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Saturday, 4 March 2017

हाँग काँग की यात्रा पर दो माँ, दो बेटियाँ Hong Kong Yatra Part 4 नीलम भागी डिज़नी लैंड, नाँग पिंग केबल कार, लनटाउ एडवेंचर, मैजेस्टिक ब्राँज बुद्धा और मोनैस्टी नाश्ते के लिये मैं गई तो सिवाय मेरे सब लोग तैयार होकर आये थे। ज्यादातर लोग पूरे परिवार के साथ यानि बच्चों के साथ बुर्जुग भी थे। बुफे में बहुत वैराइटी थी। ब्लू चीज़ और फल लेकर मैं व्यंजनों को पढ़ने लगी। इतने में गीता और उत्तकर्षिनी भी आ गईं। नाश्ता करते हुए आज के घूमने का कार्यक्रम बना लिया। हर जगह के लिये टूरिस्ट बसों के पैकेज थे। तीन साल तक के बच्चे का बस, ट्रेन में कोई शुल्क नहीं था। लेकिन हम ढाई साल की गीता की सुविधानुसार प्रोग्राम बनाते थे, जहाँ गीता को ज्यादा अच्छा लगा वहाँ थोड़ा रूक गये। हांग कांग का डिज्नीलैंड विश्व का सबसे छोटा और सातवां डिज्नीलैंड है। डिज्नीलैंड में डिज्नी के र्काटून पात्र मिक्की माउस, विनी द पूह, हवा मूलेन, सिंड्रेला और स्लीपिंग ब्यूटी और राइडस भी देखे। यहाँ पर काम करने वालो ने जैसे मिकी माउस जैसी लाल काली टोपी लगा रक्खी थी। यहाँ बच्चों के चेहरे की खुशी देख कर वहाँ का माहौल ही खुशनुमा था पर गीता तो सो गई। हमने बिग बुद्धा जाने के लिये टेªन पकड़ ली। टेªन मंे गीता जाग गई और प्रैम से उसे आजाद कर दिया। वहाँ हर उम्र के नागरिक तो मोबाइल में खोए हुए थे। विदेशियों की नज़रें खिड़की से नहीं हट रहीं थी। प्राकृतिक सौन्दर्य को मेहनती इनसानों ने इस कदर निखार दिया है कि आज चीन में हर वर्ष तीन करोड़ विदेशी पर्यटक जाते हैं। कहीं पढ़ा था कि जगह की कमी के कारण यहाँ कब्रिस्तान भी सीढ़ीनुमा है। टेªन में बैठे हुए देख भी लिया। स्टेशन ऐसे जैसे किसी माॅल में खड़े हों। टेªन से उतरते ही अपने लिये कुछ स्नैक्स लिये और एस्केलेटर से ऊपर जाकर लाइन में लग गये। हर जगह फ्री वाई फाई है। पासवर्ड लिखा रहता है। सभ्य लोग हैं। अधिकतर लाइन में ही मोबाइल में लगे हुए चल रहे थे। चारजिंग की सुविधा नहीं थी। लाइन में इतने घुमाव थे कि दूर से देखने में भीड़ लगती थी पर सब लाइन में ही चल रहे थे। सीनियर सीटीज़न भी खूबसूरत स्टिक की सहायता से या व्हिीलचेयर पर लाइन में चल रहे थे। लाइन में गीता बहुत मस्त थी, जो भी इसके सामने आता इसे बुलाता। थोड़े बड़े बच्चे तो प्रैम के साथ चलते हुए बतिया रहे थे। न गीता उनकी भाषा समझ रही थी न वे गीता की, पर बातें चल रहीं थी। हल्की धुंध थी। धूप नहीं थी मौसम ज्यादा खराब होने पर केबल कार बंद कर दी जाती है। इस ट्रिप में बस तस्वीरें ज्यादा क्लीयर नहीं आईं हैं। ठंड थी। मैंने पतला सा फैशनेबल स्वेटर पहन रक्खा था। उत्तकर्षिनी ले कर गई थी जो उसने मुझे पहना दिया था। मैं कोई भी गर्म कपड़ा लेकर ही नहीं गई थी, कपड़े भी सूती गर्मी में पहनने वाले। तीन घण्टे में हमारा केबल कार में नंबर आया और उसी समय गीता सो गई । बैठते ही हमारा लंटाउ एडवेंचर शुरू हो गया। नाॅगांग पिंग 360! केबल कार में बैठे हुए आकाश से 5.7 किमी. यात्रा में हांग कांग की गगनचंुबी इमारतें, हवाईजहाज की शेप का एयरर्पोट, समुद्र और लंटाउ की हरी भरी वादियाँ, सब कुछ विस्मय विमुग्ध कर रहा था। ठंड देख मैंने अपना कार्डिगन भी गीता पर लपेट दिया। ऊँचाई इतनी कि बंदरगाह, खाड़ी, समुद्री दृश्य सबका आनन्द उठा रहे थे। मैं और उत्तकर्षिनी आमने सामने बैठे थे, बीच में प्रैम में गीता सो रही थी। बाकि छ लोग पता नहीं कौन से देश से थे। समुद्र, इमारते निकल गई तो उत्तकर्षिनी अपने सामने यानि मेरे पीछे देख रही थी। अचानक मेरे दिमाग में खुराफात आई कि देखूँ मेरे पीछे क्या है। देखा घने जंगलों से भरा एक पहाड़ जिसकी चोटी नहीं दिखाई दे रही थी। मुझे लगा ये पहाड़ से टकरायेगी। पर लौटने वाली ट्रालियाँ देख कर हिम्मत आती। दूर से बुद्धा नजर आने लगे। नीचे जंगल में बुद्धा तक जाने के लिये पक्की बनाई हुई पगडंडी दिखाई दे रही थी। अब दूर से हमें आबादी दिखाई देने लगी। कुछ ही देर में हम नगोंग पिंग विलेज पहुँच गये।

हाँग काँग की यात्रा पर दो माँ, दो बेटियाँ              भाग 4  नीलम भागी
 डिज़नी लैंड, नाँग पिंग केबल कार, लनटाउ एडवेंचर





नाश्ते के लिये मैं गई तो सिवाय मेरे सब लोग तैयार होकर आये थे। ज्यादातर लोग पूरे परिवार के साथ यानि बच्चों के साथ बुर्जुग भी थे। बुफे में बहुत वैराइटी थी। ब्लू चीज़ और फल लेकर मैं व्यंजनों को पढ़ने लगी। इतने में गीता और उत्तकर्षिनी भी आ गईं। नाश्ता करते हुए आज के घूमने का कार्यक्रम बना लिया। हर जगह के लिये टूरिस्ट बसों के पैकेज थे। तीन साल तक के बच्चे का बस, ट्रेन में कोई शुल्क नहीं था। लेकिन हम ढाई साल की गीता की सुविधानुसार प्रोग्राम बनाते थे, जहाँ गीता को ज्यादा अच्छा लगा वहाँ थोड़ा रूक गये।
हांग कांग का डिज्नीलैंड विश्व का सबसे छोटा और सातवां डिज्नीलैंड है। डिज्नीलैंड में डिज्नी के र्काटून पात्र मिक्की माउस, विनी द पूह, हवा मूलेन, सिंड्रेला और स्लीपिंग ब्यूटी और राइडस भी देखे। यहाँ पर काम करने वालो ने जैसे मिकी माउस जैसी लाल काली टोपी लगा रखी थी। यहाँ बच्चों के चेहरे की खुशी देख कर, वहाँ का माहौल ही खुशनुमा था पर गीता तो सो गई।अब हमने बिग बुद्धा जाने के लिये ट्रेन पकड़ ली। ट्रेन में गीता जाग गई और हमने प्रैम से उसे आजाद कर दिया। वहाँ हर उम्र के नागरिक तो मोबाइल में खोए हुए थे। विदेशियों की नज़रें खिड़की से नहीं हट रहीं थी। प्राकृतिक सौन्दर्य को मेहनती इनसानों ने इस कदर निखार दिया है कि आज चीन में हर वर्ष तीन करोड़ विदेशी पर्यटक जाते हैं। कहीं पढ़ा था कि जगह की कमी के कारण यहाँ कब्रिस्तान भी सीढ़ीनुमा है। ट्रेन में बैठे हुए देख भी लिया। स्टेशन ऐसे जैसे किसी माॅल में खड़े हों। ट्रेन से उतरते ही अपने लिये कुछ स्नैक्स लिये और एस्केलेटर से ऊपर जाकर लाइन में लग गये। हर जगह फ्री वाई फाई है। पासवर्ड लिखा रहता है। सभ्य लोग हैं। अधिकतर लाइन में ही मोबाइल में लगे हुए चल रहे थे। चारजिंग की सुविधा नहीं थी। लाइन में इतने घुमाव थे कि दूर से देखने में भीड़ लगती थी पर सब लाइन में ही चल रहे थे। सीनियर सीटीज़न भी खूबसूरत स्टिक की सहायता से या से व्हील चेयर पर लाइन में चल रहे थे। लाइन में गीता बहुत मस्त थी, जो भी इसके सामने आता इसे बुलाता। थोड़े बड़े बच्चे तो प्रैम के साथ चलते हुए बतिया रहे थे। न गीता उनकी भाषा समझ रही थी न वे गीता की, पर बातें चल रहीं थी। हल्की धुंध थी। धूप नहीं थी मौसम ज्यादा खराब होने पर केबल कार बंद कर दी जाती है। इस ट्रिप में बस तस्वीरें ज्यादा क्लीयर नहीं आईं हैं। ठंड थी। मैंने पतला सा फैशनेबल स्वेटर पहन रखा था। इसे उत्तकर्षिनी ले कर गई थी, जो उसने मुझे पहना दिया था। मैं कोई भी गर्म कपड़ा लेकर ही नहीं गई थी, कपड़े भी सूती गर्मी में पहनने वाले। तीन घण्टे में हमारा केबल कार में नंबर आया और उसी समय गीता सो गई । बैठते ही हमारा लंटाउ एडवेंचर शुरू हो गया।
 नाॅगांग पिंग 360! केबल कार में बैठे हुए आकाश से 5.7 किमी. यात्रा में हांग कांग की गगनचुंबी इमारतें, हवाईजहाज की शेप का एयरर्पोट, समुद्र और लंटाउ की हरी भरी वादियाँ, सब कुछ विस्मय विमुग्ध कर रहा था। ठंड देख मैंने अपना कार्डिगन भी गीता पर लपेट दिया। ऊँचाई इतनी कि बंदरगाह, खाड़ी, समुद्री दृश्य सबका आनन्द उठा रहे थे। मैं और उत्तकर्षिनी आमने सामने बैठे थे, बीच में प्रैम में गीता सो रही थी। बाकि छ लोग पता नहीं कौन से देश से थे। समुद्र, इमारते निकल गई तो उत्तकर्षिनी अपने सामने यानि मेरे पीछे देख रही थी। अचानक मेरे दिमाग में खुराफात आई कि देखूँ, मेरे पीछे क्या है? देखा घने जंगलों से भरा एक पहाड़ जिसकी चोटी नहीं दिखाई दे रही थी। मुझे लगा ये पहाड़ से टकरायेगी। पर लौटने वाली ट्रालियाँ देख कर हिम्मत आती। दूर से बुद्धा नजर आने लगे। नीचे जंगल में बुद्धा तक जाने के लिये पक्की बनाई हुई पगडंडी दिखाई दे रही थी। अब दूर से हमें आबादी दिखाई देने लगी। कुछ ही देर में हम नगोंग पिंग विलेज पहुँच गये।    क्रमशः