महात्मा गांधी म्यूजियम राजकोट गुजरात यात्रा भाग 3
नीलम भागी
अब हम राजकोट के 17.10.1853 में खुले पहले इंगलिश मीडियम अल्फ्रेड हाई स्कूल गए। आज की इस इमारत को जूनागढ़ के नवाब ने 1875 में बनवाया था। इस स्कूल का नाम डयूक ऑफ एडिनर्बग प्रिंस के नाम पर रक्खा गया था। बापू इस स्कूल में पढ़े थे। यहीं पर उन्हें भारतीय और अंग्रेजी रहन सहन का अंतर समझ आने लगा था। 1947 में आजादी के बाद इस स्कूल का नाम मोहनदास करमचंद स्कूल रख दिया गया। बापू की 150वीं जयंती पर इसे महात्मा गांधी म्यूजियम में बदल दिया गया। 30 सितम्बर 2018 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इसका उद्घाटन किया। 25रू का टिकट प्रतिव्यक्ति है। अंदर प्रवेश करते ही गाइड हमारे साथ थे। यहाँ बापू की राजकोट की यादें और उनकी जीवन यात्रा में परिवर्तन लाने वाली घटनाएं तस्वीरों उनके लेखों के प्रिंट 2132 और फोटोज़, मल्टीमीडिया मिनी थियेटर, मोशन ग्राफिक्स, थ्री डी प्रोजेक्शन एवं गांधी जी के जीवन पर बनी मेपिंग फिल्म के जरिए गांधी दर्शन कर सकते हैं। गांधी पुस्तकालय के अलावा डिजिटल तकनीक के जरिए गांधी जी के जीवन पर प्रकाश डाला गया है। किशोरावस्था में जो किशोर नादानियां किया करते हैं, मोहन ने भी की थीं। सब का ज़िक्र किया और कैसे उन गलतियों को स्वीकार कर, वे अपने गुरू स्वयं बने और उनसे दूर हुए। जीवन संर्घष, आशा निराशा सब आम आदमी से महात्मा बनने में, उनके जीवन में भी आईं। किसी स्कूल की छात्राएं भी थीं। वे शांति से बापू के जीवन को देखती, पढ़ती आगे बढ़ रहीं थीं। उन्हें कोई चुप रहने को नहीं कह रहा था। बापू का तो जीवन ही उनका संदेश है। मुझे लगा वे उसे आत्मसात कर रहीं हैं। तीन चीजों से दूर रहने की प्रतिज्ञा, लंदन से मैट्रिक पास किया, वैजिटेरियन सोसाइटी में शामिल हुए, विश्व के धर्मों का परिचय, संर्घष, बैरिस्टर गांधी पहुंचे मुंबई, हरी पुस्तिका, परिवार के साथ दक्षिण अफ्रीका की समुद्र यात्रा, फीनिक्स आश्रम की स्थापना, आहार शास्त्र पर गुजराती में लेख, ट्रान्सवॉल एशियाटिक लॉ अमेंडमेंट आर्डिनेन्स, इंग्लैंड प्रस्थान, सत्याग्रह का जन्म, टॉल्स्टॉय र्फाम- सहकारी गणतंत्र, महा कूच, गिरफ्तारी ,ट्रायल, सजा, रिहाई, स्वदेश आगमन, दक्षिण अफीका में की गई सेवाओं के लिए सम्मान, भारत की परिस्थिति,
1916 से 1920 सत्याग्रह आश्रम की स्थापना, चरखा-भारतीय अर्थ व्यवस्था का आधार, चंपारण सत्याग्रह, अहमदाबाद मिल मजदूरों की हड़ताल, खेड़ा सत्याग्रह, गंाधी जी समय के साथ पोशाक में परिवर्तन,
1920 से 1922 असहयोग आंदोलन , चौरी चौरा कांड, जलियांवाला बाग कांड,
1922 से 1930 हिन्दु मुस्लिम एकता के लिए 21 दिन का उपवास, अखिल भारतीय बुनकर संघ की स्थापना, बारडोली सत्याग्रह, साइमन कमीशन, पूर्ण स्वराज, दांडी मार्च
1930 से 1944 द्वितीय गोलमेज सम्मेलन, अस्पृश्यता निवारण के लिए अभियान, कांग्रेस से त्यागपत्र, र्वधा सेवाग्राम में कार्यरत, राजकोट सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन, आगा खान पैलेस में बंदी, कस्तूरबा का निधन
1944 से 1948 सिमला सम्मेलन, साम्प्रदायिक दंगे, भारत स्वतंत्र हुआ, महात्मा को वैश्विक श्रद्धाज्ंली
ब्रहमर्चय, सत्य, अहिंसा अस्पृश्यता निवारण, अस्तेय(चोरी न करना), जात मेहनत, सहिष्णुता(बरदाश्त), इतने में मेरे मोबाइल पर देवेन्द्र वशिष्ठ की कॉल आई कि सब साथी बस में मेरा इंतजार कर रहें हैं। सामने सरदार पटेल थे और आस पास मेरे साथियों में कोई नहीं था। मैं र्कमचारियों से बाहर का रास्ता पूछते चल रहीं हूं और मेरे दिमाग में विचार चल रहें हैं कि मैं दो व्यक्तित्वोंं से बहुत ज्यादा प्रभावित हूं ,वे हैं बापू और सरदार पटेल। पिछली बार मैं दो दिन के लिए अहमदाबाद काम से आई थी। जिसमें एक दिन साबरमती आश्रम में बिताना, मुझे बहुत अच्छा लगा था। मैंने अपने आप से कहाकि मैं कौन सा मरनेवाली हूैं! महात्मा गांधी म्यूजियम के मोह में फिर आ जाउंगी। बस मुझे दूर से देखते ही र्स्टाट हो गई। जैसे ही बस में मैंने प्रवेश किया। कोरस में मुझे कहा ’बहुत देर लगा दी।’ बस स्वामीनारायण मंदिर की ओर चल पड़ी और मैं अपनी सीट पर बैठ गई। क्रमशः
नीलम भागी
अब हम राजकोट के 17.10.1853 में खुले पहले इंगलिश मीडियम अल्फ्रेड हाई स्कूल गए। आज की इस इमारत को जूनागढ़ के नवाब ने 1875 में बनवाया था। इस स्कूल का नाम डयूक ऑफ एडिनर्बग प्रिंस के नाम पर रक्खा गया था। बापू इस स्कूल में पढ़े थे। यहीं पर उन्हें भारतीय और अंग्रेजी रहन सहन का अंतर समझ आने लगा था। 1947 में आजादी के बाद इस स्कूल का नाम मोहनदास करमचंद स्कूल रख दिया गया। बापू की 150वीं जयंती पर इसे महात्मा गांधी म्यूजियम में बदल दिया गया। 30 सितम्बर 2018 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इसका उद्घाटन किया। 25रू का टिकट प्रतिव्यक्ति है। अंदर प्रवेश करते ही गाइड हमारे साथ थे। यहाँ बापू की राजकोट की यादें और उनकी जीवन यात्रा में परिवर्तन लाने वाली घटनाएं तस्वीरों उनके लेखों के प्रिंट 2132 और फोटोज़, मल्टीमीडिया मिनी थियेटर, मोशन ग्राफिक्स, थ्री डी प्रोजेक्शन एवं गांधी जी के जीवन पर बनी मेपिंग फिल्म के जरिए गांधी दर्शन कर सकते हैं। गांधी पुस्तकालय के अलावा डिजिटल तकनीक के जरिए गांधी जी के जीवन पर प्रकाश डाला गया है। किशोरावस्था में जो किशोर नादानियां किया करते हैं, मोहन ने भी की थीं। सब का ज़िक्र किया और कैसे उन गलतियों को स्वीकार कर, वे अपने गुरू स्वयं बने और उनसे दूर हुए। जीवन संर्घष, आशा निराशा सब आम आदमी से महात्मा बनने में, उनके जीवन में भी आईं। किसी स्कूल की छात्राएं भी थीं। वे शांति से बापू के जीवन को देखती, पढ़ती आगे बढ़ रहीं थीं। उन्हें कोई चुप रहने को नहीं कह रहा था। बापू का तो जीवन ही उनका संदेश है। मुझे लगा वे उसे आत्मसात कर रहीं हैं। तीन चीजों से दूर रहने की प्रतिज्ञा, लंदन से मैट्रिक पास किया, वैजिटेरियन सोसाइटी में शामिल हुए, विश्व के धर्मों का परिचय, संर्घष, बैरिस्टर गांधी पहुंचे मुंबई, हरी पुस्तिका, परिवार के साथ दक्षिण अफ्रीका की समुद्र यात्रा, फीनिक्स आश्रम की स्थापना, आहार शास्त्र पर गुजराती में लेख, ट्रान्सवॉल एशियाटिक लॉ अमेंडमेंट आर्डिनेन्स, इंग्लैंड प्रस्थान, सत्याग्रह का जन्म, टॉल्स्टॉय र्फाम- सहकारी गणतंत्र, महा कूच, गिरफ्तारी ,ट्रायल, सजा, रिहाई, स्वदेश आगमन, दक्षिण अफीका में की गई सेवाओं के लिए सम्मान, भारत की परिस्थिति,
1916 से 1920 सत्याग्रह आश्रम की स्थापना, चरखा-भारतीय अर्थ व्यवस्था का आधार, चंपारण सत्याग्रह, अहमदाबाद मिल मजदूरों की हड़ताल, खेड़ा सत्याग्रह, गंाधी जी समय के साथ पोशाक में परिवर्तन,
1920 से 1922 असहयोग आंदोलन , चौरी चौरा कांड, जलियांवाला बाग कांड,
1922 से 1930 हिन्दु मुस्लिम एकता के लिए 21 दिन का उपवास, अखिल भारतीय बुनकर संघ की स्थापना, बारडोली सत्याग्रह, साइमन कमीशन, पूर्ण स्वराज, दांडी मार्च
1930 से 1944 द्वितीय गोलमेज सम्मेलन, अस्पृश्यता निवारण के लिए अभियान, कांग्रेस से त्यागपत्र, र्वधा सेवाग्राम में कार्यरत, राजकोट सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन, आगा खान पैलेस में बंदी, कस्तूरबा का निधन
1944 से 1948 सिमला सम्मेलन, साम्प्रदायिक दंगे, भारत स्वतंत्र हुआ, महात्मा को वैश्विक श्रद्धाज्ंली
ब्रहमर्चय, सत्य, अहिंसा अस्पृश्यता निवारण, अस्तेय(चोरी न करना), जात मेहनत, सहिष्णुता(बरदाश्त), इतने में मेरे मोबाइल पर देवेन्द्र वशिष्ठ की कॉल आई कि सब साथी बस में मेरा इंतजार कर रहें हैं। सामने सरदार पटेल थे और आस पास मेरे साथियों में कोई नहीं था। मैं र्कमचारियों से बाहर का रास्ता पूछते चल रहीं हूं और मेरे दिमाग में विचार चल रहें हैं कि मैं दो व्यक्तित्वोंं से बहुत ज्यादा प्रभावित हूं ,वे हैं बापू और सरदार पटेल। पिछली बार मैं दो दिन के लिए अहमदाबाद काम से आई थी। जिसमें एक दिन साबरमती आश्रम में बिताना, मुझे बहुत अच्छा लगा था। मैंने अपने आप से कहाकि मैं कौन सा मरनेवाली हूैं! महात्मा गांधी म्यूजियम के मोह में फिर आ जाउंगी। बस मुझे दूर से देखते ही र्स्टाट हो गई। जैसे ही बस में मैंने प्रवेश किया। कोरस में मुझे कहा ’बहुत देर लगा दी।’ बस स्वामीनारायण मंदिर की ओर चल पड़ी और मैं अपनी सीट पर बैठ गई। क्रमशः
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