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Wednesday 27 December 2017

रीमिक्स ब्राइड नीलम भागी Remix Bride Neelam Bhagi


   

  ठंड के रिर्काड टूट रहे थे। रात 11 बजे रजाई में दुबकी सोई ही थी कि अचानक जोर-जोर से ढोल बजने की आवाज से, नींद टूट गई। पड़ोस में न ही उस दिन कोई शादी थी, और न ही कोई मैच था। अब तो ठंड की परवाह न करते हुए, मैं बाहर झांकने आई तो देखा, यह सारा तमाशा मेरी सहेली मिन्नी के घर के आगे हो रहा था।   मिन्नी का बेटा मनु नाच रहा था। साथ में दूर से जो लड़का सा दिखाई दे रहा था, वह  लड़की थी। उसका नाम शालू था, जिसे मैंने अक्सर मनु के साथ देखा था, आज उसकी दुल्हन थी। जो जीन्स, जैकेट, घुटनों तक के लैदर शूज पहने़ यानि ठंड से पूरी तरह मौर्चाबंदी करके, दो-दो सैट चूड़ा पहने, पावभर सिन्दूर मांग में लगाए खड़ी, अब अपने पति का डांस देख रही थी। ढोल वाला युवा था। उसे यह शादी मौहब्बत करने वालों की जीत लग रही थी। इसलिये वह रात के सन्नाटे में पूरी ताकत से, टेढ़ा हो होकर ढोल पीट रहा था।
   इतने में अन्दर से मिन्नी थाली में घी से भरा आटे का दीपक लाकर आरती उतारने लगी। बड़ी मुश्किल से वह अपने आँसू रोक कर ,जबरदस्ती मुस्करा रही थी। कभी वह थाली क्लॉक वाइज़ घुमाती, कभी एन्टी क्लॉक वाइज़। अचानक उसे लगा, दुल्हनिया का सर तो ढका होता है, बहू तो नंगे सिर है,  उसने अपनी शॅाल से शालू का सिर ढक दिया। अब वह ’रीमिक्स ब्राइड’ अपनी कुछ समय पहले बनी सास की हड़बड़ाहट का मज़ा ले रही थी। ससुर जी तो बाहर ही नहीं आये। स्वागत के बाद मिन्नी ने ,बेटा बहू को अन्दर बिठा, दरवाजा बन्द कर लिया। वह इतनी परेशान थी कि उसे सामने खड़ी, मैं भी दिखाई नहीं दी। अनजाने में अपने आप से हुई, इस तमाशबीनी से मैं स्वयं शर्मिंदा थी।
   घर आकर मैं सोचने लगी कि कुछ दिन पहले, मनु की मधु के साथ  रिंग सैरेमनी पर हम सब पड़ोसी-रिश्तेदार खूब खुशी मना कर आये थे। मिन्नी अपनी होने वाली बहू मधु की खूब तारीफ़ कर रही थी। मुझसे कहने लगी,’’ मेरा एक ही बेटा है। मधु के दादा दादी भी साथ ही रहते हैं। इसकी माँ, सास के साथ निभा रही है, तो उम्मीद करती हूँ कि मधु भी मेरे साथ निभायेगी।’’डी. जे. पर मनु ने भी, सबके साथ खूब डाँस किया। तब भी मैं यही सोच रही थी कि जिस लड़की(शालू) को अक्सर मनु के साथ घूमते फिरते देख कर, मैं उसे मनु की प्रेमिका समझती थी, उस दिन से मैं, शालू को उसकी गर्लफ्रेंड समझने लगी। तब मुझे जमाना बहुत अजीब लग रहा था और उस दिन मनु भी आज्ञाकारी बेटे की तरह सब रस्में निभा रहा था।       
आज मुझे जमाना बहुत खराब लग रहा था। माँ-बाप ने प्यार ,अहसानों का वास्ता दिया तो उनका कहना मान सगाई कर ली। जब प्रेमिका से सॉरी कहने गए, तो शायद उस सुन्दरी के आँसू देखकर पिघल गये होंगे और शालू को पत्नी बना  कर घर ले आये।
  यह हिम्मत पहले क्यों नहीं दिखाई? दो परिवारों का तमाशा बनाने की क्या जरुरत थी? यदि माता पिता को मालूम था कि उनका लख्ते-जिगर किसी अन्य लड़की के मामले में इतना सीरियस है तो उन्हें किसी अन्य परिवार का तमाशा नहीं बनाना चाहिये था न।


4 comments:

Unknown said...

नैतिक शिक्षा का लुप्त होना एक बड़ा कारण है जो आज हमारे स्कूल के विषय , परिवार एवं हम सभी के जीवन से ग़ायब हो चुका है।आज जो माता पिता करते वो प्रेम स्नेह में नही उनके कर्तव्य में परिभाषित कर दिया जाता है।जो संतान करती है वो अधिकार में आता है। सभी के लिए एक बात महत्त्व रखती है "this is my life"

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद प्रिय स्मृति

Dr. Ashok Kumar Jyoti said...

आदरणीया नीलम जी!
सच ही कहा गया कि नैतिक शिक्षा का लोप होता जा रहा है। साथ ही, जब माता-पिता को पता था कि बेटे किसी कन्या से प्रेम करती है तो दूसरी से सगाई ही नहीं करवानी चाहिए थी। दूसरे, उस लड़के ने जो 'बहादुरी'बाद में दिखाई, वह पहले ही दिखा देता। आपने ठीक ही लिखा है कि पहले अपने संबंध को विवाह का रूप दे दिया जाता तो दो परिवारों की ऐसी अप्रतिष्ठा नहीं होती।
अच्छी कथा है। आज के युवकों को ऐसी सीख चाहिए। बहुत बधाई!

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद आभार