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Monday 27 March 2017

ऐसा पहली बार हुआ है, राजधानी रेल में कपड़े सुखाना Rajdhani Train mein Kapdey Sukhana नीलम भागी




                                                         इस लेख को लिखने का मकसद ये है कि आप मेरे जैसी गलती न करें। नवंबर 2013 से मैं तकरीबन हर महीने यात्रा करती हूँ और लिखती हूँ। जिसमें मैंने दिल्ली से मुंबई और मुंबई से दिल्ली यात्रा को फिलहाल नहीं लिखने का सोचा है। पर इस यात्रा के एक भाग को लिखे बिना मेरा मन नहीं मान रहा है। अगस्त क्रांति राजधानी से मैं ज्यादातर सफ़र करती हूँ। नौएडा से निजामुद्दीन स्टेशन पास है, मुम्बई में यह गाड़ी दो मिनट के लिये अंधेरी रूकती है, वहाँ से लोखण्डवाला पास है। हमेशा मेरी लोअर विंडो सीट होती है। दिल्ली से मथुरा तक सीटें खाली होती हैं। मैं तकिया लगाकर  लेट जाती हूँ। मथुरा आते ही उठ कर बैठ जाती हूँ और अपनी सीट पर सिमट जाती हूँ। ऐसे ही मुंबई में अंधेरी से बोरीवली में या सूरत से गाड़ी भर जाती है। लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। इस बार मेरा सीट नम्बर 68, ए.सी.3 में था। अंधेरी में मैं अपनी सीट पर जाकर खड़ी हुई देखा, एक अत्यंत सुन्दरी, तकिया लगाये, उस पर तह किया कंबल, चादर और एक चादर ओढ़े, इयरफोन कान में ठूसे हुए लेटी थी, मोबाइल चार्ज हो रहा था, वह उस पर लगी हुई थी, देखकर ऐसा लगा जैसे वह कोई ऑफिस साथ में लेकर चल रही हो। मुझे देखकर जब वह नहीं उठी, तो लोअर विंडो सीट नम्बर 65 की बुर्जुग महिला जो सुकड़ी हुई बैठी थी क्योंकि बाकि कि दो सीटों पर सुन्दरी की बेटी लेटी थी। थोड़ी सी जगह में मैं उसके पैरों के पास बैठ गई। गोपीनाथ टाॅवल दे गया, पानी की बोतल मिली, जलपान की ट्रे, सब मैं गोदी में रख कर खाती पीती रही। इतने में टी.टी. आ गया। तो पता चला कि उनकी कुल साढ़े तीन टिकट, 66, 67 और 69 यानि तीन सीट नम्बर हैं। तीन ही रात को सोने को बर्थ मिलेंगी, जिसके पैरों पर मैं बैठी थी, वो हाफ टिकट पर थी यानि माँ की गोद। कुल तीन सुंदरियां  और एक बारह साल की बेबी थी।  उनमें से एक सुन्दरी साइड लोअर बर्थ 71 पर लेटी थी और एक सुन्दरी अपर 67 पर लेटी थी और लेपटाॅप चार्ज हो रहा था, हाफ टिकट बेबी की मां तो मेरी सीट पर पसरी ही थी। टी.टी. के जाते ही उनका वार्तालाप लेटे लेटे चालू कि सीधे जम्मू जाना है या रात दिल्ली में रूकना है, तो किसके यहाँ? डिनर तक वे किसी नतीजे पर नहीं पहुँची। डिनर के बाद सब सीट वाले अपनी सीटों पर आकर खड़े हो गये, तब सुन्दरियों ने तुरंत मिडल बर्थ खोल कर बिस्तर लगा कर, लाइट ऑफ कर दी। मेरे ऊपर की बर्थ पर माँ बेटी सो गई। सामने 66 और 67 पर दोनो सुन्दरियाँ सो गई। अचानक पानी की बौछार से मेरी नींद खुल गई। मैं घबराकर उठी कि खिड़की का शीशा कैसे टूट गया! या सुन्दरी की छटी क्लास में पढ़ने वाली बेबी ने सू सू तो नहीं कर दिया! देखा तो, ऊपर ग्रिल पर गीले कपड़े फैले हुए थे। उसमें से पानी की बूंदे टपक कर टेबल पर गिर कर आस पास बौछार कर रहीं थीं। मैं चिल्लाई,’’ ये गीले कपड़े किसने फैलाये?’’67 सीट की सुन्दरी बोली,’’आपकी प्राब्लम क्या है? और किसी को तो परेशानी नहीं है।’’ मैं बोली,’’ मुझे है, मैं इतनी यात्रा करती हूँ ,पर कभी राजधानी में धोबी घाट और कपड़े सूखते नहीं देखे। नींद खराब कर दी , कल का दिन खराब हो गया, हटाओ इसे।’’ मैंने देखा पानी की बौछार से बचने के लिए सामने 65 वाली बुजुर्ग महिला ने उठ कर अपने पैर खिड़की की ओर करके उस पर कंबल डाल लिया और सिर दूसरी ओर करके लेट गई। सुन्दरियाँ मुझसे भी यही उम्मीद कर रहीं थी। कपड़े हटा तो उन्होंने लिये, पर उन्हें टोका गया, इसकी सजा उन्होंने मुझे यात्रा खत्म होने तक दी। उन्होंने सुबह 69 बर्थ मेरे ऊपर की मिडिल बर्थ नहीं हटाई। मैंने अधलेटी ही बेड टी पी। टेढ़ी होकर नाश्ता किया। मथुरा में साइड सीट 71 खाली हुई, मैं तुरंत उस पर बैठ गई। मेरे उठते ही उन्होंने मिडिल बर्थ हटा दी। अब वे बार बार मुझे सुना कर, आपस में अरे! तुम पहली बार राजधानी में सफर कर रही हो, मैं तो रहती ही राजधानी में आदि बोलती रहीं। मेरे मोबाइल में 1% चार्जिंग थी पर दोनों प्वाइंट उन्होंने दखल कर रक्खे थे। स्टेशन से काफी पहले मैं गेट पर खड़ी हो गई। कर्मचारी गोपीनाथ ने कहा,’’मैम आपकाआखिरी स्टेशन है। अभी काफी देर हैं। आप आराम से सीट पर बैठती न’’ मैंने उन्हें कपड़े सुखाने की घटना सुनाई। वे बोले,’’ मुझे बुला लेती।’’ मैं बोली,’’मैं तो रात से पछता रहीं हूँ कि तस्वीर क्यों नहीं खींची, इस अविस्मरणीय घटना की। शायद गहरी नींद के कारण।     

Thursday 9 March 2017

हैरिटेज 1881, हारबर सिटी माल, दो माँ दो बेटियाँ हाॅन्ग कोन्ग यात्रा Hong Kong Yatra Part 6 नीलम भागी





हैरिटेज 1881, हारबर सिटी माल, दो माँ दो बेटियाँ हाॅन्ग कोन्ग यात्रा पर भाग 6
                                                          नीलम भागी
बाहर आते ही रात होने के कारण हमने अपने होटल के नज़दीक रहने का प्रोग्राम बनाया, साथ ही गर्म कपड़े खरीदने का भी। नवम्बर जा रहा था, यहाँ सर्दी बहुत कम पड़ती है लेकिन लोगों ने स्मार्ट गर्म कपड़ों से सर्दी के खिलाफ़ पूरी मोर्चाबंदी कर रक्खी थी। दो ट्रेन बदल कर हम स्टेशन से बाहर नक्शा देखते हुए हैरिटेज़ 1881 पहुँचे। सफेद और नीले ,सिल्वर और हरे रंग से बच्चों की पसंद की सजावट देखतेे बनती थी, वैसा ही म्यूजि़क बज रहा था। बच्चों की आँखों में चमक देखने लायक थी। देख कर ऐसा लगता था कि अभी अभी सजाया गया है पर ऐसा नहीं था। वहाँ लिखा था छुएं नहीं, फोटो और विडियोग्राफी कर  सकते हैं। मैंने गीता से कहा,’’अगर छुओगी तो ये भगा देंगे।’’ और दुनिया के लोगो ने अपने बच्चों को न जाने कैसे समझाया होगा ! पता नहीं, बच्चे नाच रहे थे, ऊपर जा रहे थे, नीचे उतर रहे थे पर कुछ भी छू नहीं रहे थे। परिवार के लोग बच्चों के उस समय की खुशी को कैमरे में कैद कर रहे थे। जमीन पर भी नक्शा खुदा था। बैठने की कोई जगह नहीं थी। बच्चे तो थक ही नहीं रहे थे। क्रिसमस और नया साल आने वाला था। जगह जगह सजावटें शुरू हो चुकी थी। जैसे ही हमने प्रैम खोली गीता उस पर बैठ गई। हम चल पड़े हारबर माॅल की ओर, यहाँ गोल्डन और सफेद सजावट मन मोह रही थी। घूमने से गीता शायद ज्यादा समझदार हो गई, यहाँ भी नाचती कूदती फिर रही थी पर हमारी आँखों से दूर नहीं हो रही थी। अब हम माॅल में गये, दुनिया के नामी ब्राण्ड के यहाँ लगभग सभी शो रूम थे। देर बहुत हो गई थी इसलिये आधे से ज्यादा बंद हो चुके थे। ज्यादातर शो रूम टू साइड ओपन थे, जो उस समय कांच के दरवाजों से बंद थे। यहाँ बहुत भीड़ थी। हांगकांग में नकली उत्पादों की बिक्री के प्रति कड़े कानून हैं। नकली उत्पादों की बिक्री करने वालों की दुकाने बंद कर दी जाती हैं। यहाँ अल्कोहल और तम्बाकू को छोड़ कर सभी सामान टैक्स फ्री है। इसलिये इसको विश्व के सबसे ज्यादा पंसद किए जाने वाले शापिंग डेस्टिनेशन में माना जाता है। ज्यादातर दुकाने क्रेडिट कार्ड स्वीकार करती हैं। यहाँ साल में दो बार एक तरह का शाॅपिंग फैस्टिवल चलता है। सर्दियों में दिसम्बर से फरवरी के बीच और गर्मियों में जुलाई से सितम्बर के बीच। हांगकांग टूरिज्म बोर्ड ऐसे विक्रेताओं को सम्मानित करता है, जो पर्यटकों को डिस्काउंट के साथ अच्छी क्वालिटी का सामान भी उपलब्ध कराते हैं। ये विशेषता, साइट सीन और सुरक्षित माहौल पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ आपके बजट और टेस्ट के अनुसार हर तरह के माॅल हैं। घूमते हुए हमें एक बहुत बड़ा प्ले स्टेशन दिखा, यहाँ राइड और खेलने के पैसे थे। लेकिन उन पर बैठने और देखने के कोई पैसा नहीं। गीता पैसा, टिकट और निशाना लगाना, गाडियाँ चलाना कुछ नहीं भी जानती इसलिये वह तरह तरह की जानवरों की शक्ल की गाडि़यों पर ही बैठ कर बहुत खुश थी। मैं एक कुर्सी पर बैठ कर उसकी खुशी देखती रही। उत्तकर्षिनी से मैंने कहा कि वह शाॅपिंग कर आये, गीता तो यहाँ से जायेगी नहीं। वह भी घूम कर, थक कर आ कर बैठ गई। उसके बाद मैं भी घूम आई। मैं भी बुरी तरह से थक कर लौट आई पर गीता नहीं थकी। बड़ी मुश्किल से उसे लेकर आये।
   उत्तकर्षिनी टैक्सी के लिये जि़द करने लगी पर मैं नहीं मानी क्योंकि मैं हांग कांग से अच्छी तरह परिचित होना चाहती थी। वो सोचती थी कि माँ थक गई होंगी। लेकिन मेरा मानना है कि गाड़ी से गुजरने में और पैदल चलने में फर्क होता है। इसलिये हम पैदल चल दिये। चलते हुए हमें M.&H. Store मिल गया और हमने शाॅपिंग करनी शुरू कर दी। रात एक बजने को था, हम होटल की ओर चल पड़े। रास्ते भर देखते रहे कि जो रैस्टोरैंट मिलेगा, वहाँ से खाना पैक करवा लेंगे। एक रैस्टोरैंट देखते ही उत्तकर्षिनी बोली,’’माँ, आप गीता के साथ बाहर खड़ी हो जाओ, मैं आपके लिये अपने सामने कुछ वैज़ बनवा लेती हूँ।’’ नई जगह में मुझे वैसे भी सड़क किनारे खड़े रहना बहुत पसंद है। ज्यादातर वहाँ से गुजरने वाले गीता को बुला कर जाते। उत्तकर्षिनी ने आकर कहा,’’माँ, थोड़ा समय लगेगा। होटल यहाँ से पास ही है। आप गीता को लेकर चली जाओ।’’ रात एक बजे विदेश में ढाई साल की गीता को लेकर मैं होटल की ओर पैदल चल पड़ी। क्रमशः  



Tuesday 7 March 2017

मैजेस्टिक ब्राँज बुद्धा और मोनैस्टी हाँग काँग की यात्रा पर दो माँ,दो बेटियाँ Hong Kong Yatra Part 5 नीलम भागी नीलम भागी


25 मिनट की अविस्मरणी यात्रा कर केबल कार से बाहर आते ही गीता जाग गई। जगते ही उसने कार्डिगन प्रैम से फेंक दिया, मैंने उठा कर पहन लिया। हम यहाँ का चप्पा चप्पा घूमने लगे। ठंड थी मैंने गीता पर फिर से कार्डिगन लपेट दिया, इस बार उसने नहीं उतारा। सबसे पहले मैंने जिंजर ब्राउन शुगर(साधारण चीनी को बिना पानी के तब तक गर्म करते हैं जब तक उसका रंग चाकलेट जैसा न हो जाये) टी ली। ये चाय ठंड में गर्म गर्म बहुत अच्छी लग रही थी। गीता को दूर से बिग बुद्धा दिखाये, वो बहुत खुश हुई। हम प्रतिमा की ओर चल पड़े। इस पूरे एरिया में धूम्रपान वर्जित है। शायद लोगो की श्रद्धा के कारण यहाँ के माहौल में अद्भुत शांति थी। विश्व में खुले मैदान में बुद्ध की कांस्य प्रतिमा की ऊँचाई 23 मीटर और कमलासन व केन्द्र को जोड़ कर कुल ऊँचाई करीब 34 मीटर और वजन करीब 250 टन है। बुद्ध के मुख पर करीब 2 किग्रा सोना जड़ा है। यह मूर्ति चीन के यवनकांग, लुगमन व थांग राजवंश की मूर्तियों की तकनीको के आधार पर बनाई गई है। मूयवू पर्वत की तलहटी से थ्येनथेन बुद्ध की प्रतिमा तक जाने के लिये 260 पत्थरों की सीढि़याँ हैं। सबसे हैरान किया पूजा करने के तरीके ने, लाइनों में हवन कुण्ड की तरह आयताकार बड़े बड़े बर्तन लगे थे। गुच्छों में अगरबत्तियाँ श्रद्धालु खरीद कर, हमारे देश की तरह दूर से दिखने वाली बुद्ध की प्रतिमा की ओर मुहँ करके जलाकर प्रार्थना कर रहे थे। अगरबत्ती की राख उन बर्तनों में गिर रही थी। मैंने भी 260 सीढि़याँ चढ़ीं, बुद्ध के दर्शन किये.लोग बुद्ध को देख रहे थे और मैं दुनियाभर से आए पर्यटकों के चेहरे से टपकती हुई श्रद्धा देख रही थी.अब मुझे अपने पर गर्व होने लगा क्यूंकि "मेरा देश हिन्दुस्तान, जहां जन्मे बुद्ध महान". सम्राट अशोक के समय बोद्ध धर्म का प्रचार और प्रसार साउथ ईस्ट एशिया से मंगोलिया तक फैला उनके पुत्र महेंद्र और पुत्री संघ मित्रा ने धर्म के प्रचार के लिए यात्राएं की उस समय समुद्री यात्रा आसान नहीं थी कई बोद्ध भिक्षुक रास्ते में समुद्र में ही डूब गये आज यहाँ बुद्ध धर्म का प्रसार ही नहीं तथागत की मूर्तिया भी मन को मोहती हैं  लेकिन मैंने पूजा, पूजा के स्थान पर ही नीचे आकर की। पो लिन मोनैस्ट्री में वेजीटेरियन लंच मिलता है। जो हमारे जाने पर खत्म हो चुका था। हमने वहाँ स्नैक्स, मिठाइयाँ  और चाय ली। इस सब को खाकर मैंने उत्तकर्षिनी को दावे से कहा,’’दुनिया चाहे चाँद पर जाये या मंगल ग्रह, पर मेरे देश की प्रतिभाओं ने ऐसी ऐसी मिठाइयाँ और नमकीन इज़ाद किये हैं। जो मुझे नहीं लगता कहीं और हों।’’सुनते ही वो ही ही ही कर हंसने लगी। अब हम वापिस जाने की लाइन में लग गये। जितनी देर लाइन खुले में रही, बारी बारी से मैं और उत्तकर्षिनी गीता को लेकर शेड में चले जाते। जिनके साथ बच्चे थे, वे भी ऐसा ही कर रहे थे। गीता भी प्रैम से उतर कर बच्चों के साथ खूब खेल रही थी। बीच में चाय काॅफी पी आते और लाइन में लग जाते। शेड में आते ही लाइन को खूब मोड़ दिया जिससे सर्दी से कुछ राहत मिली। अब गीता चुपचाप आकर प्रैम में बैठ गई। रात हो गई थी। केबल कार लौटने में खाली आ रही थीशायद इसलिये अब हमारा ढाई घण्टे में नम्बर आ गया। एक बात मुझे यहाँ बहुत पसंद आई, वो ये कि केबल कार में बिठाते समय परिवार को अलग नहीं करते थे। हम बैठे, बहुत ठंड, हमने गीता को भी गोद में ले लिया तीनों माँ बेटियाँ चिपक कर बैठ गई। ऊपर से पतला कार्डिगन डाल लिया। गीता ने तो जैकेट पहन रक्खी थी, उसको चिपटा रखा था। गीता समझी कि वो गिर न जाये इसलिये उसे कस कर चिपटा रखा है। एक कार्डिगन में तीनों को ढकना था। अंधेरा, ठंडी हवा की तेज आवाज़ में डरे सहमे थे, पर गीता बोले जा रही थी, ’’ये टूटी हो जायेगी न, हम गिर जायेंगे न, हमें चोट लग जायेगी न।’’ ये तो अच्छा हुआ हमारे साथ जो लोग बैठे थे, वो हिन्दी नहीं समझते थे। गीता का हम गिर जायेंगे का जाप चालू था। अब हमें नीचे रोशनी दिखने लगी। विस्मय विमुग्ध करने वाले नज़ारों ने तो ठंड को भी भूला दिया। हम जगमगाती रोशनी में पानी में चलती रोशनी से जगमगाते फेरी, क्रूज़ एअरपोर्ट और गगनचुंबी इमारतें देख हैरान हो रहे थे। यहाँ समुद्र देखते ही गीता के जाप के शब्द बदल गये थे,’’ अब हम पानी में गिर जायेंगे न, फिर स्वीमिंग करेंगे न।’’25 मिनट के रास्ते में अंधेरा पहाड़ी जंगल बीत नहीं रहा था और ये जल्दी बीत गया। केबल कार से उतरते ही गीता ने ताली बजा बजा कर गाया, जिसके बोल थे,’’ हम नहीं गिरे न, हम नहीं गिरे न।’’ उसे खुश देख कर भाषा न समझने वाले भी सब बहुत खुश हुए। क्रमशः 











Saturday 4 March 2017

हाँग काँग की यात्रा पर दो माँ, दो बेटियाँ Hong Kong Yatra Part 4 नीलम भागी डिज़नी लैंड, नाँग पिंग केबल कार, लनटाउ एडवेंचर, मैजेस्टिक ब्राँज बुद्धा और मोनैस्टी नाश्ते के लिये मैं गई तो सिवाय मेरे सब लोग तैयार होकर आये थे। ज्यादातर लोग पूरे परिवार के साथ यानि बच्चों के साथ बुर्जुग भी थे। बुफे में बहुत वैराइटी थी। ब्लू चीज़ और फल लेकर मैं व्यंजनों को पढ़ने लगी। इतने में गीता और उत्तकर्षिनी भी आ गईं। नाश्ता करते हुए आज के घूमने का कार्यक्रम बना लिया। हर जगह के लिये टूरिस्ट बसों के पैकेज थे। तीन साल तक के बच्चे का बस, ट्रेन में कोई शुल्क नहीं था। लेकिन हम ढाई साल की गीता की सुविधानुसार प्रोग्राम बनाते थे, जहाँ गीता को ज्यादा अच्छा लगा वहाँ थोड़ा रूक गये। हांग कांग का डिज्नीलैंड विश्व का सबसे छोटा और सातवां डिज्नीलैंड है। डिज्नीलैंड में डिज्नी के र्काटून पात्र मिक्की माउस, विनी द पूह, हवा मूलेन, सिंड्रेला और स्लीपिंग ब्यूटी और राइडस भी देखे। यहाँ पर काम करने वालो ने जैसे मिकी माउस जैसी लाल काली टोपी लगा रक्खी थी। यहाँ बच्चों के चेहरे की खुशी देख कर वहाँ का माहौल ही खुशनुमा था पर गीता तो सो गई। हमने बिग बुद्धा जाने के लिये टेªन पकड़ ली। टेªन मंे गीता जाग गई और प्रैम से उसे आजाद कर दिया। वहाँ हर उम्र के नागरिक तो मोबाइल में खोए हुए थे। विदेशियों की नज़रें खिड़की से नहीं हट रहीं थी। प्राकृतिक सौन्दर्य को मेहनती इनसानों ने इस कदर निखार दिया है कि आज चीन में हर वर्ष तीन करोड़ विदेशी पर्यटक जाते हैं। कहीं पढ़ा था कि जगह की कमी के कारण यहाँ कब्रिस्तान भी सीढ़ीनुमा है। टेªन में बैठे हुए देख भी लिया। स्टेशन ऐसे जैसे किसी माॅल में खड़े हों। टेªन से उतरते ही अपने लिये कुछ स्नैक्स लिये और एस्केलेटर से ऊपर जाकर लाइन में लग गये। हर जगह फ्री वाई फाई है। पासवर्ड लिखा रहता है। सभ्य लोग हैं। अधिकतर लाइन में ही मोबाइल में लगे हुए चल रहे थे। चारजिंग की सुविधा नहीं थी। लाइन में इतने घुमाव थे कि दूर से देखने में भीड़ लगती थी पर सब लाइन में ही चल रहे थे। सीनियर सीटीज़न भी खूबसूरत स्टिक की सहायता से या व्हिीलचेयर पर लाइन में चल रहे थे। लाइन में गीता बहुत मस्त थी, जो भी इसके सामने आता इसे बुलाता। थोड़े बड़े बच्चे तो प्रैम के साथ चलते हुए बतिया रहे थे। न गीता उनकी भाषा समझ रही थी न वे गीता की, पर बातें चल रहीं थी। हल्की धुंध थी। धूप नहीं थी मौसम ज्यादा खराब होने पर केबल कार बंद कर दी जाती है। इस ट्रिप में बस तस्वीरें ज्यादा क्लीयर नहीं आईं हैं। ठंड थी। मैंने पतला सा फैशनेबल स्वेटर पहन रक्खा था। उत्तकर्षिनी ले कर गई थी जो उसने मुझे पहना दिया था। मैं कोई भी गर्म कपड़ा लेकर ही नहीं गई थी, कपड़े भी सूती गर्मी में पहनने वाले। तीन घण्टे में हमारा केबल कार में नंबर आया और उसी समय गीता सो गई । बैठते ही हमारा लंटाउ एडवेंचर शुरू हो गया। नाॅगांग पिंग 360! केबल कार में बैठे हुए आकाश से 5.7 किमी. यात्रा में हांग कांग की गगनचंुबी इमारतें, हवाईजहाज की शेप का एयरर्पोट, समुद्र और लंटाउ की हरी भरी वादियाँ, सब कुछ विस्मय विमुग्ध कर रहा था। ठंड देख मैंने अपना कार्डिगन भी गीता पर लपेट दिया। ऊँचाई इतनी कि बंदरगाह, खाड़ी, समुद्री दृश्य सबका आनन्द उठा रहे थे। मैं और उत्तकर्षिनी आमने सामने बैठे थे, बीच में प्रैम में गीता सो रही थी। बाकि छ लोग पता नहीं कौन से देश से थे। समुद्र, इमारते निकल गई तो उत्तकर्षिनी अपने सामने यानि मेरे पीछे देख रही थी। अचानक मेरे दिमाग में खुराफात आई कि देखूँ मेरे पीछे क्या है। देखा घने जंगलों से भरा एक पहाड़ जिसकी चोटी नहीं दिखाई दे रही थी। मुझे लगा ये पहाड़ से टकरायेगी। पर लौटने वाली ट्रालियाँ देख कर हिम्मत आती। दूर से बुद्धा नजर आने लगे। नीचे जंगल में बुद्धा तक जाने के लिये पक्की बनाई हुई पगडंडी दिखाई दे रही थी। अब दूर से हमें आबादी दिखाई देने लगी। कुछ ही देर में हम नगोंग पिंग विलेज पहुँच गये।

हाँग काँग की यात्रा पर दो माँ, दो बेटियाँ              भाग 4  नीलम भागी
 डिज़नी लैंड, नाँग पिंग केबल कार, लनटाउ एडवेंचर





नाश्ते के लिये मैं गई तो सिवाय मेरे सब लोग तैयार होकर आये थे। ज्यादातर लोग पूरे परिवार के साथ यानि बच्चों के साथ बुर्जुग भी थे। बुफे में बहुत वैराइटी थी। ब्लू चीज़ और फल लेकर मैं व्यंजनों को पढ़ने लगी। इतने में गीता और उत्तकर्षिनी भी आ गईं। नाश्ता करते हुए आज के घूमने का कार्यक्रम बना लिया। हर जगह के लिये टूरिस्ट बसों के पैकेज थे। तीन साल तक के बच्चे का बस, ट्रेन में कोई शुल्क नहीं था। लेकिन हम ढाई साल की गीता की सुविधानुसार प्रोग्राम बनाते थे, जहाँ गीता को ज्यादा अच्छा लगा वहाँ थोड़ा रूक गये।
हांग कांग का डिज्नीलैंड विश्व का सबसे छोटा और सातवां डिज्नीलैंड है। डिज्नीलैंड में डिज्नी के र्काटून पात्र मिक्की माउस, विनी द पूह, हवा मूलेन, सिंड्रेला और स्लीपिंग ब्यूटी और राइडस भी देखे। यहाँ पर काम करने वालो ने जैसे मिकी माउस जैसी लाल काली टोपी लगा रखी थी। यहाँ बच्चों के चेहरे की खुशी देख कर, वहाँ का माहौल ही खुशनुमा था पर गीता तो सो गई।अब हमने बिग बुद्धा जाने के लिये ट्रेन पकड़ ली। ट्रेन में गीता जाग गई और हमने प्रैम से उसे आजाद कर दिया। वहाँ हर उम्र के नागरिक तो मोबाइल में खोए हुए थे। विदेशियों की नज़रें खिड़की से नहीं हट रहीं थी। प्राकृतिक सौन्दर्य को मेहनती इनसानों ने इस कदर निखार दिया है कि आज चीन में हर वर्ष तीन करोड़ विदेशी पर्यटक जाते हैं। कहीं पढ़ा था कि जगह की कमी के कारण यहाँ कब्रिस्तान भी सीढ़ीनुमा है। ट्रेन में बैठे हुए देख भी लिया। स्टेशन ऐसे जैसे किसी माॅल में खड़े हों। ट्रेन से उतरते ही अपने लिये कुछ स्नैक्स लिये और एस्केलेटर से ऊपर जाकर लाइन में लग गये। हर जगह फ्री वाई फाई है। पासवर्ड लिखा रहता है। सभ्य लोग हैं। अधिकतर लाइन में ही मोबाइल में लगे हुए चल रहे थे। चारजिंग की सुविधा नहीं थी। लाइन में इतने घुमाव थे कि दूर से देखने में भीड़ लगती थी पर सब लाइन में ही चल रहे थे। सीनियर सीटीज़न भी खूबसूरत स्टिक की सहायता से या से व्हील चेयर पर लाइन में चल रहे थे। लाइन में गीता बहुत मस्त थी, जो भी इसके सामने आता इसे बुलाता। थोड़े बड़े बच्चे तो प्रैम के साथ चलते हुए बतिया रहे थे। न गीता उनकी भाषा समझ रही थी न वे गीता की, पर बातें चल रहीं थी। हल्की धुंध थी। धूप नहीं थी मौसम ज्यादा खराब होने पर केबल कार बंद कर दी जाती है। इस ट्रिप में बस तस्वीरें ज्यादा क्लीयर नहीं आईं हैं। ठंड थी। मैंने पतला सा फैशनेबल स्वेटर पहन रखा था। इसे उत्तकर्षिनी ले कर गई थी, जो उसने मुझे पहना दिया था। मैं कोई भी गर्म कपड़ा लेकर ही नहीं गई थी, कपड़े भी सूती गर्मी में पहनने वाले। तीन घण्टे में हमारा केबल कार में नंबर आया और उसी समय गीता सो गई । बैठते ही हमारा लंटाउ एडवेंचर शुरू हो गया।
 नाॅगांग पिंग 360! केबल कार में बैठे हुए आकाश से 5.7 किमी. यात्रा में हांग कांग की गगनचुंबी इमारतें, हवाईजहाज की शेप का एयरर्पोट, समुद्र और लंटाउ की हरी भरी वादियाँ, सब कुछ विस्मय विमुग्ध कर रहा था। ठंड देख मैंने अपना कार्डिगन भी गीता पर लपेट दिया। ऊँचाई इतनी कि बंदरगाह, खाड़ी, समुद्री दृश्य सबका आनन्द उठा रहे थे। मैं और उत्तकर्षिनी आमने सामने बैठे थे, बीच में प्रैम में गीता सो रही थी। बाकि छ लोग पता नहीं कौन से देश से थे। समुद्र, इमारते निकल गई तो उत्तकर्षिनी अपने सामने यानि मेरे पीछे देख रही थी। अचानक मेरे दिमाग में खुराफात आई कि देखूँ, मेरे पीछे क्या है? देखा घने जंगलों से भरा एक पहाड़ जिसकी चोटी नहीं दिखाई दे रही थी। मुझे लगा ये पहाड़ से टकरायेगी। पर लौटने वाली ट्रालियाँ देख कर हिम्मत आती। दूर से बुद्धा नजर आने लगे। नीचे जंगल में बुद्धा तक जाने के लिये पक्की बनाई हुई पगडंडी दिखाई दे रही थी। अब दूर से हमें आबादी दिखाई देने लगी। कुछ ही देर में हम नगोंग पिंग विलेज पहुँच गये।    क्रमशः             

Wednesday 1 March 2017

यमुना से यूनी तक का सफ़र, देसी पर विदेशी ठप्पा Yamuna se Yune Neelam Bhagi नीलम भागी

बहुमत मध्य प्रदेश एवम छत्तीसगढ़ से एक साथ प्रकाशित समाचार पत्र में ,  केशव संवाद और ओम विश्रांति पत्रिका में यह लेख प्रकाशित है

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यमुना से यूनी तक का सफ़र
                                                                                                                                नीलम भागी
                                         ’कटिंग करवा कर आई हो या आपके बाल चूहे ने कुतरे हैं।मुंबई एयरपोर्ट पर देखते ही उत्कर्शिणी ने मुझ पर प्रशन दागा और बड़े प्रेम से गले लगाया। सुनते ही मैं असहज सी हो गई। पर बाहर आने से पहले मैंने तो बालों में अच्छी तरह ब्रश भी किया था। कटिंग भी मैंने दिल्ली के नामी ब्यूटीपार्लर से करवाई थी। सभी को मेरी कटिंग बहुत पसंद आई थी पर ये कमंट! फिर मुझे याद आया उत्कर्शिणी को खाना तो देसी पसंद हैं पर हर विदेशी चीज में उसे गुण ही गुण नज़र आते हैं। मैंने सब्र किया कि इसकी तो आदत है। दो दिन बीते वो बोली,’’आप तैयार रहना, आपकी कटिंग यहाँ के मशहूर पार्लर से करवानी है। वहाँ चाइनीज़ लड़की कटिंग करती है। आपकी शक्ल बदल देगी। मैंने मन में सोचा इतने प्यार से करवा रही है, तो करवा लेती हूँ। एप्वाइमैंट लेकर हम दोनो चल दीं। रास्ते भर वह अपनी हेयर कटर यूनी की तारीफ़ करती रही।
   मैं कटिंग चेयर पर बैठी ही थी कि सफेद एप्रैन पहने यूनी आई। मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया। मेरे बालों की तारीफ करते हुए बोली,’’ आपके ऊपर ये कटिंग बहुत जच रही है। मेरे मना करने पर भी, तुरंत उसने नाशते का आर्डर दिया। वह लगातार अपनी समृद्धि का बखान कर रही थी और मैं उसके आत्मविशवास से भरे व्यक्तित्व को निहार रही थी। उसे देख कर मुझे इतनी खुशी हो रही थी कि मेरी औकात नहीं है कि मैं उसे शब्दों में बयान कर सकूं। उसने मुझे अपने घर पर भी आमंत्रित किया। जो मैंने उसकी व्यस्तता देख कर, समय की कमी बताकर टाल दिया। उत्कर्शिणी यूनी की धाराप्रवाह हिन्दी सुन कर हैरान थी। मैंने भी इस बातचीत में यूनी को एक बार भी उसके यमुना नाम से नहीं पुकारा। कटिंग तो यूनी ने पास कर दी, इसलिये करवाई नहीं गई। उसकी तरक्की की खुशी लेकर उससे विदाई ली।
   बाहर निकलते ही उत्कर्शिणी ने पूछा,’’आप यूनी को कैसे जानती हो?’’मैं बोली,’’घर चल कर इत्मीनान से बताऊँगी।’’लंच बाहर से करके घर पहुँचते ही वह यूनी के बारे में जानने की जिज्ञासा में मेरे सामने बैठ गई। मैंने बताया कि यूनी का नाम यमुना है। यह सिंगापुर में श्वेता के घर में मेड थी। मैं सिंगापुर गई तो देखा, इसने बहुत अच्छे से उसका घर संभाल रक्खा था। श्वेता और अंकूर दोनों सुबह आठ बजे निकल जाते, शाम को सात आठ बजे तक लौटते। यमुना उनकी बच्ची ग्यारह महीने की रेया को बड़े प्यार से रखती, उसके सोने पर घर के काम निपटाती। शनिवार इतवार यमुना को फुरसत रहती। रेया अपने मम्मी पापा के पास रहती और ज्यादातर वे  घूमने चले जाते हैं। कांट्रैक्ट के मुताबिक यमुना को महीने में दो संडे आॅफ मिलता था। यदि वह आॅफ नहीं लेती तो उसे एक संडे का बीस डाॅलर मिलता। यमुना मेरा बहुत ध्यान रखती। मैंने अपना समय इण्डियन ही रक्खा था। समय में ढाई घण्टे का र्फक था। अपनी आदत के अनुसार मैं रात बारह बजे सोती, सुबह सात बजे उठती। तब तक श्वेता अंकूर आॅफिस जा चुके होते थे। यमुना मेरी नींद खराब न हो, इसलिये रेया को मेरे कमरे से भी दूर रखती। मेरे खाने पीने का मेरी माँ की तरह ध्यान रखती। अक्सर वह काम करते समय एक गीत गाती जिसके बोल इस प्रकार हैंः
   चल गोरी ले जा बु तोके(मुझे) मोर गाँव, बाबा को बताइ दो, दादा को बताइ दो,
   के ले जा बु तो के, मोर गाँव, पहाड़ किनारे मोर गाँव, वो गोरी
   हरे हरे चाय के बगान......
उसके लोकगीतों में चाय के बागान और पहाड़ जरुर होते थे। पर इस घर की हर खिड़की से समुद्र और उसमें शिप नज़र आते थे। शाम को रेया को प्रैम में बिठा कर, हम ईस्ट काॅस्ट पार्क में समुद्र किनारे बनी बैंच पर आकर बैठ जाते। वो मुझसे दार्जिलिंग में रह रहे अपने घर परिवार की बातें करती। छ बहनों में वह चौथे नम्बर की है। वही विदेश में कमा रही है। अब उसकी छोटी बहन की शादी है। वह तो घर में काम करती है, वहीं रहती है, इसलिए उसका तो कोई खर्च नहीं है। पाँच सौ डाॅलर वह हर महीने अपने घर भेज देती है। सबकी शादी के बाद वो अपनी शादी करेगी। मैं यमुना के बारे में सोचती कि अब यह पिता की जिम्मेवारी निपटाने के लिए विदेश में खट रही है। शादी के बाद इसका पति भी तो इसे इसके परिवार के सहयोग के लिए विदेश  भेज सकता है। तब यह अपने पति बच्चों से भी दूर हो जायेगी।
  अक्सर समुद्र किनारे, यमुना से कोई चाईनीज़ आकर चीनी में कुछ पूछने लगता। यमुना उसे इशारों और बहुत कम शब्दों में, बड़ी मेहनत से जवाब देती। बाद में हंसते हुए मुझसे पूछती,’’क्या मैं चीनी लगती हँू? क्योंकि चीनी मुझसे चीनी में बात करते हैं।’’मैंने भी उसे मजाक में कहाकि तूँ ब्यूटीपार्लर का कोर्स कर ले, सब तुझे चाइना की ब्यूटिशयन समझेंगे। बात आई गई हो गई। पर इस बार जब वो अपने सण्डे आॅफ से लौटी तो सीधे मेरे रुम में आई। उसने मुझे बताया कि आज वो ब्यूटीपार्लर गई थी। मैं उसका मुहँ देखने लगी और मेरे मन में प्रशन उठने लगे कि ये तो पारिवारिक जिम्मेवारियों के कारण अपने कोई शौक़ ही नहीं रखती आज कैसे ये पार्लर चल दी। मेरा सस्पैंस खत्म करते हुए बोली कि उसे मेरी चाइनीज़ ब्यूटीशियन वाली बात भा गई। इसलिए इस आॅफ पर वह हेयर कटिंग का कोर्स करने के लिए कई पार्लरस में गई। उसने अपनी परिस्थिति कई जगह बताई और एक जगह बात बन गई। अब वह शनिवार इतवार को वह छ घंटे के लिए हेयर कटिंग सीखने जाना चाहती थी, अगर मैम परमीशन दे तो! फिर विनती करते हुए बोली,’’मैं कोई आॅफ नहीं लूँगी। सुबह काम करके जाऊँगी और आकर करुँगी। रेया तो छुट्टी में वैसे ही अपने मम्मी पापा के साथ ही रहती है। मैं सब मैनेज़ कर लूँगी।’’ कुछ देर चुप रहने के बाद बोली,’’ मैं अपनी शादी के लिए पैसा नहीं जोड़ूगी, पैसा जोड़ूँगी सिर्फ, इण्डिया जाकर अपना ब्यूटीपार्लर खोलने के लिए’’। मैंने उसे कहा कि अब वह अपने कमरे में जाकर आराम करे। मैं इस बारे में श्वेता से बात करुँगी। वह चली गई। अब मेरा टी. वी. देखने में मन नहीं लग रहा था। सिंगापुंर के ग्यारह बजे वह मेरे पास से गई ,जबकि मुझे तो इण्डिया के बारह बजे तक जागने की आदत थी। मैं टी.वी बंद कर अपने कमरे में आ गई और लाइट आॅफ कर लेट गई। सामने खिड़की से रात में काले समुद्र में गोल घेरे में शिप्स की लाइटें चमकती दिख रहीं थीं। जो मुझे बहुत अच्छी लगती थीं। पर आज मैं यमुना के बारे में ही सोचने लगी। रेया के जन्म से पहले से वह इस घर में है। रात नौ बजे से सुबह छ बजे तक, उसकी डयूटी आफ रहती है। उस समय वह अपने कमरे में रहती थी। जिस संडे यमुना का आॅफ होता, शनिवार रात को अपने कमरे में जाने से पहले वह कोई काम नहीं छोड़ती, एक चम्मच तक रसोई में जूठा नहीं होता। ऐसे ही उस संडे रात को श्वेता अंकूर उसके लिए कोई काम नहीं छोड़ते। मतलब जैसा वह घर देती, वैसा ही वह उसे लौटाते हैं। मैं तो तीन महीने के लिए घूमने आई थी। अभी तो मुझे आए हुए कुल पंद्रह दिन ही हुए थे। श्वेता अंकुर रात दस बजे सो जाते क्योंकि सुबह उन्हे जल्दी उठना होता है। सब कुछ कांट्रैक्ट के अनुसार ही चल रहा था। ये तो उसके कांटैक्ट में नहीं था। रेया पाँच दिन मम्मी पापा से अलग रहती है इसलिए वीकएंड पर वे सारा समय उसके साथ बिताते हैं। श्वेता की छोटी बच्ची के साथ गृहस्ती और नौकरी यमुना के कारण चल रही है। यमुना में भी मेड बनने के सिवाय कोई प्रशिक्षण नहीं है। कारण चाहे कुछ भी रहा हो। अब इसके मन में उमंग जगी है तो, हमें उसकी मदद करनी चाहिए। मैंने निष्चय कर लिया कि श्वेता कल आॅफिस से लौटेगी तो उसे यमुना को कोर्स करने भेजने के लिए राजी करना है।
    जब मैंने सिंगापुर एयरपोर्ट पर श्वेता को देखा तो वह पहले से मोटी हो गई थी। घर तो यमुना ने संभाल रक्खा था। मैंने वेट गेन पर टोका, तो उसने कहा आप मुझे टोक टोक कर सुधारना। अब वीकएंड पर वह स्वीमिंग करती थी। डिनर के बाद हम दोनों वाॅक पर निकल जाते। आज वाॅक पर मैंने जैसे ही यमुना की हेयरकटिंग सीखने की बात की तो सुनते ही वो खुश होकर बोली,’’यमुना बहुत अच्छी लड़की है। इसने रेया को बहुत प्यार से रक्खा है। मैं तो कंसल्टैंट हूँ। मेरी कंपनी जिस भी देश में उसकी ब्रांच है। वहाँ मुझे भेजती है। रेया इसके पास बड़े मजे से रुक जाती है। घरवालों ने इसे पढ़ाया नहीं, पर है बड़ी इंटैलिजैंट लड़की। मैटरनिटी लीव के समय मैंने इसे इंटरनैट सिखाया, फटाफट सीख गई। अब घर का सामान सब मेल से आॅडर करती है। कोई वेस्टेज़ नहीं। घर आते ही श्वेता ने यमुना से कहाकि मन लगा कर कटिंग सीखना। वीकएंड पर लंच हम बनाएंगे और तुम्हारे लिए रख देंगे। जब  कटिंग में परफैक्ट हो जाओगी। तब तक रेया भी प्ले स्कूल में जाने लायक हो जायेगी। इनाम में हम तुम्हें इण्डिया का टिकट देंगे। बैस्ट हेयरड्रैसर बनना। अगर कुछ कमीं रह जाएगी तो इण्डिया में चाइना की हेयरड्रैसर क्या किसी इण्डियन से सीखेगी? यमुना बस यस मैम, यस मैम करती जा रही थी। यमुना ने मुझे बताया कि जहाँ वो सीखने जा रही है, वो चाइनीज़ का ब्यूटीपार्लर है।
  पहले दिन जब वह पार्लर से लौटी तो उसने बताया इतने लंबे नाम की जगह उन्होंने मुझे यूनी कहना शुरु कर दिया। मैंने भी कहा,’’यूनी पहले तूँ कुछ खा ले।’’ वो हंसती हुई किचन में चली गई। उसके जाने से हमें कोई परेशानी नहीं हुई। वह लंच की पूरी तैयारी करके जाती थी। छोटी डिब्बियों में लहसून, अदरक, प्याज, हरीमिर्च, टमाटर कटे होते, सब्जी धो कर, काट कर रक्खी होती। दाल धोकर भिगोई होती। आटा गूंध कर, रायता बना कर फ्रिज में रख जाती। अक्सर उसकी लंच की तैयारीडिनर में काम आती क्योंकि वे मुझे घुमाने जाते और हर बार अलग देश के रैस्टोरैंट में वहाँ का टैªडीशनल खाना खिलाकर लाते। इसी तरह तीन महीने बीत गये। मेरे लौटने पर उसके आँसू नहीं थम रहे थे। मैंने उसे कहाकि मैं इण्डिया में तुझसे ही कटिंग करवाऊँगी। वो बोली,’’सच।’’श्वेता से फोन पर मैं उसके बारे में जरुर पूछती। सब ठीक चल रहा था। रेया प्ले स्कूल जाने लगी। अब सुबह शाम डोमैस्टिक हैलपर आती। यूनी को उसकी इच्छा से दार्जिलिंग भेज दिया गया। मैं भी ये सब भूल गई। मुंबई में तो मैं उसकी कल्पना भी नहीं कर सकती थी। अब मैं जल्दी से श्वेता को यूनी के बारे में बताने के लिए उतावली हो रही थी। और अब यूनी के मुहँ से उसके यहाँ तक के सफ़र को जानने की इच्छा हो रही है। उसकी व्यस्तता के कारण समय लेने में संकोच हो रहा है, पर समय लूंगी और आपके साथ शेयर करूंगी।