Search This Blog

Friday 12 August 2016

मुंबई से मैंगलौर Coorg Yatra Part 2 कूर्ग यात्रा Neelam Bhagi नीलम भागी


                                      
                                                   प्लेन में जाते ही देखा कि गीता ने उधम मचा रखा है। कारण, मैं बाहर थी तो उसे लग रहा था कि मुझे छोड़कर जा रहे हैं। मुझे देखते ही चहकी और अपने बराबर खाली विंडो सीट पर हाथ मार मार बोलने लगी बैथो बैथोे, मैंने बैठ कर बेल्ट बाँधी। उसकी बांधी। एक घण्टा पाँच मिनट की उड़ान थी। इतने में एयरहोस्टेज़ आकर सावधानियों की रिकार्डिंग पर इशारों से समझाने लगी। गीता समझी कि शायद डांस हो रहा है। वो बहुत ध्यान से हंस हंस कर देखने लगी और उनकी तरह हाथ चलाने लगी। प्लेन के उड़ान भरते ही, मैं उसे विंडो से बाहर दिखाने लगी, उसे कोई मतलब नहीं....। जैसे ही समुद्र दिखा, खुश, उसे तैरने का बहुत शौक है। यहाँ तो इतना बड़ा समुद्र उसके लिए तो  स्वीमिंगपूल था, जिसे देख वह कपड़े उतारने लगी और स्वीमिंग स्वीमिंग का जाप करने लगी। प्लेन जैसे ही बादलों से ऊपर हुआ तो पानी गायब तो वो भी, इस एक्टिविटी को भूल गई। अब ट्रेन होती तो इतनी देर में सामने, दाएँ, बाएँ वालों से अब तक दोस्ती हो गई होती। ज्यादा समय की प्लाइट में तो हम इसे घर में सोने नहीं देते फिर सफर में यह सो जाती है। यहाँ तो सुबह नौ बजे तक सो कर उठी थी इसलिये पूरी तरह एक्टिव थी। अब उसे बायीं ओर मैं दिख रही थी, दायीं ओर मम्मी पापा और सामने की सीट की पीठ। अब गीता क्या करे! मैंने उसे कूंगफू पाण्डा दिया। जिसे लेकर वह सीट पर खड़ी होकर, उसने चारों ओर नज़रें दौड़ाई। हमारी पिछली सीट पर जो बैठे थे वे इससे बातें करने लगे, ये खुश हो गई। इतने में नाश्ता लगने लगा। पीछे वालों को परेशानी न हो,मैंने गीता को बिठा कर, उसके आगे ट्रे लगा दी। उसमें टी किट थी, चीनी का पैकेट फाड़ कर खुश हो गई। चीनी को वह जाॅनी( जाॅनी जाॅनी यस पापा.....) बोलती है। जाॅनी  चाटने लगी और जाॅनी से मन भरने पर, मम पीना, मम पीना करने लगी,  मैंने पानी की बोतल खोल दी। थोड़ा पानी पी कर, अब उसने बाकि पानी को कप में पलटा फिर कप से बोतल में फिर बोतल से कप में इस प्रोसेस को वो लगातार करती रही। बीच बीच में पी भी लेती। कुल दो सौ मिली. की बोतल थी इसलिये हमें उसके स्नान का भी डर नहीं था। अलट पलट का खेल करते सारा पानी खत्म, कुछ उसके कपड़ों ने पिया कुछ उसने। अब वो मेरा और अपना कप लेकर बजाने और कुछ गाने लगी। ट्रेन होती तो आसपास के लोग उसकी हरकते देखते फिर वह नया कुछ करती। अब हमने उसके गीले कपड़े बदलने शुरु कर दिये। प्लेन लैंड होने का भी समय हो गया। मैंने तो अपनी आँखे बाहर गड़ा दी। अब तक मैंने जितनी भी हवाईयात्राएँ की हैं, विंडो से ऐसा प्राकृतिक सौन्दर्य!! अब से पहले मैंने कभी नहीं देखा था। बाहर बारिश हो रही थी। ऊपर से दिखने वाला गहरे हरे रंग का कालीन, धीरे धीरे आकृतियों में बदलने लगा यानि नारियल के पेड़ों के जंगल में। ऐसे मनमोहने दृश्य को कोई चित्रकार नहीं बना सकता। जी भर कर देख भी नहीं पाई थी कि प्लेन लैण्ड कर गया। हल्की बरसात चालू थी। बाहर आते ही गीता ने ऐयरर्पोट पर इधर उधर भागना शुरु कर दिया। प्रैम उसकी लगे़ज के साथ आनी थी। एक ट्राॅली में उसे बिठा कर, हम दो नम्बर बैल्ट के पास लगेज़ के इंतजार में खड़े हो गये। गीता को समझा दिया कि जब प्रैम आयेगी तो बता देना। अब वह घूमती हुई बैल्ट को घूरती रही। सारा सामान आ गया, वह चुपचाप रही, जैसे ही उसे अपनी प्रैम आती दिखी, उसने खुशी से शोर मचा दिया। ट्राॅली पर सामान रख, उस पर  गीता को बिठा कर, एयरर्पोट से बाहर आये। सामने खड़े दिनेश ने हमसे ट्राॅली लेकर सामान को गाड़ी में रक्खा, हम बैठे और गाड़ी चल पड़ी। क्रमशः 

4 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

आपके साथ मेने भी प्लेन की यात्रा की अति मनोहारी चित्रण साथ में गीता की शरारतें अति सुंदर जब भी आपने यात्रा का व्रतांत लिखा है हम भी आपके पाठक साथ यात्रा पर निकल पड़ें

SUDHIR KUMAR MITTAL said...

बिना रूके लगातार पढऩे वाला मनमोहक चित्रण।

Neelam Bhagi said...

आभार, धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद