टोर बंद होने पर उसने हमें तनख्वाह के बदले सामान दे दिया।’’
अपनी कहानी के साथ-साथ वह हथेली पर बोतलों से निकाल कर तरह-तरह के शैंपू दिखाने लगा। और मैं आधे रेट के अमुक, दमुक, तमुक, लमुक ....... आदि शैंपू अपने बैग में रखने लगी। जब सब शैंपू रख चुकी तो लड़के ने मुझसे पूछा, “आपको दूसरे शैंपू दे दूं क्योंकि इनका सैंपल दिखाते हुए, ये कुछ कम हो गए है, वैसे जैसी आपकी मर्जी।’’ मैंने मन में सोचा सस्ते हैं, तो क्या हुआ? मैं तो लबालब भरी बोतलें लूंगी। मैंने कहा, “सील बंद दो।’’ उसने मुझे बैग के अंदर पाॅलिथिन में रखी बोतलें दे दी। मैंने उसे शैंपू के पैसे दिये और नसीहत दी कि बेटा पढ़ाई जरूर करो, तुम्हारी उम्र ही क्या है! स्कूल जाने का समय नहीं हेै तो प्राइवेट परीक्षा दो। उसने भी हामी भरी कि वह जरुर पढ़ेगा।
मैंने शॉपिंग का आइडिया ड्राॅप कर दिया क्योंकि पैसों से मैने पूरे खानदान के लिए एक साल के लिये शैंपू खरीद लिए थे। अब मैं लोभ के कारण, नेकी करके खुशी-खुशी घर आई। रास्ते भर सोचती रही कि मैंने एक बार में ही उसका कितना भार हलका कर दिया। जब परिवार के सदस्य इकट्ठे हुए तो मैंने उन्हें उस पढ़ाई के शौकीन लड़के की दुखभरी कहानी सुना कर, शैंपू दिखाए। सबने शैंपू खोले, सभी के अंदर एक ही रंग और गंध का पतला घोल भरा था। कोई कुछ बोले, उससे पहले मेरे मुंह से तपाक से ट्रक के पीछे लिखा, सड़क साहित्य निकला।
नेकी कर और जूते खा, मैंने भी खाएं है तू भी खा।
13 comments:
Very interesting
धन्यवाद श्वेता
Achha hai....
समझ में आ गया अब नेकी करने की सोचना भी नहीं है |
धन्यवाद
नेकी कर और दरिया मेंं डाल।
आपके अनुभव के लिए आपको धन्यवाद् लेकिन हर जगह ऐसा नहीं होता है।
हमने भी इस बार योग को बहुत प्रमोट किया लेकिन इसके बाद समाज के वह वर्ग जो अपने आप को बहुत हाई सोसाइटी के समझते है उनके घटिया सोच ने हमे सोचने के।लिए मजबूर कर दिया। ये योग तो जानते ही नहीं सिर्फ ढोंफ करते है
👍
धन्यवाद
धन्यवाद
बहुत सुंदर है
हार्दिक धन्यवाद
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