|
हाँग काँग की यात्रा पर दो माँ, दो बेटियाँ कुल तीन भाग 1
नीलम भागी
हमारी मंगलवार रात की जेट एयरवेज से फ्लाइट थी। मैंने और मेरी बेटी उत्तकर्षिनी ने तय कर लिया था कि हम ढाई साल की गीता को दिन में सोने नहीं देंगे। ताकि फ्लाइट में वो हमें तंग न करे और सोती हुई जाये। सफ़र में सामान हम कम ले जाते हैं। एक मेरा बैग, एक गीता और बेटी का, हम दोनों ने बहुत बड़े पर्स लिये, जिसमें गीता की तुरंत जरूरत का सारा सामान आ गया। घर से एयरर्पोट के रास्ते में राजीव गीता से बतियाते आये। वहाँ पहुँचते ही राजीव ने गीता को प्रैम में बिठाया, गीता बहुत खुश थी कि सब घूमने जा रहे हैं। अब राजीव ने प्रैम मुझे हैण्ड ओवर कर, पीछे से उसे बिना बाय बोले, चले गये। हम तीनों ने एयरर्पोट में प्रवेश किया। गीता ने चारों ओर नज़रें घुमाई और पापा पापा कर, रोना शरू कर दिया। बड़ी मुश्किल से उसे समझाया कि शनिवार को पापा हमें मकाऊ में मिलेंगे। दोनों बैग चैक इन में डाल कर, हम लाउंज में चले गये। फ्लाइट से पहले हम बोर्डिंग पास पर लिखे नम्बर के गेट पर पहुँचे। गीता को देखते ही, स्टाफ ने हमसे प्रैम ले ली और हमें पहले प्लेन में बिठा दिया गया। इसमें दो दो सीटे विंडो के पास थी और बीच में चार सीट। बीच की चार सीटों में से तीन पर हम बैठ गये। प्लेन के उड़ान भरते ही मैंने देखा, मेरी बायीं ओर की दोनों सीटे खाली हैं। मैं तो झट से बीच का हत्था उपर कर, दोनों सीटों पर जाकर जम गई। विंडो के बाहर देखने को केवल अंधेरा था। मैंने चॉक और डस्टर फिल्म लगा ली। खा तो लाउंज में लिया था। चाय पीती रही। उत्कर्षिनी हाँगकाँग पहले भी आ चुकी थी, केवल दस घण्टे रूकी थी, उसकी इच्छा थी कि जब विमान उतरे, तो मैं यहाँ की ऊपर से खूबसूरती देखूँ। इसलिये मैं बिल्कुल नहीं सो रही थी। मेरी और गीता की सीट मिला कर उसके लिये लेटने की जगह हो गई थी। उसे दूध की बोतल देदी, वो तो सोती रही। दूसरी फिल्म मैंने जज़्बा लगा ली। निग़ाह मैंने बीच बीच में बाहर भी रक्खी। अचानक अंधेरा छटने लगा। अब मैंने बाहर नज़रें गड़ा दीं। पहली बार मैं पौ फटना विमान से देख रही थी। जिसे देखकर, मुझे वैसी ही अनूभूति हुई। जैसी पहली बार पुरी में समुद्र देखने पर हुई थी। जब विंडो सीन हमेशा की तरह हो गया, तो मैंने ब्रेकफास्ट किया और फिल्म कंटीन्यू की। लैंड होने के बीस मिनट पहले मैंने आँखें बाहर गड़ा दीं। सफेद बादलों के पहाड़ों पर न जाने कौन कौन से एंगल से धूप पड़ कर उनकी सुंदरता बढ़ा रही थी। बेल्ट बांधने का निर्देश मिला कि कुछ ही देर में लैंड करने वाले हैं। मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। काफी देर तक मुझे बाहर बस ग्रे भाप सी दिखती रही, बाहर वर्षा हो रही थी, खिड़की से सब धुंधला लग रहा था और कुछ क्षण के लिये लगा कि जमीन में बहुत ऊँचे ऊँचे बाँस धंसे है। पर फिर समुद्र के सीने पर फेरियाँ तैरती नज़र आयीं। ऐसे लग रहा था, जैसे हम पानी पर लैंड कर रहे हों!! नहीं, तुरंत पहियों ने जमीन को छुआ। वहाँ के दस बज कर पाँच मिनट पर हम लैंड किये। बाहर वर्षा हो रही थी। तापमान तेइस डिग्री था। गीता को जगाया। प्लेन से बाहर आते ही हमें प्रैम मिल गई। गीता अब समझदार हो गई है, प्रैम खोलते ही, वह उस पर बैठ गई। हमने बैल्ट लगा दी और निशानों को फॉलो करते हुए चल दिये। हर नये मोड़ पर कर्मचारी खड़ा, बिना पूछे इशारे से बताता कि अब किधर जाना है। प्रैम के कारण हमें लिफ्ट का रास्ता दिखाता। अब हम एक छोटी ट्रेन पर चढ़े। जहाँ उसने हमें उतारा। वहाँ भी संकेत मिलते रहे और हम इमीग्रेशन की लाइन में लग गये। भारतीय पर्यटकों के लिये यहाँ वीसा ऑन एराइविल है। आपके पास पासर्पोट और उड़ान की टिकट होनी चाहिये। इमीग्रेशन पर बिना वीसा शुल्क के आपको वीसा दे दिया जाता है। बच्चा देख कर हमें तुरंत अलग डेस्क पर भेज दिया। यहाँ हमारा दूसरा नंबर था। क्रमशः
5 comments:
amazing article
नीलम जी आपकी यात्रा ने हमें भी हांगकांग की सैर करा दी
हार्दिक धन्यवाद
हार्दिक धन्यवाद
हार्दिक आभार
Post a Comment