सुबह दरवाजा पीटा गया कि बैड टी ले आओ और पीटने वाले साथी ने बताया कि उन लोगों ने तो रात को भी सैर की और सुबह जल्दी उठ कर भी सैर की और हमें तो सुबह भी उठाना पड़ा था। सुन कर मैं अपने आप पर दुखी होने लगी। ये देख कर मैंने अपने मन को समझाया कि दुखी मत हो, ये सब ज्यादा जी लेंगें। हम दोनों जल्दी मर जायेंगे और मैं समझ गई। मैसेज देखा देवेंद्र वशिष्ठ का मैसेज, 'आठ बजे नाश्ता था और साढ़े आठ बस में बैठना था।' नाश्ता ओपन में पेड़ों के नीचे कुर्सियां मेज लगीं थीं सामने बन रहा था। कुछ भी खा सकते थे लेकिन कॉम्बीनेशन था चाय के साथ थेपला और दहीं के साथ परांठा। मुझे बिमारी है कि मैं जहाँ भी जाती हूं, वहाँ का स्थानीय खाना पसंद करती हूं। इसलिये मैंने तो चाय थेपला का आनन्द उठाया। विश्वविद्यालय परिसर प्रदूषण रहित एकदम साफ था। मैं इधर उधर डोलती रही। बस चलने के समय उसमें आकर आखिरी सीट की खिड़की पर बैठ गई क्योंकि वही खाली थी। राजकोट सम्पन्नता र्दशाता पुराने और आधुनिक भवनों का मिला जुला शहर है। न ही यह शहर रिहायशी और कमर्शियल खण्डों में बटा है। मसलन कई जगह नई आबादी में मल्टीस्टोरी रैजी़डैन्शियल फ्लैट्स हैं तो ग्राउण्ड फ्लोर में कमर्शियल गतिविधियां हैं। वहाँ घरों की बाउण्ड्रीवाल बहुत ही छोटी थी और महिलाएं सोना पहने घूम रहीं थी। इसका मतलब चोरी चकारी और झपटमारी नहीं थी। टूविलर बिना हैल्मेट पहने लोग चला रहे थे। अब हम सामान से लदे पुराने शहर के बाजार में जा रहे थे। इस शहर की स्थापना जडेजा वंश के ठाकुर साहब विभाजी जडेजा ने 1612 ई में की थी। सौराष्ट्र की राजधानी रहे इस शहर की राजनीतिक और सांस्कृतिक यादें हैं। अहिंसा सत्याग्रह के साथ साथ यह शहर उद्योग के लिए भी बहुत मशहूर है। सोनी बाजार सोने के लिए मशहूर है। वाहन पुर्जों और छोटे ट्रैक्टरों का भी निर्माण यहीं से हुआ है। तरह तरह की चाट और पतंग मेले के लिये तो राजकोट विख्यात है। दबेली तो एशिया में मशहूर है। यहाँ बापू का निवास स्थान यानि ’काबा गाँधीना देले’ है। बापू के पिता कर्मचंद गांधी सौराष्ट्र के दीवान थे। अपने सिद्धांतों पर अटल रहने वाले, पोरबंदर छोड़ कर यहाँ आ गए थे। बस आगे जा नहीं सकती थी। हम पैदल उन गलियों में जा रहे थे। जहाँ खेल कर बापू का बचपन बिता। प्रवेश करते ही दाएं हाथ पर एक कमरा है जहाँ उनके जीवन यात्रा पर लघु फिल्म चलती है। हम देखने बैठ गए। पहले हमारे लिए पानी फिर नींबू र्शबत की बोतलें आईं। जूते उतार कर अब हम घूमने लगे और तस्वीरें लेने लगे। सारे विश्व से लोग, बापू के इस निवास को और उनकी जीवन यात्रा को तस्वीरों के माध्यम से देखने आते हैं। अब भी विदेशी पर्यटक ज्यादा थे। सब चुपचाप तस्वीरों को देखते हैं, वहाँ लिखे को पढ़ते हैं और आगे बढ़ते हैं। लेकिन मेरे ज़हन में तो उस समय उनको पढ़ा हुआ भी चल रहा था। बाहर आने पर बाजार में अंजना ने एक ठेले से टूथब्रश लिया कुल बीस रू. का यानि सस्ता शहर है। हम जो भी रेट पूछते नौएडा से सस्ता लगा। होली आनेवाली थी एक महिला ठेले पर पिचकारी बेच रही थी। मैं वैसे ही देखने के लिए खड़ी हो गई। उसने उस फौव्वारे के इतने फायदे बताये। पहले बोतल पर लगा कर रंग खेलो फिर पौधों को पानी दो न जाने क्या क्या। बाजार देखते हुए बस पर पहुँचे। बस में बैठे और महात्मा गांधी म्यूजियम की ओर चल पड़े। क्रमशः
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Saturday, 20 April 2019
काबा गाँधीना देलो राजकोट Rajkot Gujarat Yatra Part 2 गुजरात यात्रा भाग 2 Neelam Bhagi नीलम भागी
सुबह दरवाजा पीटा गया कि बैड टी ले आओ और पीटने वाले साथी ने बताया कि उन लोगों ने तो रात को भी सैर की और सुबह जल्दी उठ कर भी सैर की और हमें तो सुबह भी उठाना पड़ा था। सुन कर मैं अपने आप पर दुखी होने लगी। ये देख कर मैंने अपने मन को समझाया कि दुखी मत हो, ये सब ज्यादा जी लेंगें। हम दोनों जल्दी मर जायेंगे और मैं समझ गई। मैसेज देखा देवेंद्र वशिष्ठ का मैसेज, 'आठ बजे नाश्ता था और साढ़े आठ बस में बैठना था।' नाश्ता ओपन में पेड़ों के नीचे कुर्सियां मेज लगीं थीं सामने बन रहा था। कुछ भी खा सकते थे लेकिन कॉम्बीनेशन था चाय के साथ थेपला और दहीं के साथ परांठा। मुझे बिमारी है कि मैं जहाँ भी जाती हूं, वहाँ का स्थानीय खाना पसंद करती हूं। इसलिये मैंने तो चाय थेपला का आनन्द उठाया। विश्वविद्यालय परिसर प्रदूषण रहित एकदम साफ था। मैं इधर उधर डोलती रही। बस चलने के समय उसमें आकर आखिरी सीट की खिड़की पर बैठ गई क्योंकि वही खाली थी। राजकोट सम्पन्नता र्दशाता पुराने और आधुनिक भवनों का मिला जुला शहर है। न ही यह शहर रिहायशी और कमर्शियल खण्डों में बटा है। मसलन कई जगह नई आबादी में मल्टीस्टोरी रैजी़डैन्शियल फ्लैट्स हैं तो ग्राउण्ड फ्लोर में कमर्शियल गतिविधियां हैं। वहाँ घरों की बाउण्ड्रीवाल बहुत ही छोटी थी और महिलाएं सोना पहने घूम रहीं थी। इसका मतलब चोरी चकारी और झपटमारी नहीं थी। टूविलर बिना हैल्मेट पहने लोग चला रहे थे। अब हम सामान से लदे पुराने शहर के बाजार में जा रहे थे। इस शहर की स्थापना जडेजा वंश के ठाकुर साहब विभाजी जडेजा ने 1612 ई में की थी। सौराष्ट्र की राजधानी रहे इस शहर की राजनीतिक और सांस्कृतिक यादें हैं। अहिंसा सत्याग्रह के साथ साथ यह शहर उद्योग के लिए भी बहुत मशहूर है। सोनी बाजार सोने के लिए मशहूर है। वाहन पुर्जों और छोटे ट्रैक्टरों का भी निर्माण यहीं से हुआ है। तरह तरह की चाट और पतंग मेले के लिये तो राजकोट विख्यात है। दबेली तो एशिया में मशहूर है। यहाँ बापू का निवास स्थान यानि ’काबा गाँधीना देले’ है। बापू के पिता कर्मचंद गांधी सौराष्ट्र के दीवान थे। अपने सिद्धांतों पर अटल रहने वाले, पोरबंदर छोड़ कर यहाँ आ गए थे। बस आगे जा नहीं सकती थी। हम पैदल उन गलियों में जा रहे थे। जहाँ खेल कर बापू का बचपन बिता। प्रवेश करते ही दाएं हाथ पर एक कमरा है जहाँ उनके जीवन यात्रा पर लघु फिल्म चलती है। हम देखने बैठ गए। पहले हमारे लिए पानी फिर नींबू र्शबत की बोतलें आईं। जूते उतार कर अब हम घूमने लगे और तस्वीरें लेने लगे। सारे विश्व से लोग, बापू के इस निवास को और उनकी जीवन यात्रा को तस्वीरों के माध्यम से देखने आते हैं। अब भी विदेशी पर्यटक ज्यादा थे। सब चुपचाप तस्वीरों को देखते हैं, वहाँ लिखे को पढ़ते हैं और आगे बढ़ते हैं। लेकिन मेरे ज़हन में तो उस समय उनको पढ़ा हुआ भी चल रहा था। बाहर आने पर बाजार में अंजना ने एक ठेले से टूथब्रश लिया कुल बीस रू. का यानि सस्ता शहर है। हम जो भी रेट पूछते नौएडा से सस्ता लगा। होली आनेवाली थी एक महिला ठेले पर पिचकारी बेच रही थी। मैं वैसे ही देखने के लिए खड़ी हो गई। उसने उस फौव्वारे के इतने फायदे बताये। पहले बोतल पर लगा कर रंग खेलो फिर पौधों को पानी दो न जाने क्या क्या। बाजार देखते हुए बस पर पहुँचे। बस में बैठे और महात्मा गांधी म्यूजियम की ओर चल पड़े। क्रमशः
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2 comments:
धन्य है गुजरात की धरती यहां बापू ने जन्म लिया
धन्यवाद
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