Search This Blog

Monday, 8 August 2016

सरप्राइज यात्रा वस्त्र से समाचार पत्र तक सब हिंदी हिंदी Coorg Yatra Part 1 Kernatak कूर्ग यात्रा नीलम भागी

 सरप्राइज यात्रा                
                     
                                                 
अनोखा मध्य प्रदेश की यात्रा को समाप्त कर, अभी मन में अगली यात्रा का मैं प्लान बना ही रही थी कि उत्कर्षिणी आई और बोली,’’माँ तैयारी कर लो, अगली यात्रा की।’’मैंने पूछा,’’कहाँ की?’’वो बोली,’’ये तो राजीव जी का सरप्राइज है। कोई हिंट भी नहीं दिया। मैंने भी ज्यादा दिमाग नहीं खपाया, ये सोच कर कि एयरपोर्ट पर पता चल ही जायेगा कहाँ की यात्रा है। ये अत्यंत व्यस्त हैं, इसलिये ट्रेन के लिये समय अफोर्ड नहीं करते। मैं मन ही मन बहुत खुश थी कि जब तक इस सरप्राइज़ यात्रा को नहीं लिख लेती, तब तक अगली यात्रा का प्लान कर सकती हूँ। अब तो मुझे साथ ही चलना था। मैं बैग लगा ही रही थी। उत्कर्षिणी बोली,’’माँ, हल्का सा शाॅल भी रख लेना।‘‘मैंने अंदाज लगाया कि इतनी गर्मी में शाॅल! इसका मतलब कि पहाड़ी जगह होगी। जो भी होगी हो, मुझे तो यात्रा का आनन्द ही उठाना है। सबके बैग लगे देख, दो साल की गीता, एयरपोत एयरपोत का जाप करने लगी। कभी शूज़ निकाल कर देती कि उसे पहना दो, कभी आफ मोबाइल कानों पर रक्ख कर बोलती,’’सैयद भाई, गाड़ी एक्जिट पर लगा दो।’’उसे हमारी तैयारी से कोई मतलब नहीं था। उसे तो बैग दिख रहे थे और बेचैनी थी कि हम चल क्यों नहीं रहे हैं। बारिश हो रही थी, मैं उसे लेकर नीचे आ गई कि हम गाड़ी में बैठ जायेंगे और उसके मम्मी पापा घर ठीक से बंद कर देंगे। लाॅबी से गाड़ी तक जाने में गीता ने छाता खुद ही लिया। मुम्बई की मोटी मोटी बूंदो वाली बारिश में गीता छाता लेकर चल रही थी। ऐसा लग रहा था, मानो छाता चल रहा है। जहाँ जरा सा भी पानी इक्ट्ठा देखती उसमें जाकर छपाक छपाक कूदती, बड़ी मुश्किल से उसे गाड़ी तक लेकर आई। अंदर बैठी, तो चलो। तब तक सब आ गये। गाड़ी चलते ही मैं खुश हो गई कि आधे घण्टे में मुझे पता चल जायेगा कि कहाँ जाना है। डाॅमैस्टिक एयरर्पोट से पहले सैयद भाई ने पूछा,’’डाॅमैस्टिक या इंटरनैशनल।’’राजीव बोले,’’इंटरनैशनल।’’सुनते ही तपाक से मेरे मुँह से निकला कि पासपोर्ट तो मैं लाई नहीं। वे बोले,’’जेट एयरवेज़ की फ्लाइट इंटरनैशनल एयरपोर्ट से जाती है।’’ सुनते ही चैन आया, सस्पैंस और थोड़ा लंबा हो गया। खै़र एयरपोर्ट पहुँचते ही सामान ट्राॅली में रख कर, सबसे मुश्किल काम गीता को प्रैम में बिठाना था। गीता दो साल की हो गई है, न उसे प्रैम में बैठना पंसद है और न ही अंगुली पकड़ कर चलना। वो चाहती है उसे छोड़ दिया जाये, वो जहाँ चाहे दौड़े और हम सब उसके पीछे दौड़े। ये तो घर या पार्क के सिवाय सम्भव नहीं है न। गीता को प्रैम में बिठा, मैंने प्रैम ले ली। एयरपोर्ट में प्रवेश करते ही मेरा पूरा ध्यान राजीव उत्कर्षिणी पर लगा था कि ये किस फ्लाइट के लिये चैक इन करवाते हैं। जैसे ही ये जेट एयरवेज़ के मुम्बई से मैंगलौर काउण्टर पर खड़े हुए। मेरा सस्पैंस खत्म। लगेज़ चैक इन में डाला, गीता की प्रैम को उसके पापा चलाने लगे। सिक्योरिटी जाँच के बाद हम लाउंज में चले गये। वहाँ लंच किया। यहाँ गीता को हमने दूध की बोतल पिला कर, खोल दिया। गीता वहाँ से यहाँ और यहाँ से वहाँ भागती रही। फ्लाइट का समय होते ही फिर गीता को बड़ी मुश्किल से प्रैम में बिठाया और रोती हुई गीता को ले हम गेट पास पर लिखे गेट नम्बर की ओर चल पड़े। लाउंज में मैं नवभारत टाइम्स पढ़ रही थी, पूरा पढ़े बिना तो छोड़ नहीं सकती थी न इसलिये हाथ में पकड़े आ गई कि प्लेन में पढ़ूँगी। अचानक प्लेन के अन्दर जाने से पहले याद आया कि सीट पर जैसे ही पेपर खोलूँगी, शैतान गीता फाड़ देगी। थोड़ा सा समय था, मैं बाहर जल्दी जल्दी बची हुई हैडलाइन देख रही थी। आखिरी सवारी तो मैं थी, मुझसे पहले की सवारी जो लड़का था, मेरे पास से गुजरा और वो जाते जाते बोल गया,’’वस्त्र से समाचार पत्र तक सब हिंदी हिंदी।’’ क्योंकि मेरे कुर्ते पर हिन्दी वर्णन माला छपी हुई थी। क्रमशः      
     

2 comments:

Simra said...
This comment has been removed by the author.
Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद